जी भाई साहब जी: सीएम शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय सिंह के निवेश का रिटर्न क्या
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय सिंह चौहान जब इंदौर में आयोजित ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट में पहुंचे तो लोग चौंक गए। कार्तिकेय सिंह चौहान इंवेस्टर्स समिट में आखिर क्यों पहुंचे? दूसरी तरफ देश के सबसे चर्चित समाजवादी नेता शरद यादव की अंतिम विदाई अपने राजनीतिक कारणों से चर्चा में है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बड़े बेटे कार्तिकेय सिंह चौहान उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद कई दिनों से अपने पिता के गृहक्षेत्र बुधनी में सक्रिय है। राजनीतिक रूप से अपनी जमीन मजबूत कर रहे कार्तिकेय सिंह ने बतौर एंटरप्रेन्योर भी हाथ आजमाया है। विधानसभा चुनाव के पहले जारी राजनीतिक कयासों के बीच वे राजनीति और उद्योग दोनों ही क्षेत्रों में अपने हाथ आजमाते दिखाई दे रहे हैं।
अपने पिता की ही तरह कार्तिकेय सिंह चौहान ने बुधनी में जनता के बीच जा कर अपनी छवि तथा संपर्कों को सुधारा है। बुधनी विधानसभा के रेहटी में प्रेम-सुंदर मेमोरियल क्रिकेट प्रतियोगिता का दो साल से आयोजन युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता को बढ़ाने वाला कदम साबित हुआ है। जब प्रदेश में रोजगार एक मुद्दा बन रहा है ऐसे में उन्होंने ‘मामा कोचिंग क्लास’ आरंभ कर एक पहल और की है। इस कदम के पीछे का उद्देश्य साफ करते हुए स्वयं कार्तिकेय सिंह ने कहा है कि हमने शाहगंज एवं नसरुल्लागंज में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए सीएसआर एवं गैर सरकारी संगठनों के सहयोग से नि:शुल्क कोचिंग प्रारंभ की है। इसका उद्देश्य है कि शासकीय भर्तियों में बुधनी के अधिक से अधिक युवाओं का चयन हो। सोमवार को बुधनी में आयोजित लाड़ली लक्ष्मी योजना 2.0 के कार्यक्रम में भी बतौर मेहमान उपस्थित हुए।
ये सारे कदम राजनीतिक की मजबूत जमीन तैयार करने के प्रयत्न हैं तो दूसरी तरफ उनका परिचय उद्यमी के रूप में भी है। पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने भोपाल के पॉश इलाके बिट्टन मार्केट में एक फ्लावर शॉप आरंभ की थी। साथ ही विदिशा में परिवार के फार्म हाउस पर डेयरी का संचालन भी शुरू किया है। उनका डेयरी ब्रांड ‘सुधामृत’ अपनी पहचान बना रहा है।
यही वजह है कि जब कार्तिकेय सिंह चौहान इंदौर में आयोजित ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट में पहुंचे तो लोग चौंक गए। कयास लगाए गए कि वे राजनीतिक पृष्ठभूमि के कारण पहुंचे हैं या डेयरी उद्योग विस्तार की उम्मीद लिए। वे राजनीतिक और इंडस्ट्री दोनों ही क्षेत्रों में अपनी उर्जा का निवेश कर रहे हैं, देखना होगा कि किसका रिटर्न किस रूप में प्राप्त होता है।
बीजेपी को समझ आया यात्रा का महत्व, एक और यात्रा की तैयारी
प्रदेश की राजनीति में यात्रा का बड़ा महत्व रहा है। यात्राओं ने राजनीतिक समीकरणों को बदला है। यही कारण है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के बाद बीजेपी भी यात्रा के महत्व को नजरअंदाज नहीं कर पा रही है। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान आदिवासी जागरूकता यात्रा निकालने वाली बीजेपी एक और यात्रा की तैयारी कर रही है।
मिशन 2023 को फतह करने के लिए डबल इंजन की सरकार के विकास को अपना नारा बनाने वाली बीजेपी 1 फरवरी से प्रदेश में विकास यात्राएं आयोजित करेगी। यात्राओं में प्रभारी मंत्रियों के साथ विधायक और अन्य नेता शामिल होंगे। नेताओं से कहा गया है कि इन यात्राओं के दौरान हर क्षेत्र में कम से कम एक लोकार्पण और शिलान्यास कार्यक्रम आयोजित किया जाए ताकि जनता में संदेश जाए कि सरकार काम कर रही है। बीजेपी संगठन की बैठकों में आरोप लगते रहे हैं मंत्री जनता के बीच जाते नहीं है। इसलिए भी विकास यात्रा के जरिए सरकार अपने मंत्रियों को जनता के बीच भेज रही है ताकि कार्यकर्ताओं और जनता की नाराजगी को कुछ हद तक दूर किया जा सके।
तय किया गया है कि इन यात्राओं की रूपरेखा जिले के प्रभारी मंत्री से चर्चा कर कलेक्टर तैयार करेंगे। मंत्रियों को जनता के बीच जाने का सीधा संदेश देने के लिए ही मुख्यमंत्री चौहान ने 18 जनवरी की सुबह एक बैठक बुलाई है। दिल्ली में आयोजित बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक 17 जनवरी को खत्म होगी और वहां से आने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मंत्रियों से चर्चा करेंगे। सभी मंत्रियों से कहा गया है कि वे इस बैठक में अवश्य शामिल हों। बैठक में मुख्यमंत्री चौहान साफ कर देंगे कि यात्रा में लापरवाही न करें। यात्रा में रह कर भी मंत्री जनता से संपर्क नहीं करेंगे तो फिर कब करेंगे?
