जी भाईसाहब जी: मामा तो पार्टी के लिए हानिकारक है

MP Politics: मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 15 सालों से प्रदेश की कमान थामे हुए हैं। वे बीजेपी के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से हैं। एक तरफ तो पार्टी को उनका विकल्‍प नहीं मिल रहा है, दूसरी तरफ पार्टी के वरिष्‍ठ नेता और कार्यकर्ता सीएम की कार्यप्रणाली से नाराज है। संगठन कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने में जुटा है तो बीजेपी सरकार को जीत के लिए कांग्रेस की योजना की कॉपी करने से भी गुरेज नहीं है।

Updated: Apr 18, 2023, 02:43 PM IST

शिवराज  सिंह चौहान
शिवराज सिंह चौहान

‘दंगल’ फिल्‍म का चर्चित गाना ‘बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है, हम पे थोड़ी दया तो करो...’ तो आपको याद ही होगा। मध्‍यप्रदेश में बीजेपी ने जब अपने कार्यकर्ताओं की नाराजगी को टटोला तो कुछ इसी अंदाज में जवाब आया। बीजेपी कार्यकर्ता नहीं, संघ के कार्यकर्ता भी अब कुछ इसी तरह से संगठन तक अपनी बात पहुंचाते हुए कह रहे हैं, ‘मामा पार्टी की सेहत के लिए हानिकारक है।’

मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 15 सालों से प्रदेश की कमान थामे हुए हैं। वे बीजेपी के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से हैं। ओबीसी होने के कारण प्रदेश के आधे मतदाताओं तक पहुंच और लाड़ली लक्ष्‍मी योजना जैसी नीतियों के कारण उनकी मैदानी पकड़ को भी सभी जानते हैं। यही कारण है कि पार्टी कई बार के प्रयासों के बाद भी उनका विकल्‍प तलाश नहीं पा रही हैं। मगर इस बार अनेक राजनीतिक फेक्‍टर के कारण शिवराज सरकार के खिलाफ माहौल बना हुआ है। यह विरोध एंटीइनकम्‍बेंसी के कारण जनता में ही नहीं है बल्कि राजनीतिक रूप से महत्‍व नहीं मिलने के कारण वरिष्‍ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं में है। 

कार्यकर्ता पार्टी की रीढ़ हैं और उनकी नाराजगी भारी पड़ेगी। यह जानते हुए संगठन ने 14 वरिष्‍ठ नेताओं को जिलों में भेजा था। इसकी रिपोर्ट 18 अप्रैल को संगठन को सौंपी जानी है। इस बीच मैदान से मिला फीडबैक बताता है कि कार्यकर्ताओं में अपनी सरकार से खासी नाराजगी है। वे मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ब्‍यूरोक्रेसी पर निर्भरता से खफा है। इसी नाराजगी को भांपते हुए संगठन कार्यकर्ताओं का मन टटोल रहा है और तभी राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जेपी नड्डा भोपाल प्रवास के दौरान कह गए थे कि ब्‍यूरोक्रेसी की बात नहीं सुनी जाए, कार्यकर्ताओं की भी सुध लो। वे बीजेपी में गुटबाजी पर भी तंज कर गए थे। 

अब मैदान से फीडबैक मिला है कि कार्यकर्ता मुख्‍यमंत्री की शैली से नाराज है। संगठन को वे साफ साफ कह चुके हैं कि मामा की कार्यप्रणाली पार्टी के लिए हानिकारक है। यह नाराजगी दूर नहीं हुई तो पार्टी को सत्‍ता भी गंवानी पड़ सकती है। मान मनोव्‍वल हुई तो नेताओं को साफ कर दिया कि पार्टी से नाराजगी नहीं है, व्‍यक्ति से नाराजगी है। यही कारण है कि हाल में हुई राजनीतिक नियुक्तियों में असंतुष्‍ट नेताओं को तवज्‍जो दी गई है। जैसे, इंदौर में महापौर टिकट के लिए संघ की पसंद रहे डॉ. निशांत खरे को युवा आयोग का अध्‍यक्ष बना कर नाराजगी दूर करने का प्रयास हुआ है। रतलाम में कैलाश विजयवर्गीय के समर्थक अशोक पोरवाल को महापौर नहीं बनने दिया गया था, उन्‍हें अब रतलात विकास प्राधिकरण का अध्‍यक्ष बनाया है। 

