जी भाईसाहब जी: ज्योतिरादित्य सिंधिया के दरबार में असामाजिक तत्व कौन था
MP Politics: केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया यूं तो जनता दरबार में भलाई करने गए थे लेकिन पूरा मामला आफत मोल लेने जैसा हो गया। जन सुनवाई से वाहवाही की उम्मीद थी लेकिन किरकिरी हो गई। अब प्रशासन कह रहा है कि वह किसी असामाजिक तत्व की कारस्तानी थी। आखिर कौन है, वह असामाजिक तत्व?

महाराज का रूतबा छोड़ कर भाई साहब कहला रहे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का लेकर एक विवाद चर्चा में हैं। बतौर गुना-शिवपुरी सांसद केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पिछोर में जनसुनवाई की। जनता दरबार में 500 से ज्यादा आवेदन आए थे, कुछ आवेदनों का निराकरण हो गया जबकि ज्यादातर आवेदन लंबित थे। आवेदक उम्मीद में थे उनकी बात मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया तक पहुंच जाएगी तो उनकी समस्याओं का निराकरण हो ही जाएगा। लेकिन सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो ने जनता के अरमानों पर ही पानी फेर दिया।
इस वीडियो में दिखाया गया कि जनसुनवाई से ज्योतिरादित्य सिंधिया के जाते ही बचे हुए आवेदन कचरे में डाल दिए गए। बड़े अरमान से दिए गए आवेदनों को कूड़े में देख जनता में नाराजगी फैल गई। मामले ने तूल पकड़ा तो शुरुआत में चुप्पी साधे बैठे जिला प्रशासन ने एक प्रेस नोट जारी कर बताया कि सड़क पर मिले आवेदन मूल आवेदन नहीं है। ये फोटोकॉपी हैं। कर्मचारियों ने पंजीयन के साथ ही आवेदन की फोटोकॉपी करके एक प्रति अपने पास सुरक्षित रख ली है। जो सड़क पर मिले हैं वे दूसरी प्रति हैं। प्रशासन ने यह भी कहा कि कुछ शरारती तत्वों द्वारा बाद में पंजीयन काउंटर पर रखे स्कैन और फोटो कॉपी आवेदन को कर्मचारियों से छीन लिए और यह भ्रम फैला दिया कि कर्मचारियों ने आवेदनों को कचरे में डाल दिया है।
इस मामले में पंजीयन काउंटर पर ड्यूटी पर लगे पटवारी सहित पांच कर्मचारियों पर भी लापरवाही करने पर कार्रवाई की गई है। प्रशासन ने तो अपनी तरफ से लापरवाही पर दोषी कर्मचारियों पर कार्रवाई कर दी। यह भी कह दिया कि असामाजिक तत्वों ने आवेदन छीन कर भ्रम फैलाया है मगर सवाल उठ रहा है कि वे असामाजिक तत्व कौन थे? जिन्हें प्रशासन असामाजिक तत्व सिद्ध करने पर तूला है वे कहीं वे ही लोग तो नहीं हैं जो अपनी समस्या का निराकरण करवाने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया के जनता दरबार में आए थे। आमतौर पर ऐसा होता है कि अपनी समस्याओं से परेशान हो कर लोग सुनवाई न होने पर आपा खो देते हैं। संभव है कि पिछोर में भी अपने आवेदनों को कूड़े में देख आवेदकों में आक्रोश हो। जिन आवेदनों को प्रशासन कॉपी बता रहा है उन्हें जनता असली बता रही थीं क्योंकि उन पर सील लगी हुई थी। ग्रामीणों का कहना है कि, उनके साथ जनता दरबार के नाम जनसुनवाई का मजाक किया गया है।
अब प्रशासन उन कथित असामाजिक तत्वों की खोज कर उनके खिलाफ कार्रवाई करने की तैयारी में हैं। एक शिविर में कुछ आवेदन पत्रों का इधर-उधर हो जाना प्रशासन के लिए मामूली घटना हो सकती है मगर हर आवेदन फरियादी के लिए तो बहुत बड़ी परेशानी को हल करने की दिशा में उठाया गया कदम है। ऐसे कदम पर राजनेता और अफसर जब असंवेदनशील रवैया रखेंगे तो निराकरण की उम्मीद में लोग कहां जाएंगे? फिर तो जनसुनवाई जैसे कार्य सिर्फ एक औपचारिकता भर रह जाएंगे।
