जी भाईसाहब जी: चल तो रही है सिर्फ शिवराज सिंह चौहान की मन‍मर्जियां

MP Election 2023: इधर चुनाव आचार संहित लगी और उधर बीजेपी ने अपनी चौथी सूची जारी कर दी है। इस सूची में सबसे चौंकाने वाली बात यही है कि इसमें कुछ भी चौंकाने वाला नहीं है। दूसरी तरफ, कांग्रेस की सूची का इंतजार है। लगता है यह इंतजार कड़वे दिन बीतने और नए दिन आने के साथ ही खत्‍म होगा। 

Updated: Oct 10, 2023, 02:18 PM IST

मिशन 2023 के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भोपाल में सभा के कुछ घंटों बाद जब बीजेपी ने 25 सितंबर को अपने 39 प्रत्‍याशियों की दूसरी सूची जारी की तो राजनीतिक हड़कंप मच गया था। मध्‍य प्रदेश की राजनीति में यह पहला मौका था जब किसी दल ने अपने केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारा था। इस सूची के बाद एक राजनीतिक धमक कायम हो गई थी। अंदाजा लगाया जा रहा था कि अब बीजेपी अगली सूचियों में ऐसे ही चौंकाने वाले सख्‍त फैसले लेगी। लेकिन सोमवार को जब चौथी सूची आई तो लोग चौंक गए कि इसमें कुछ ऐसा नहीं था जैसा अंदाजा लगाया जा रहा था। 

लग रहा था कि हार की कगार पर बैठे मंत्रियों और विधायकों के टिकट काट दिए जाएंगे मगर ऐसा कुछ हुआ नहीं। बल्कि वे लोग भी टिकट पा गए जो खुद मान चुके थे कि उन्‍हें टिकट नहीं मिलेगा। बीजेपी ने भारी विरोध के बाद भी विधायकों के टिकट काटे नहीं बल्कि शहडोल जिले की दो विधानसभाओं में विधायकों की सीट आपस में बदल दी। जयसिंहनगर से वर्तमान विधायक जयसिंह मरावी को जैतपुर से प्रत्याशी बनाया वहीं जैतपुर से विधायक मनीषा सिंह को जयसिंहनगर से प्रत्याशी घोषित किया गया।

आकलन किया जा रहा है कि यह सब मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस इमोशनल गेम का नतीजा है जो उन्‍होंने अपनी कुर्सी जाती देख कर जनता के बीच खेला है और भावुक हो कर कहा है कि वे चले जाएंगे तो बहुत याद आएंगे। माना गया कि हाईकमान झुक गया है। बारीकी से पड़ताल करें तो पाएंगे कि बात कुछ ओर ही है। दूसरी और चौथी सूची में सारी रणनीति असल में शिवराज सिंह चौहान के मुफीद ही है। दूसरी सूची में पार्टी ने शिवराज सिंह चौहान के प्रतिद्वंद्वी माने जाने वाले सारे बड़े नेताओं को विधानसभा चुनाव में उतार दिया। यह एक तरह से इन नेताओं के कद और दायरे को एक विधानसभा तक समेट देने की तरह है।

चौथी सूची में शिवराज मंत्रिमंडल के सदस्‍य और विधायक टिकट पा गए। जबकि माना जा रहा था कि इस बार कई मंत्रियों के टिकट कटेंगे। इसके पीछे 2018 की हार का तर्क दिया जाता है। 2018 में मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने मंत्रियों को जिद कर टिकट दिलवाए थे और 13 मंत्री चुनाव हार गए थे। यानी हुआ वही जो मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चाहते हैं।   

राजनीति बड़ी दिलचस्‍प होती है। इतनी कि कोण बदल कर देखने पर दूसरा ही दृश्‍य दिखाई देते हैं। जहां एक कोण से दिखाई दे रहा था कि शिवराज सिंह चौहान संकट में हैं और हाईकमान की नाराजगी उन पर भारी पड़ेगी, वही दूसरे कोण से साफ दिखाई देता है कि चाहे कुछ हो जाए, बीजेपी में शिवराज सिंह चौहान की मनमर्जियां ही चल रही हैं।  