ये तो फौरी प्रबंध है, बड़े असर के लिए पार्टी फिलहाल प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे को आगे कर रही है ताकि शिवराज सिंह चौहान के प्रति व्‍याप्‍त नाराजगी पार्टी के लिए मुसीबत नहीं बन जाए। 

बीजेपी को अब कांग्रेस की योजना की कॉपी करने से गुरेज नहीं 

चुनाव में जीतना किसी युद्ध में जीतने से कम नहीं है तभी तो हर तरह से जीत की जुगत की जाती है। पार्टी में तोड़फोड़ सहित साम, दाम, दंड और भेद जैसे हथकंडों से सत्‍ता पाने के जतन होते हैं। यही कारण है कि कांग्रेस को हर बात पर कोसने वाली बीजेपी की सरकार अब कांग्रेस की योजना की कॉपी करने जा रही है।  

विधानसभा चुनाव से पहले किसान वोटर्स को साधने के लिए है। शिवराज सरकार ने तय किया है कि किसानों को लुभाने के लिए वह छत्‍तीसगढ़ की कांग्रेस की गोबर धन योजना को लागू करके किसानों से गोबर और गौ मूत्र खरीदेगी। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पचमढ़ी में चिंतन शिविर के पहले कैबिनेट के साथियों के साथ बैठक में यह संकेत दिए थे। उसके बाद बात ठंडे बस्‍ते में चली गई थी। अब आदिवासी, महिलाओं, युवा मतदाताओं को साधने के लिए विभिन्‍न योजनाएं लांच कर चुकी शिवराज सरकार ने किसानों को खुश करने के लिए गोबर धन योजना को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है।

मध्‍यप्रदेश के अफसर छत्‍तीसगढ़ की तर्ज पर गोबर धन योजना का प्रारूप बनाने में जुटे हैं। हालांकि अभी गोबर खरीदी के रेट पर माथापच्‍ची जारी है। छत्‍तीसगढ़ में पहले दो रुपए किलो गोबर खरीदा जाता था। अब यह दर बढ़ा कर पांच रुपए कर दी गई है। मध्‍यप्रदेश के अधिकारी बजट की सीमाओं को देखते हुए अभी रेट तय नहीं कर पाए हैं। उनके सामने ऐसा रेट तय करने की चुनौती है जो किसानों को खुश भी कर सके और अधिक खर्च के कारण वित्‍त विभाग नाराज भी न हो। 

गौरतलब है कि छत्‍तीसगढ़ में 2020 में आरंभ की गई गोधन न्याय योजना के तहत गोबर विक्रेता किसानों को 356 करोड से ज्‍यादा का भुगतान किया जा चुका है। मुख्‍यमंत्री भूपेश बघेल की इस योजना ने छत्‍तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार को खासा लोकप्रिय बना दिया है। इसी लोकप्रियता की राह चल कर अपनी सरकार बचाने के लिए मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मध्‍यप्रदेश में यह योजना लागू करने को बेताब हैं।  

बीजेपी नेता रावण हैं, उनका हश्र भी रावण जैसा होगा 

मैहर से बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी पार्टी में अपनी बात की सुनवाई नहीं होने से नाराज है। वे अलग विंध्‍य प्रदेश की मांग कर रहे हैं और विंध्‍य राजनीति में लगातार अपना प्रभाव बढ़ा रहे हैं। अब तक तो वे ही ब्राह्मण वोटों के कारण मैहर सीट पर किसी भी दल के टिकट पर चुनाव जीत जाया करते हैं मगर पिछले साल पंचायत चुनाव में अपने समर्थक खड़े कर त्रिपाठी ने बेहतर प्रदर्शन किया है। इसी प्रदर्शन से मिली ताकत के आधार पर नारायण त्रिपाठी ने अपनी अलग विंध्‍य जनता पार्टी बना ली है।

बीजेपी को चुनौती देते हुए न केवल पार्टी बनाई बल्कि बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री  की कथा की तारीख भी घोषित कर दी। यह कथा 3 मई को होनी थी मगर जैसे ही नारायण त्रिपाठी ने अपनी पार्टी की घोषणा की कुछ देर में धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री  की कथा  निरस्त होने की सूचना आ गई। इससे नारायण त्रिपाठी का राजनीतिक गणित गड़बड़ा गया। कथा निरस्‍त होने से उनके हिंदू वोटों के टूटने की आशंका है। 