थोक में नामों का बदलाव, नाम मात्र की कवायद
चांदगढ़ और चंद्रगढ़ होगा। मुरादपुर कहलाएगा मुरलीपुर। हैदरपुर को हीरापुर, शमशाबाद को श्यामपुर, इस्माइल खेड़ी को ईश्वरपुर, अलीपुर को रामपुर, नबीपुर को नयापुरा और मिर्जापुर को मीरापुर कहा जाएगा। देवास जिले के ऐसे 54 गांव हैं जिन्हें नया नाम मिलगा। यह घोषणा मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने पीपलरांवा गांव के एक कार्यक्रम में की। कार्यक्रम में बीजेपी के जिलाध्यक्ष रायसिंह सैंधव ने गांवों के नाम बदलने की लिस्ट सीएम डॉ. मोहन यादव को सौंपी थी। जनता की मांग है कि गांवों के नाम बदल दिए जाएं। यह सुनते ही सीएम डॉ. मोहन यादव ने मंच से ही प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। सीएम डॉ. मोहन यादव ने कलेक्टर को नाम बदलने के लिए प्रक्रिया को भी शुरू करने के निर्देश दिए हैं।
मध्य प्रदेश में गांवों के नाम बदले का यह सिलसिला कुछ समय से जारी है। मोहन सरकार में अब तक 65 गांवों के नाम बदले जा चुके हैं। जनवरी में सीएम डॉ. मोहन यादव ने शाजापुर जिले के 11 गांवों के नाम बदले थे। उज्जैन दौरे के दौरान भी मुख्यमंत्री ने 3 गांवों के नाम बदलने का फैसला किया था। पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी नसरुल्लागंज का नाम बदलकर भैरूंदा कर दिया था। उनके ही शासनकाल में भोपाल के इस्लाम नगर का नाम जगदीशपुर और होशंगाबाद का नाम बदलकर नर्मदापुरम किया गया था। हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदल कर रानी कमलापति रेलवे स्टेशन कर दिया है। राज्य सरकार जबलपुर के डुमना एयरपोर्ट का भी नाम रानी दुर्गावती एयरपोर्ट करने के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेज चुकी हैं।
साफ है कि नाम बदलने का जो काम शिवराज सरकार में इक्का-दुक्का था वह मोहन यादव सरकार में थोक में हो रहा है। नाम बदलने की जद में बड़े शहर और स्थल ही नहीं छोटे गांव भी आ चुके हैं। चांदगढ़ हो या चंद्रगढ़, नाम क्या है इस बात से फर्क नहीं पड़ता है लेकिन गांवों की चमक बनी रहे इस बात से जनजीवन पर फर्क पड़ता है। जिस तेजी से नाम बदले हैं, उसी तरह उनकी किस्मत भी चमके तो बात बने।
मंत्री विश्वास सारंग की धर्म राजनीति की हिट फार्मूला
प्रयागराज में जारी महाकुंभ में कई लोग स्नान के लिए पहुंच रहे हैं लेकिन भीड़ के कारण धर्मालू उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में जाने से वंचित हैं। ऐसे में सभी की इच्छा है प्रयागराज भले ही न जा पाएं लेकिन किसी तरह गंगाजल ही मिल जाए। यही चाह नेताओं के लिए अपनी राजनीति चमकाने का अवसर बन जाती है।