इंतजार कीजिए, नए दिन आएंगे 

इंतहा हो गई इंतजार की, आई न कुछ खबर अपने यार की... विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के टिकट के दावेदार और उनके समर्थकों की इनदिनों यही हालत हो गई है। सबसे पहले टिकट की घोषणा करने की तैयारी कर रही कांग्रेस पिछड़ गई है और बीजेपी 136 सीटों पर अपने उम्‍मीदवार उतार चुकी है। अब तो कांग्रेसियों को यही आस सब्र दे रही है कि कड़वे दिन बीतेंगे, नवरात्रि आएगी और सूची जारी होते ही उसके लिए भी नए दिन आएंगे।  

मध्‍य प्रदेश विधानसभा चुनाव की तारीख की घोषणा हो चुकी है, आचार संहिता लग चुकी है, बीजेपी की चार सूचियां जारी हो चुकी हैं, 136 सीटों पर उम्‍मीदवार घोषित हो चुके हैं लेकिन लेकिन कांग्रेस की सूची का इंतजार ही खत्‍म नहीं हो रहा है। कांग्रेस में मंथन, मंथन जारी है। सर्वे और उनकी हकीकत टटोली जा रही है। बेसब्री बढ़ रही है और तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। बात की शुरुआत होते ही पहला सवाल होता है, कब आ रही है सूची। 

इंतजार अधीरता में बदल रहा है और बीजेपी को तंज करने का पूरा मौका मिल गया है। अब आस नवरात्रि से आरंभ हो रहे नए दिनों पर आ कर टिक गई है। जब दिल्‍ली में बैठकों का दौर चला और कहा गया कि पितृपक्ष में सूची जारी होगी तो मुहूर्त को मानने वाले कांग्रेसियों के चेहरे मुरझा गए थे। वे मान रहे थे कि कड़वे दिनों में सूची आना ठीक नहीं है। अब उनकी मुराद पूरी हो सकती है। अब बात नवरात्रि पर जा कर टिक गई है। कांग्रेस कार्यकर्ता मान रहे हैं कि इतने दिन देरी हुई है तो कुछ दिनों का इंतजार और सही। अब नए दिन के साथ ही सूची घोषित हो ताकि नए साल में नई सरकार के इरादे पूरा हो सके। 

दिन गिन रहे हैं दिमनी के वासी, कब आएंगे नेताजी  

बीजेपी ने 25 सितंबर को दूसरी सूची जारी की थी। इस सूची में कैलाश विजयवर्गीय, नरेंद्र सिंह तोमर, फग्‍गन सिंंह कुलस्‍ते, प्रहलाद पटेल जैसे बड़े नाम थे। ये सभी नेता अपने क्षेत्र में जुट गए हैं लेकिन अचरज है कि कृषि मंत्री और चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक नरेंद्र सिंह तोमर 15 दिन गुजर जाने के बाद भी अपने क्षेत्र में नहीं गए हैं। 

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का पैतृक गांव पोरसा दिमनी विधानसभा क्षेत्र में आता है और इसी कारण इस क्षेत्र को उनका गढ़ माना जाता है। इसबार भी वे अपने समर्थक के लिए इस सीट से टिकट मांग रहे थे। फिलहाल इस सीट से कांग्रेस नेता रवींद्र सिंह तोमर विधायक हैं। ग्‍वालियर-चंबल क्षेत्र से ही केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे भी टिकट के दावेदार थे लेकिन बीजेपी ने खुद तोमर को टिकट देकर सारी संभावनाएं खत्‍म कर दी। 

