जी भाई साहब जी: आ गए ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के मंत्रियों के बुरे दिन
MP News: जब से केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ नेताओं ने कांग्रेस का हाथ छोड़ कर बीजेपी का दामन थामा है, यह आकलन किया जा रहा कि इन नेताओं के लिए बीजेपी की कार्य संस्कृति में एडजस्ट होना मुश्किल होगा। ताजा राजनीतिक हालात बता रहे हैं कि सिंधिया खेमे के मंत्रियों के बुरे दिन आ गए हैं। इतना नहीं कमिश्नर-कलेक्टर कांफ्रेंस भी बीजेपी एमएलए के लिए बुरे संकेत ले कर आई है।

कई तरह के आरोपों को झेल रहे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक मंत्रियों को बीजेपी में अपनी हैसियत का अंदाजा होने लगा है। पार्टी का नया शक्ति केंद्र कहे जाने वाले सिंधिया खेमे को नजरअंदाज करना इन राजनीतिक आकलनों को पुष्ट कर रहा है कि बीजेपी में सिंधिया खेमे के मंत्रियों के बुरे दिन आने वाले हैं।
पिछले कुछ दिनों से सिंधिया खेमे के मंत्री अपने बयानों के कारण ही नहीं बल्कि भ्रष्टाचार जैसे आरोपों के कारण चर्चा में हैं। उनकी शिकायतें दिल्ली तक पहुंची है। इस बीच बीजेपी के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवकुमार ने सिंधिया समर्थक मंत्रियों से बंद कमरे में मुलाकात की तो कई तरह कर चर्चाएं चल पड़ीं।
चर्चा है कि इस बैठक में सिंधिया समर्थक मंत्रियों ने अपने खिलाफ हो रही शिकायतों को लेकर सफाई दी है कि बीजेपी के नेता उन्हें बदनाम करवा रहे हैं। बीजेपी संगठन में भी उनकी सुनवाई नहीं हो रही है। इस सफाई के बाद भी सह संगठन महामंत्री शिवकुमार ने सिंधिया समर्थक मंत्रियों को संयमित व्यवहार करने तथा सिंधिया को सबकुछ मानने के बजाय बीजेपी संगठन को तवज्जो देने की समझाइश दी है।
इस समझाइश का क्या असर हुआ यह अलग आकलन की बात है मगर संगठन में सिंधिया समर्थक मंत्रियों को कितनी तवज्जो मिल रही है यह एक समिति के गठन से साफ हो गया है। असल में मैदान से मिल रही जानकारियों को देखते हुए बीजेपी ने नई रणनीति के तहत मंत्रियों को एक कमेटी बनाई गई है। इस कमेटी में 8 सदस्यीय इस कमेटी में सिंधिया खेमे से मात्र एक मंत्री राज्यवर्धन सिंह शामिल किए गए हैं। वे सोशल मीडिया और बूथ विस्तार का काम देखेंगे।
वरिष्ठ मंत्री तुलसीराम सिलावट सहित सिंधिया खेमे के बाकी सभी मंत्रियों को बाहर रखा गया है। राज्यवर्धन सिंह को भी वही काम दिया गया है जिस पर राष्ट्रीय और प्रादेशिक संगठन के तमाम वरिष्ठ नेता नजर रखे हुए हैं। कमेटी नरोत्तम मिश्रा, विश्वास सारंग, अरविंद भदौरिया, जगदीश देवड़ा, मोहन यादव शामिल किए गए हैं।
इतना ही नहीं, राजनीतिक समीकरण साधने के लिए मंत्रिमंडल में बदलाव की भी खबरें हैं। संकेत दे दिए गए हैं कि सिंधिया खेमे से भी कुछ मंत्रियों की कुर्सी जाएगी तथा कुछ के विभाग बदले जाएंगे। स्पष्ट है कि सिंधिया खेमे के लिए आगे बहुत अग्नि परीक्षाएं हैं।
फंस गए विधायक जी, कलेक्टर खोलेंगे माननीय की पोल
कोरोना आपदा के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 31 जनवरी और 1 फरवरी को कलेक्टर-कमिश्नर, आइजी-एसपी कान्फ्रेंस कर रहे है। इसके पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह मंत्रियों और विधायकों से बात कर चुके हैं। खासबात यह है कि इन अफसरों से प्रशासनिक मामलों और योजनाओं के क्रियान्वयन पर ही बात नहीं होगी, उनसे मैदानी राजनीतिक स्थिति का फीडबैक भी लिया जाएगा। इसके लिए सीएम चौहान ने आधा दिन अधिकारियों से चर्चा के लिए आरक्षित रखा है।
कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस इसलिए महत्वपूर्ण है कि 5 फरवरी से सरकार की विकास यात्रा आरंभ हो रही है। कलेक्टर इस यात्रा के समन्वयक होंगे जबकि सांसद और विधायक 25 दिनों तक क्षेत्र में विकास की झांकी प्रस्तुत करेंगे। यह इंवेंट ही नहीं बीजेपी की मैदान में स्थिति का आकलन करने का जिम्मा भी अप्रत्यक्ष रूप से कलेक्टर के पास हैं। उनकी रिपोर्ट से तय होगा कि मैदान में बीजेपी विधायक जी कितने दमदार हैं।