कथा निरस्‍त होने पर नारायण त्रिपाठी भड़क गए। उन्‍होंने धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री  से मुलाकात की। इसके बाद खुद त्रिपाठी ने मीडिया को बता कि मैहर क्षेत्र में जनवरी में कथा होगी। मगर उनके समर्थक मायूस हैं क्‍योंकि दिसंबर में चुनाव हो जाएंगे। चुनाव के पहले धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री  की कथा होने का मतलब है वोटो का ध्रुवीकरण। अब जनवरी में कथा होने से चुनाव में तो फायदा होना नहीं जब है। 

कथा में व्‍यवधान के पीछे नारायण त्रिपाठी को बीजेपी के ही षड्यंत्र की बू आ रही है। उनका मानना है कि बीजेपी नेताओं ने दबाव में कथा निरस्‍त कर गई है। इस बात से खफा नारायण त्रिपाठी ने मीडिया से बात में बीजेपी नेताओं की तुलना राक्षण रावण से कर दी। राजनीतिज्ञों को चेताते हुए विधायक नारायण त्रिपाठी ने कहा कि धर्म के ठेकेदार बन बैठे कुछ राजनीतिज्ञ रावण जैसा काम कर रहे हैं। रावण ने ग्रह- नक्षत्रों को अपने यहां बांध रखा था लेकिन उसका हश्र क्या हुआ,यह उन राजनीतिज्ञों को भी समझना चाहिए।

बीजेपी से बगावत कर अलग विंध्य जनता पार्टी बनाने वाले विधायक नारायण त्रिपाठी को अब अपनी की पार्टी के नेता रावण नजर आ रहे हैं। अब देखना होगा चुनाव में जनता रावण-विभीषण में से किसे चुनती है। 

रणनीति से माहौल बनाने तक, कांग्रेस 'इन एक्‍शन'

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 खास है क्‍योंकि 2018 में जनता ने कांग्रेस को चुना था मगर 2020 में ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया व समर्थक विधायकों के कांग्रेस छोड़ देने के बाद बीजेपी की सरकार बन गई। अब दोनों दल जनमत पाने की कोशिश में जुटे हैं। बीजेपी में जहां गुटबाजी और कार्यकर्ताओं की नाराजगी की खबरें हैं तो कांग्रेस ने अपने नेताओं को हर मोर्च पर सक्रिय कर दिया है। 

कांग्रेस को सत्‍ता में वापिस लाने के लिए हारी हुई सीटों पर रणनीतिक रूप से राज्‍यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने मोर्चा संभाल लिया है वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष कमलनाथ ने बीजेपी की मुश्किलें बढ़ाने वाली घोषणाओं से जनता का दिल जीतने का जतन किया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ 500 रुपए में गैस सिलेंडर देने के साथ महिलाओं और युवाओं को लुभाने के लिए बीजेपी से बड़ी घोषणा कर चुके हैं। किसानों के लिए गेहूं की एमएसपी को तीन हजार करने का वादा गेमचेंजर साबित हो सकता है। प्रत्‍याशियों के नाम दो माह पहले घोषित करने, कांग्रेस को जिताने का वादा करने वाले नेताओं को उनके क्षेत्र का जिम्‍मा देने जैसे निर्णयों को अमलीजामा पहनाया जा रहा है। 

रणनीति के स्‍तर पर मोर्चाबंदी के अलावा माहौल बनाने के लिए बीजेपी को उसी के स्‍तर पर जवाब देने की भी तैयारी है। पुजारी सम्‍मेलन के मौके पर प्रदेश कांग्रेस कार्यालय को भगवा झंडों से पाट देना ऐसा ही एक कदम था। अब पार्टी ने अपने नेताओं से कहा है कि वे अपने घरों, दुकानों तथा गाड़ियों पर कांग्रेस का झंडा लगाएं। मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष समन्वय प्रभारी चंद्रप्रभाष शेखर ने पत्र लिख कर कहा है कि सभी कांग्रेसजन कांग्रेस का तिरंगा झंडा हमारे संगठन का गौरव है,हमारे आन बान एवं शान का प्रतीक है। इसी तिरंगे झंडे के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई लड़ी गई। आज हमारा कर्तव्य है कि, हम इस तिरंगे झंडे का सम्मान करें और सभी कांग्रेस जन अपने घर एवं वाहनों पर कांग्रेस का चरखा चिह्न वाला झंडा लगाए।

असल में, पार्टी ऐसे प्रयत्‍न कर मैदान में मौहाल बनाए रखना चाहती है ताकि कार्यकर्ता जीत के प्रति आश्‍वस्‍त हो जाएं और बीजेपी संगठन के खिलाफ एकजुट हो कर चुनाव जीतने तक सक्रिय रहें।