टिकट मिलने के 15 दिन बाद तक क्षेत्र में नहीं जाना नरेंद्र सिंह तोमर की नाराजगी से जोड़ कर देखा जा रहा है। ऐसे में कांग्रेस ने कहा है कि तोमर को जबरदस्ती टिकट दिया गया हे। वे खुद चुनाव लड़ना नहीं चाहते हैं और कोशिश कर रहे हैं कि उनके बदले बेटे को या समर्थक को टिकट दिया जाए। इसी कारण वे क्षेत्र में भी नहीं गए हैं। जबकि समर्थक दावा कर रहे हैं कि तोमर के पास चुनाव प्रबंधन समिति संयोजक की बड़ी जिम्‍मेदारी है, इस कारण वे क्षेत्र में नहीं पहुंचे हैं लेकिन कार्यकर्ता उनके लिए काम कर रहे हैं और वे ही जीतेंगे। 

मंत्री तोमर को छोड़ कर बीजेपी से टिकट मिलने के बाद प्रत्‍याशियों ने मोर्चा संभाल लिया है। बीजेपी के राष्‍ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय इंदौर एक नंबर सीट से टिकट मिलने के बाद लगातार चर्चाओं में बने हुए हैं। वे हरदिन अपने क्षेत्र में बड़े आयोजन कर रहे है। वे अपनी इस सक्रियता के कारण चर्चा में हैं तो केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर अपने चुनाव क्षेत्र में नहीं जाने के कारण चर्चा में हैं। और दिमनीवासियों की गिनती में रोज एक दिन का इजाफा हो रहा है।

माहौल बनाने के लिए मखौल की हद तक घोषणाएं 

हमने अब तक पार्टियों की जंबो कार्यकारिणी देखी है, थोकबंद तबादले देखे जाने हैं, ऑनलाइन सभाओं और संबोधन के बारे में सुना है। नेताओं को योजना का लाभ ऑनलाइन देते हुए देखा है लेकिन एक जगह पर बैठ कर 14 हजार कामों का भूमि पूजन और शिलान्‍यास नहीं देखा। गुजरे हफ्ते मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह रिकार्ड भी बना लिया जब उन्‍होंने भोपाल में बैठ कर यह कारनामा कर दिखाया। यह बात अलग है कि बीजेपी का माहौल बनाने के लिए किए गए इस कारनामे का मखौल भी उड़ा।  

कहते हैं, चुनाव जो न करवाए सो कम। चुनाव में बकरी और शेर के एक घाट पर पानी पीने की कहावतें भी नेताओं के इसी चरित्र को उजागर करती है। चुनाव के पहले विकास यात्रा और विकास पर्व मनाने वाली बीजेपी ने जनआशीर्वाद यात्रा भी निकाली है। सभाओं में मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लगभग सभी समीकरणों को साधते हुए घोषणाएं भी की हैं। जितने काम बीते साढ़े तीन साल में नहीं किए गए उनसे कहीं ज्‍यादा घोषणाएं हो चुकी हैं। 

सवाल उठने लगे कि बीजेपी सरकार ने गुजरे 18 सालों में इतना काम क्‍यों नहीं किया कि अब चुनाव सिर पर आते ही ताबड़तोड़ इ‍तनी घोषणाएं करनी पड़ रही हैं? चुनाव के पहले जनता को लुभाने वाली घोषणाओं व योजनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने भी आंखें तरैरी लेकिन राजनीति पर कोई फर्क नहीं पड़ा। 
चुनाव आचार संहिता लगने की आहट के बीच सीएम चौहान ने भोपाल में आयोजित एक कार्यक्रम में 18 विभागों के 14 हजार 871 कामों का लोकार्पण और शिलान्यास किर दिया। इनमें 12 हजार 301 कामों का लोकार्पण और 7 हजार 819 लाख करोड़ के कामों का भूमिपूजन हुआ है। 53 हजार करोड़ की लागत के इतने कामों का एक साथ लोकार्पण-भूमि पूजन का यह पहला मामला है। 

इस कार्य पर तंज भी खूब हुए। मुख्‍यमंत्री चौहान का एक फोटो वायरल हुआ जिसमें में कांधे पर हल रख कर हेलीकॉप्‍टर से उतरते दिखाई दे रहे हैं। इस पर टिप्‍पणी करते हुए सोशल मीडिया पर एक मीम वायरल हुआ जिसमें कहा गया गया कि बताओ कहीं भूमिपूजन छूट तो नहीं गया।