यह सब इसलिए किया जा रहा है क्योंकि मिशन 2023 के लिए बीजेपी ने अबकी बार दो सौ पार का नारा दिया है। खुद बीजेपी नेता जानते हैं कि 200 पार तो ठीक है, बहुमत का आंकड़ा 216 पार करना है तो मैदान में फैला असंतोष खत्म करना होगा। इसके लिए जो फार्मूला सुझाया जा रहा है उसमें गुजरात फार्मूला भी है। इसके अनुसार मौजूदा विधायकों के टिकट काट दो।
इस फार्मूले के लागू होने पर विधायकों की जान अटकी है। अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उन अफसरों से मैदानी फीडबैक ले रहे हैं मैदानी रिपोर्ट लेने का मतलब है विधायकों के कामकाज का आकलन। यानी जिन कलेक्टरों की विधायक अब तक शिकायत करते रहे हैं उनके काम का ऑडिट कलेक्टर की रिपोर्ट से होगा। मतलब विधायक जी बुरे फंस गए हैं। वे घबरा रहे हैं कि कलेक्टर ने खुन्नस निकाल ली तो नैया डूबी समझो।
बीजेपी की बैठकों से कार्यकर्ताओं ने किया किनारा
यूं तो बीजेपी कई नगरीय निकाय चुनाव में हारी है मगर पीथमपुर की हार का दर्द भुलाया नहीं जा रहा है। बीजेपी नेताओं की पीड़ा है कि स्थानीय नेताओं की गुटबाजी का नुकसान पार्टी को हुआ। पांच सीटों पर बागी दूसरे नंबर पर रहे और बीजेपी के प्रत्याशी हार गए। जबकि इस सीट पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूरा ध्यान लगाया था।
पीथमपुर में हार मुख्यमंत्री चौहान सहित अन्य नेताओं को खटक रही है। तभी तो प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में सीएम शिवराज सिंह चौहान ने बीजेपी नेताओं के बागी हो जाने तथा उन्हें अन्य नेताओं द्वारा सहयोग देने पर आक्रोश जताया था। उन्होंने कहा था कि एक बीजेपी नेता पीथमपुर में निर्दलीय की हार पर अधिकारियों पर रिकाउंटिंग का दबाव बना रहे थे। यह क्या हो रहा है? हमारे अपने ही हार की वजह बन रहे हैं।
इसी बैठक में क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल ने यहां तक कह दिया कि मंडल के नीचे हमारा काम पहुंचा नहीं है। बूथ मजबूत है कह कहना कागजी बात है। बीजेपी की मंडल स्तर की बैठकों में वही लोग ही आते हैं जो पहले भी आते थे। पार्टी नए लोग नहीं जोड़ पा रही है। जामवाल कह गए कि बूथ को मजबूत नहीं किया तो जीत नहीं पाएंगे।
इस कहने का तो यही अर्थ है कि बीजेपी में आयातीत नेताओं को तवज्जो मिलने से मैदानी कार्यकर्ता छिटक रहे हैं। बैठकों में भी कुछ पुराने नेता व कार्यकर्ता ही पहुंच रहे, बाकियों ने दूरी बना ली है।
क्या कांग्रेस के हाथ लग गया है जीत का फार्मूला?
नए साल में कांग्रेस ने कमलनाथ को मुख्यमंत्री का चेहरा बताते हुए नारा दिया है नया साल नई सरकार। जहां बीजेपी असंतोष और गुटबाजी खत्म करने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही है वहीं संगठन को मजबूत करने के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ जिलों का दौरा कर रहे हैं। वे कार्यकर्ताओं में इस विश्वास को जगा रहे हैं कि 2023 के चुनाव में फिर कांग्रेस की सरकार बन रही है।
संगठन को सक्रिय करने के लिए कार्यकारिणी के गठन, जिलाध्यक्षों की नियुक्ति के साथ अन्य पदाधिकारियों को सक्रिय किया गया है। स्वयं कमलनाथ जिलों का दौरा कर रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि इतने दावे से कांग्रेस के सरकार में वापसी की बात के पीछे राज क्या है?
माना जा रहा था कि अपनी कार्पोरेट शैली के अनुसार कमलनाथ ने विधायकों तथा सीटों पर संभावित उम्मीदवारों की स्थिति का सर्वे करवाया है। समय समय पर हो रहे यह सर्वे टिकट तय करने का आधार बनेंगे। लेकिन जब सर्वे पर सवाल उठे तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने सर्वे करवाने की खबरों का खंडन कर दिया।
अब उन्होंने खुद ही बताया कि कांग्रेस के हाथ जीत का फार्मूला लग गया है। यह फार्मूला है, स्थानीय नेता को टिकट देना और बाहरी उम्मीदवार से तौबा करना। पिछले चुनाव में भी स्थानीय बनाम बाहरी प्रत्याशी एक मुद्दा बना था। यदि यह फार्मूला लागू हुआ तो कई नेताओं के अरमान ठंडे पड़ जाएंगे।