मौके की नजाकत को समझते हुए प्रदेश के खेल मंत्री विश्वास सारंग गंगाजल भोपाल ले आए हैं। उन्होंने प्रयागराज से गंगा जल का टैंकर मंगवाया है। इस गंगा जल का वितरण उनके विधानसभा क्षेत्र नरेला में घर-घर किया जाएगा। जनता की चाह को पहचानना और उनकी इच्छा पूरी कर अपना वोट पुख्ता कर लेने में विश्वास सारंग का कोई सानी नहीं हैं। वे अपने क्षेत्र में रक्षाबंधन पर बड़ा कार्यक्रम आयोजित करते हैं और क्षेत्र ही हजारों महिलाएं उन्हें राखी बांधती हैं। वे अपने क्षेत्र की जनता को महाकाल के दर्शन सहित अन्य तीर्थ क्षेत्र की यात्रा पर भेजते रहे हैं। इसके अलावा अपने क्षेत्र में पंडित प्रदीप मिश्रा और बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री को कथा के लिए बुलवाया था। उनकी राजनीति का यह धर्म फार्मूला हिट है और इस फार्मूले को लागू करने का कोई मौका वे खाली नहीं जाने देते हैं।
विक्रांत भूरिया राजनीति के आकाश में नई उड़ान की संभावना
आदिवासी समुदाय में अपनी पहुंच और पकड़ बढ़ाने के लिए कांग्रेस ने एक कदम और बढ़ाया है। मध्यप्रदेश के झाबुआ से कांग्रेस विधायक डॉ. विक्रांत भूरिया को आदिवासी कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया है। कांग्रेस युवा नेतृत्व को आगे बढ़ा रही है। विक्रांत भूरिया की नियुक्ति भी इसी शृंखला का हिस्सा है। संगठन ने विक्रांत भूरिया के पहले डिंडोरी से विधायक ओमकार सिंह मरकाम कांग्रेस की सीईसी (सेंट्रल वर्किंग कमेटी) का सदस्य तथा आदिवासी विधायक उमंग सिंघार को नेता प्रतिपक्ष बनाया था।
संगठन में युवा आदिवासी नेतृत्व की इस हिस्सेदारी का अर्थ है कि कांग्रेस आदिवासी समाज को एक खास संदेश देना चाहती है। उनकी हितैषी पार्टी होने का संदेश। वोट के समीकरण से देखें तो मध्यप्रदेश में 22 फीसदी आबादी आदिवासी है। प्रदेश की 230 में से 47 विधानसभा सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। आदिवासी वर्ग कांग्रेस का परंपरागत वोटर माना जाता है, लेकिन पिछले कुछ साल से ये छिटक सा गया है। जिसके कारण कांग्रेस की आदिवासियों में पकड़ ढीली हुई है। यही कारण है कि जयस जैसे संगठनों के कारण कांग्रेस अपने गढ़ कहे जाने वाले आदिवासी विधानसभा क्षेत्रों में भी हार गई है।
जहां तक विक्रांत भूरिया के क्षेत्र झाबुआ की बात है तो झाबुआ में अब भी कांग्रेस का प्रभुत्व है। 2023 के विधानसभा चुनावों में आदिवासी बहुल झाबुआ जिले की तीन विधानसभा सीटों में से दो सीटों झाबुआ और थांदला पर कांग्रेस को जीत मिली थी जबकि पेटलावद विधानसभा सीट पर बीजेपी की निर्मला भूरिया जीती थीं। 2018 में भी इन तीन में से दो पर कांग्रेस जीती थी। झाबुआ सीट से बीजेपी के गुमान सिंह डामर जबकि पेटलावद विधानसभा सीट पर कांग्रेस के वाल सिंह मैड़ा विजयी हुए थे। थांदला सीट पर दोनों चुनावों में कांग्रेस ही जीती।
बीजेपी की लहर के समय में भी कांग्रेस के साथ रहने वाले क्षेत्र के विधायक डॉ. विक्रांत भूरिया को नई जिम्मेदादी दे कर कांग्रेस ने अपने परंपरागत वोटर को साधने का प्रयास किया है। प्रदेश के युवा कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए डॉ. विक्रांत भूरिया ने युवाओं को जोड़ने के लिए नवाचार किए थे। अब उन्हें देशभर के आदिवासी समाज तक कांग्रेस की पहुंच को बढ़ाने का दायित्व मिला है। यह एक बड़ी जिम्मेदारी है और यदि वे इस दिशा में कुछ ठोस कार्य कर पाते हैं तो अपने पिता कांतिलाल भूरिया की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा पाएंगे।