आखिर बीजेपी का संगठन इतना कमजोर क्यों दिख रहा है?
कुशाभाऊ ठाकरे जैसे संगठन मंत्रियों के परिश्रम से खड़ी हुई बीजेपी अपने नेताओं की दबंगता और अनुशासप्रियता के कारण जानी जाती है। मुख्यमंत्री रहे नेता सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी, वीरेंद्र सकलेचा के साथ संगठन के कर्ताधर्ता प्यारेलाल खंडेलवाल, विजयाराजे सिंधिया, बाबूलाल गौर से लेकर संगठन महामंत्री रहे कप्तान सिंह सोलंकी तक हमने पाबंद नेताओं का एक दौर देखा है। ये नेता न तो संगठन के बनाए नियमों को अवहेलना देखते थे न नियमों को लेकर किसी से भेद करते थे। साफगोई उनका चरित्र थी।
इन नेताओं के संगठन बीजेपी के नेतृत्व को इतना कमजोर पहले कभी नहीं देखा गया। सांसद प्रज्ञा ठाकुर और मंत्री उषा ठाकुर के विवादास्पद बयानों पर चुप रहने वाला संगठन पूर्व मंत्री और पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष गौरीशंकर बिसेन और केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते द्वारा खुल कर अपशब्दों के प्रयोग पर भी चुप्पी साधे हुए है। वायरल वीडियो में केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते कांग्रेस सरकार की आलोचना करत हुए अमर्यादित भाषा का प्रयोग करते दिखाई दे रहे हैं तो गौरीशंकर बिसेन परिवहन अधिकारी के लिए अपशब्दों प्रयोग कर रहे हैं।
हाल ही कि इन किसी भी घटनाओं पर संगठन ने सावर्जजनिक रूप से कोई टिप्पणी या नाराजगी जताता हुआ बयान जारी नहीं किया गया है। मानो इन नेताओं के बयान से संगठन की मूक सहमति हो। कयास लगाए जा रहे हैं कि प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का कार्यकाल खत्म हो रहा है। वे किसी वरिष्ठ नेता के साथ अभी कोई पंगा मोल लेना नहीं चाहते हैं। संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा भी अपेक्षाकृत युवा हैं और वे भी फिलहाल स्थितियों को देखभाल रहे हैं। इस रूको और देखो की नीति के कारण संगठन कमजोर साबित हो रहा है।
शरद यादव ने जिनके लिए उम्र खपा दी वे अंतिम कांधा तक देने न आए
पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के कार्यकाल में केंद्रीय कपड़ा और खाद्य प्रसंस्करण मंत्री रहे शरद यादव का मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम स्थित पैतृक ग्राम आंखमऊ में अंतिम संस्कार किया गया। जितना उतार-चढ़ाव भरा उनका राजनीतिक जीवन रहा उतनी ही हैरतभरी उनकी अंतिम विदाई भी रही। जिनसे वे उम्र भर लड़ते रहे वे तो उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए मगर जिस विचारधारा के लिए वे समर्पित रहे उस धारा के प्रतिनिधि और मित्र अंतिम विदा में शामिल नहीं हुए।
होशंगाबाद (आज का नर्मदापुरम) जिले में जन्मे शरद यादव ने जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। राममनोहर लोहिया के बाद वे समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण के अनुयायी हुए। उन्होंने संपूर्ण क्रांति आंदोलन में खुलकर भाग लिया। इस वजह से जेल भी गए। कांग्रेस तथा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कार्यशैली का जमकर विरोध करने वाले शरद यादव जबलपुर से 1974 में विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारे गए और जीत कर संसद पहुंचे।
राजनीतिक समीकरणों के चलते वे मध्यप्रदेश से उत्तरप्रदेश व बिहार में सक्रिय हुए। 1989 में वीपी सिंह सरकार में ‘मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करवाना उनका सबसे बड़ा कार्य माना जाता है। शरद यादव मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार से कुल सात बार सांसद चुने गए थे।
देश के दिग्गज समाजवादी नेता शरद यादव समाजवादी साथियों लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह और नीतीश कुमार के साथ अपनी विचारधारा को मजबूत करने के लिए हमेशा खड़े रह मगर जब उन्हें विदा करने की बारी आई तो सारे समाजवादी साथी गायब हो गए। नीतिश कुमार से तो उन्होंने स्वयं दूरी बढ़ा ली थी मगर अंतिम समय में नीतिश कुमार भी मतभेद को भूला कर अपने साथी को विदा करने नहीं आए। यहां तक कि मध्य प्रदेश के समाजवादी नेता रघु ठाकुर भी अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हुए। सभी ने केवल बयानों में शरद यादव को याद किया।
जबकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह भोपाल में पार्थिव देह के आने से लेकर गृहग्राम में अंतिम संस्कार तक में शामिल हुए। बीजेपी की ओर से भोपाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा तथा अंतिम संस्कार में केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल पहुंचे। एक जुझारू और लड़ाका नेता की ऐसी विदाई भी हमारे समय का सच है।