जी भाईसाहब जी: वे दिमनी के दामन पर दाग पर सबूत मांग रहे, विपक्ष दे रहा चुनौती
बीजेपी की जीत के लिए जहां पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह सहित सारे दिग्गज मैदान में हैं वहीं नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय जैसे मध्यप्रदेश बीजेपी के बड़े नेता हर दिन नई मुसीबत से घिरते जा रहे हैं। इनदिनों यह सवाल तेज हो गया है कि क्या इन सबकी मुश्किलें बढ़ाने का काम पार्टी के नेता ही कर रहे हैं?
मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में दिमनी, इंदौर एक नंबर, नरसिंहपुर, निवास जैसी सीट सबसे ज्यादा चर्चा में हैं क्योंकि यहां से नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल, फग्गन सिंह कुलस्ते जैसे दिग्गज नेता मैदान में हैं। जो विधानसभा चुनाव लड़वाने वाले थे वे खुद मैदान में आ गए हैं। तो माना जाना चाहिए था कि इन्हें तो बिना मेहतन जीत जाना है। लेकिन ऐसा है नहीं। जिस तरह के हालात बन रहे हैं उससे तो ऐसा लग रहा है विपक्ष तो ठीक खुद बीजेपी के नेता ही इन दिग्गज नेताओं की राह में कांटें बिछा रहे हैं।
मुश्किलों से घिरे इन नेताओं में सबसे पहला नाम केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का है। शांत, निर्विवाद और भ्रष्टाचार मुक्त छवि वाले मंत्री तोमर पर पहली बार भ्रष्टाचार का आरोप लगा। एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें दावा किया गया कि करोड़ों के लेनदेन की बात करने वाला व्यक्ति तोमर का बेटा है। कांग्रेस ने इस वीडियो की जांच की मांग की तो बीजेपी की ओर से केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल की प्रेस कांफ्रेंस हुई। पत्रकारों से बात में पटेल ने कहा कि कांग्रेस बिना पुष्टि किए आरोप लगा रही है। कांग्रेस की निंदा करने के बहाने बीजेपी ने सबूत ही मांग लिए।
ऐसा करने से विपक्ष को और हमले करने का मौका मिल गया वरना तो जैसे अन्य मुद्दों पर चुप्पी साधी गई वैसा ही मामले पर भी हो सकता था। लेकिन तोमर की मुसीबत घटाने की बजाए बढ़ा दी गई। दूसरी तरफ, दिमनी क्षेत्र के दो बड़े मतदाता वर्ग तोमर और गुर्जर के बीच आपसी विवाद में आरोपी तोमर परिवार के मकान को गिरा कर सरकार ने भी अपने प्रत्याशी नरेंद्र सिंह तोमर का संकट गहरा दिया है। टिकट वितरण के बाद से तोमर अपने क्षेत्र में गए नहीं हैं और इस घटना के बाद तोमर का दिमनी क्षेत्र का पहला दौरा भी रद्द हो गया।
इसी तरह, इंदौर में कैलाश विजयवर्गीय को भी नित नई मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। दिग्गिज नेताओं की इन परेशानियों के पीछे विपक्ष के हमले तो हैं ही खुद की पार्टी का ताना-बाना भी जिम्मेदार माना जा रहा है।
बीएसपी का होना बीजेपी का नुकसान!
मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में कयासों की रोज नई तस्वीर सामने आ रही है। इन तस्वीरों में मीडिया संस्थानों द्वारा करवाए गए सर्वे ने कई रंग भरे हैं। अब ताजा तस्वीर कह रही है कि बीजेपी के प्रभाव के कारण कुछ पिछड़ती दिखाई दे रही कांग्रेस फिर आगे हो रही है। यही सर्वे बता रहा है कि बीजेपी के पिछड़ने की वजह बीएसपी बन रही है।
यह एक चौंकाने वाला आकलन है। जबकि शुरुआत में यह माना जा रहा था कि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) का गठबंधन हर हाल में बीजेपी को लाभ पहुंचाएगा। इसी आकलन के चलते गृहमंत्री अमित शाह ने भी बीजेपी कार्यकर्ताओं को जीत का मंत्र देते हुए कहा था कि जहां कांग्रेस ज्यादा ताकतवर दिखे वहां बीएसपी और सपा को ताकतवर बनाओ।
लेकिन अब मैदानी स्थितियां उलटी नजर आ रही है। बीएसपी के प्रभाव क्षेत्र में दलित वोट बीजेपी से छिटक रहा है जबकि कांग्रेस का प्रतिबद्ध वोट अब भी कांग्रेस के साथ ही है। मतलब की उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे मध्यप्रदेश के इलाकों में बीएसपी की ताकत का बढ़ना बीजेपी को नुकसान पहुंचा रहा है। इस समीकरण को भांप कर बीजेपी ने अपने मतदाताओं को थामे रखने की नई रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है।
जिससे काम नहीं चलता उसका नाम लेने पर मजबूर
विधानसभा चुनाव की तैयारियों के समय से ही बीजेपी ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अलग-थलग कर दिया था। बाद में प्रदेश संगठन पर भी केंद्रीय नेतृत्व का ही नियंत्रण हो गया। प्रचार डबल इंजन की सरकार से ‘एमपी के मन में मोदी, मोदी के मन में एमपी’ पर आ कर टिक गया था। न तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का जिक्र किया जा रहा था न उनकी किसी योजना का।
लेकिन रतलाम की सभा में पहली बार पीएम मोदी ने अपने भाषण में लाडली बहना और लाडली लक्ष्मी योजना का जिक्र किया तो शिवराज समर्थकों की बांछे खिल गई। इस उल्लेख के बाद एकबार फिर सिद्ध हुआ कि शिवराज सिंह चौहान की पूछपरख बीजेपी की मजबूरी है। वे नेता भी मायूस हुए जो पूरी ताकत लगा कर शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाना चाहते हैं और कई दिनों की कोशिशों के बाद यह संभव होता दिखाई भी दे रहा था। गृहमंत्री अमित शाह के मध्यप्रदेश में सक्रिय होने तथा सात केंद्रीय मंत्रियों व सांसदों को मैदान में उतार कर यही संदेश दिया गया था कि प्रदेश में शिवराज की नहीं मोदी और शाह की ही चलेगी।
तब से लेकर हर सभा में मोदी और कांग्रेस की बात हुई लेकिन पीएम मोदी ने शिवराज सरकार का जिक्र तक नहीं किया। बाद में लाडली बहना योजना को बीजेपी की ताकत बनता देख शिवराज और उनकी योजनाओं का उल्लेख करना मजबूरी बन गया। अब समर्थक कह रहे हैं कि कितनी कोशिश कर ले, मामा को हटाना बीजेपी के लिए इतना आसान नहीं है।
प्रदेश की राजनीति में काला कौवा
एक दूसरे पर झूठ का आरोप लगाने वाली बीजेपी-कांग्रेस की राजनीति में कौवा की इंट्री हो चुकी है। यह तो यह नहीं है कि यह काला कौवा किसके झूठ पर काटेगा लेकिन काला कौवा कौन है यह तय हो चुका है और तय किसी ओर ने नहीं बल्कि खुद व्यक्ति ने तय किया है।
मध्यप्रदेश की राजनीति में तमाम फिल्मी किरदारों को चिह्नित किया जा रहा है लेकिन अशोकनगर की रैली में तो केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने खुद को काला कौवा संबोधित करते हुए कहा कि वे कांग्रेस के लिए काला कौआ थे। कांग्रेस को उनसे डरना चाहिए। सिंधिया ने कांग्रेस सरकार ने किसानों की कर्जमाफी के नाम पर 26 लाख फर्जी प्रमाणपत्र बांटे गए। उनमें से कुछ प्रमाणपत्र मैंने भी बांटे। एक पुरानी कहावत है, झूठ बोले कौवा काटे, काले कौवे से डरियो। मैं कांग्रेस के लिए काला कौआ हूं।
इस पर पलटवार करते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा कि सिंधिया भी ऋण माफी के प्रमाणपत्रों के वितरण के गवाह थे। सिंधिया काले हैं या पीले, इसका जवाब मुझे नहीं देना है। सिंधिया कुछ भी कहें, सब जानते हैं कि उनकी क्या डील हुई।
पहले खुद को टाइगर बताने वाले सिंधिया ने अब खुद को कौवा बता दिया है तो उनके इस राजनीतिक रूपांतरण पर भी चटखारे लिए जा रहे हैं।