जी भाई साहब जी: बीजेपी की तुरूप चाल और ज्योतिरादित्य सिंधिया को बैलेंस करने का गणित
बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व चौंका रहा है। राज्यसभा के लिए चुने गए नामों का खुलासा होते ही कार्यकर्ताओं की बांछें खिल गई हैं। गौर से देखा जाए तो यह निर्णय प्रदेश संगठन और राज्य के नेताओं की राजनीतिक बिसात पर केंद्रीय संगठन की तुरूप चाल साबित हुई है। दूसरी तरफ, कोर ग्रुप के गठन में ज्योतिरादित्य सिंधिया की शक्ति का संतुलन करने का जतन साफ दिखाई दे रहा है।
बीजेपी में हर बार की तरह इस बार भी माना जा रहा था कि राज्यसभा की दो सीटों में से एक पर केंद्रीय नेता को उच्च सदन में भेजा जाएगा मगर पहले कविता पाटीदार और फिर सुमित्रा वाल्मिकी का चयन कर कार्यकर्ताओं को चौंका दिया गया। प्रदेश बीजेपी में यह संदेश गया कि पार्टी कार्यकर्ताओं के परिश्रम का सम्मान करना जानती है। पैराशूट से या परिवार की जमीन पर खड़े नेताओं को ही ताज नहीं पहनाया जाएगा।
विश्लेषण करें तो बीजेपी ने दो नेत्रियों को टिकट देकर महिला वर्ग को साधने का काम किया है। दोनों में एक पिछड़ा वर्ग से हैं और दूसरी आदिवासी समाज से। ये दोनों वर्ग बीजेपी का टारगेट वोट बैंक है। पार्टी दोनों वर्गों को लुभाकर मिशन 2023 को फतह करना चाहती है। यही कारण है पिछले दिनों बड़े आयोजनों के अलावा कई तरह की योजनाओं को लागू कर सरकार ने इन वर्गों तक सकारात्मक संदेश पहुंचाने का काम किया है।
इन तमाम पहलुओं के कारण बीजेपी में संगठन के इस निर्णय की प्रशंसा हो रही है। इस तरह सबको खुश कर पार्टी ने उन नेताओं को चुप करवा दिया है जो दबाव की राजनीति कर राज्यसभा जाने की जुगत कर रहे थे। तमाम बड़े नामों के बीच टिकट पाने की होड़ थी। राज्य की राजनीति में हाशिए पर धकेल दिए गए नेता उच्च सदन में जाने की महत्वकांक्षा पाले हुए थे। संगठन ने इस एक स्ट्रोक में ऐसे नेताओं को चुप करवा दिया है। अपने अरमान ठंडे होने के बाद मन मसोस कर रह गए नेता कुछ कह भी नहीं पा रहे हैं। दिखावे के लिए ही सही उन्हें संगठन के निर्णय की प्रशंसा करनी पड़ रही है।
गहराई से पड़ताल करें तो यह फैसला प्रदेश बीजेपी संगठन की स्वयत्ता के लिए एक बड़ा संदेश है। एक तो यह कि निर्णयों में एमपी बीजेपी की आत्मनिर्भरता खत्म हो रही है और दूसरे, केंद्रीय नेतृत्व किसी भी कार्यकर्ता पर दांव लगा सकता है। अब से पहले एमपी बीजेपी नेताओं का इतना दबदबा हुआ करता था कि यहां के निर्णय स्थानीय नेताओं की सहमति के बिना नहीं हुआ करते थे। अब प्रदेश संगठन को सूचित भर किया जाता है। यानी, प्रदेश के नेताओं की निर्णय में भागीदारी सिमट रही है।
अपेक्षाकृत कम प्रसिद्ध नेताओं को चुनने के एक और लाभ संगठन स्तर पर यह होता है कि ऐसे नेता बहुत दबाव से अपनी बात संगठन में रख नहीं पाते हैं। वे स्वयं को चुने जाने के लिए पार्टी नेतृत्व के प्रति कृतज्ञता भाव से भरे होते हैं और स्वतंत्र आवाज बनने से हिचकते हैं। इस तरह, नए चेहरों को आगे ला कर संगठन में निर्णय क्षमता का केंद्रीयकरण संभव हुआ है।
एक अरमान यहां गिरा, एक वहां गिरा
पिछली सदी के एक चर्चित गाने की पंक्ति कुछ इसी तरह बीजेपी नेताओं की अभिव्यक्ति बन गई है। राज्यसभा में जाना मुमकिन भी नहीं हुआ और अब संगठन में वजन भी कम हो गया। बीजेपी के महत्वपूर्ण निर्णय करने वाले कोर ग्रुप के गठन से तो यही महसूस हो रहा है। लंबे समय बाद नवगठित कोर ग्रुप में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की आमद हुई है।
जिस तरह से सिंधिया की बीजेपी में शक्ति बढ़ रही है उसके अनुसार उनका कोर ग्रुप में शामिल होना स्वाभाविक था मगर कोर ग्रुप में ग्वालियर-चंबल का दबदबा कई संकेत दे रहा है। 15 सदस्यीय कोर ग्रुप में 6 सदस्य प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, नरेन्द्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरोत्तम मिश्रा, जयभान सिंह पवैया और लालसिंह आर्य ग्वालियर चंबल से लिए गए हैं। ऐसा लगता है कि पार्टी ने पूरा फोकस ग्वालियर-चंबल क्षेत्र पर कर दिया है।
इसकी दो वजहें मानी जा रही हैं। पहली, पार्टी में जगह घेर रहे सिंधिया को संतुलित करने के लिए उनके धुर विरोधी जयभान सिंह पवैया को जगह मिली है। यानि, सिंधिया ग्वालियर चंबल क्षेत्र से जुड़ा कोई भी निर्णय मनमर्जी से नहीं ले पाएंगे। उन्हें अपने ही क्षेत्र के अन्य पांच नेताओं की सहमति लेनी होगी।
दूसरी वजह यह है कि कांग्रेस ने ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में अपनी गतिविधियां बढ़ा दी है। ऐसे में इस क्षेत्र को संवेदनशील मानते हुए पार्टी किसी तरह की लापरवाही बरतने के मूड में नहीं है। यूं भी बीते लंबे समय से शिवराज सरकार में ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के आधा दर्जन नेताओं को मंत्री बना कर संतुलन साधा गया है।
उमा भारती और प्रहलाद पटेल की उपेक्षा के मायने
कोर ग्रुप सहित अन्य कमेटियों के गठन में बीजेपी की पिछड़ा वर्ग की राजनीति का एक चेहरा साफ दिखाई देता है। यह चेहरा है शिवराज सिंह चौहान। पार्टी ने पिछड़ा वर्ग के आरक्षण के बहाने ओबीसी वर्ग को लुभाने की कोशिश की है। 2003 के चुनाव में उमा भारती पिछड़ा वर्ग का बड़ा चेहरा बन कर उभरी थी। फिर, उनका स्थान शिवराज सिंह चौहान ने ले लिया।
कोर ग्रुप में उमा भारती का शामिल नहीं होना चौंकाता है जबकि वे पिछले दिनों खासी सक्रिय हुई थीं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह को कोर ग्रुप और प्रदेश चुनाव समिति में शामिल करवाया है। जबकि पिछले दिनों दोनों नेताओं के बीच मतभेद की खबरें थीं। पिछड़ा वर्ग की राजनीति का केंद्र बन कर उभर रहे भूपेंद्र सिंह अलग थलग दिखाई देने लगे थे। माना गया कि पिछड़ा वर्ग की राजनीति का एक अन्य केंद्र उभरना शिवराज सिंह को रास नहीं आया था। अब जबकि दोनों में सुलह की खबरें हैं तो भूपेंद्र सिंह को शामिल कर उमा भारती को साइड लाइन कर दिया गया है। इसके साथ ही पिछड़ा वर्ग की राजनीति के एक अन्य छोर केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल राज्य संगठन में उपेक्षित हैं।
चुनावों को ध्यान में रखकर गठित बीजेपी की चार समितियों में से एक में भी प्रहलाद पटेल के लिए जगह नहीं बन है। उमा भारती की ही तरह प्रहलाद पटेल भी इनदिनों खासे सक्रिय हैं। जहां प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने वाले केंद्रीय मंत्रियों को कोर ग्रुप में जगह मिली है वहीं प्रहलाद पटेल का न होना पिछड़ा वर्ग की राजनीतिक बिसात से जोड़ कर देखा जा रहा है।
कवि और कथा पर दांव लगाती कांग्रेस
पंचायत चुनाव, नगरीय निकाय चुनाव, विधानसभा चुनाव और फिर 2024 में लोकसभ चुनाव। गांव से दिल्ली तक की सरकार चुनने की इस कवायद में अपनी उपस्थिति पुख्ता करने के लिए कांग्रेस हर तरह का जतन कर रही है। अपने संगठन को दुरूस्त करने तथा मैदान में सक्रियता बढ़ाने के साथ अब लोकप्रिय साधनों को आजमाया जा रहा है। पिछले कई सालों से मंच से ललकार और नारे नुमां कविताएं गूंज रही हैं। कथाओं में भी कथावाचक खुल कर राजनीतिक स्टैंड ले रहे है। अब प्रदेश कांग्रेस ने भी तय किया है कि वह कवि सम्मेलनों और कथाओं के जरिए अपनी राजनीति चमकाएगी।
बीते कुछ वर्षों में कवि सम्मेलनों के आयोजन की परंपरा कुछ कम हुई है मगर अब यह फिर रफ्तार पकड़ रही है। बीजेपी के कई मंत्री और नेता अपने क्षेत्रों में नियमित कवि सम्मेलन व कथाओं का आयोजन कर करते हैं। इन मंचों से जहां संगठन और सरकार की नीतियों की तारीफ होती है, वहीं विपक्ष पर जमकर निशाना साधा जाता है। विपक्षी नेताओं का मखौल उड़ाया जाता है।
इस सूत्र को पकड़ते हुए कांग्रेस प्रदेश में कवि सम्मेलनों के माध्यम से सरकार के खिलाफ माहौल बनाने की तैयारी कर चुकी है। इस क्रम का पहला आयोजन भोपाल हो चुका है। भोपाल की सफलता से उत्साहित कांग्रेस संगठन एक दर्जन शहरों में ऐसे आयोजन करने का निर्णय ले चुकी है।
कांग्रेस नेता अपने क्षेत्र में धार्मिक आयोजन कर साफ्ट हिंदुत्व के एजेंडे पर आगे बढ़ रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविन्द सिंह द्वारा लहार में करवाई गई भागवत कथा आयोजन की भव्यता के कारण चर्चा में आई थी। कथा के बाद ही गोविंद सिंह नेता प्रतिपक्ष बनाए गए तो कहा गया कि उन्हें तुरंत ही कथा का लाभ हुआ है। अब कांग्रेस के एक और बड़े नेता जीतू पटवारी इंदौर में पं. प्रदीप मिश्रा से शिव पुराण कथा करवाने जा रहे हैं। यह आयोजन जुलाई में होगा। प्रदीप मिश्रा अपने राजनीतिक बयानों के कारण भी चर्चा में रहते हैं। ऐसे में जीतू पटवारी जब जजमान होंगे और पंडित मिश्रा कथा वाचक तब उस कथा आयोजन से निकला संदेश कितनी दूर पहुंचेगा देखना होगा।