जी भाई साहब जी: अध्यक्ष गिरीश गौतम ने कहा था नहीं चाहिए वोट, जनता ने नहीं दिए
ऐसे समय में जब मतदाताओं के चरणों में साष्टांग दंडवत प्रणाम कर भी वोट देने की गुहार की जा रही है तब एक राजनेता खुलेआम कहते हैं, मुझे वोट नहीं चाहिए। उनकी बात को सच मान कर लोगों ने वोट नहीं दिए और उनका बेटा चुनाव हार गया। जानिए, इस हार के राजनीतिक मायने।
मध्य प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष गिरीश गौतम इनदिनों बीजेपी में हैं मगर उनकी राजनीति वामपंथ से शुरू हुई थी। 2008 से देवतालाब सीट से लगातार विधायक गिरीश गौतम पेशे से वकील हैं. उन्होंने ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी। यही कारण है उनके राजनीतिक तेवर बरसों बाद भी वैसे ही हैं। वकील थे तो गरीबों से केस की फीस नहीं लेते थे। विधानसभा अध्यक्ष बने तब भी साइकिल से अपने क्षेत्र की परिक्रमा कर चर्चा में रहे।
अपनी शैली और अंदाज के कारण रीवा क्षेत्र की राजनीति में जगह बनाने वाले गिरीश गौतम ने बीजेपी के समीकरणों को भी बदला और 2020 में जब बीजेपी की सरकार बनी तो वे बीजेपी के अन्य कद्दावर नेताओं को पीछे छोड़ कर अध्यक्ष पद के लिए पार्टी की पसंद बने। जाहिर है, इससे क्षेत्र और बीजेपी की अंदरूनी राजनीति में उनका दबदबा बढ़ा है।
यही कारण है कि जब बीजेपी की नेताओं के परिवार के सदस्यों को टिकट ने देने की गाइड लाइन विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम के आगे लागू नहीं हो पाईं। गिरीश गौतम के दमदारी ने अपने बेटे राहुल गौतम को रीवा में वार्ड नंबर 27 से जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में उतारा। उन्होंने बेटे के समर्थन में खुल कर लगातार चुनावी सभाएं की। आरोप लगे कि उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष और विधायक स्वेच्छा अनुदान निधि से सैकड़ों लोगों के खातों में पैसे भी जमा कराए हैं।
इन आरोपों के बीच जब गिरीश गौतम चुनाव प्रचार के लिए अपने देवतालाब विधानसभा क्षेत्र के हटवा गांव में पहुंचे तो लोगों ने इस पर आपत्ति जताई। इस घटन का वीडियो वायरल हुआ है। इस वीडियो में दिखाई दे रहा है कि आरोपों पर विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम ग्रामीणों पर भड़क गए। उन्होंने दावा किया कि इसमें कुछ गलत है तो उन्हें गांव से एक भी वोट नहीं चाहिए।
अपने को पाक साफ साबित करने के लिए गिरीश गौतम ने यह बात ही लेकिन लगता है ग्रामीणों ने उनकी बात को दिल पर ले लिया और जैसा गिरीश गौतम ने कहा था कि मुझे गांव से एक भी वोट नहीं चाहिए, ग्रामीणों ने वोट नहीं किया। तभी तो मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष गिरीश गौतम के पुत्र राहुल गौतम रीवा जिला पंचायत का चुनाव हार गए हैं। उन्हें चुनाव हराने वाला कोई और नहीं उन्हीं का चचेरा भाई और विधानसभा अध्यक्ष का भतीजा पद्मेश गौतम है।
अब अध्यक्ष गिरीश गौतम उस पल को कोस रहे होंगे जब उन्होंने वोट न देने की बात कही थी। वैसे, इस हार ने विंध्य क्षेत्र की नई राजनीतिक तस्वीर पेश की है। बीजेपी के वे सीनियर नेता जो गिरीश गौतम को तवज्जो मिलने से निराश से इस हार से खुश हैं। जहां बेटे की जीत का पूरा दारोमदार गिरीश गौतम पर था वहीं अब स्थानीय नेता आगामी विधानसभा चुनाव की दावेदारी को लेकर भी आशान्वित हो गए हैं।
गिरीश गौतम की उम्र 70 की हो चली है और पार्टी ने 70 की उम्र वाला क्राइटेरिया लागू किया तो उनका टिकट भी कट सकता है। ऐसे में वे पंचायत चुनाव हारे अपने बेटे की पैरवी नहीं कर पाएंगे। तो फिर टिकट किसी ओर के खाते में चला जाएगा। यह ख्याल ही स्थानीय बीजेपी नेताओं का उत्साह बढ़ा रहा है।
मंत्री विधायक बेनूर, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का रंग जमा
प्रदेश में जारी त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में बीजेपी नेताओं के रिश्तेदार चुनाव हार रहे हैं। नगरीय निकाय चुनाव में मंत्रियों और विधायकों की कुर्सी दांव पर लगी है। टिकट की मारामारी के बीच सुरक्षित राह चलते हुए पार्टी ने तय किया है जो दावेदारों की पैरवी करने वाले मंत्रियों व विधायकों पर चुनाव जितवाने की जिम्मेदारी होगी। यानि, जिन मंत्रियों व विधायकों ने अपने समर्थकों को टिकट दिलवाया है वे जीत के लिए रात दिन एक किए हुए हैं। उनकी चिंता यह है कि यदि महापौर हार गए तो विधानसभा चुनाव में कहीं उनका दावा कमजोर न हो जाए।
एक तरफ इस जिम्मेदारी के बोझ से मंत्रियों व विधायकों के चेहरे से रंग गायब है तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पूरे रंग में नजर आ रहे हैं। सारे नेता अपने क्षेत्रों में सिमट गए हैं तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एकोहम् द्वितीयो नास्ति की तर्ज पर छाए हुए हैं।
वे जहां जा रहे हैं, भाषणों से इतर जनता के संपर्क के सारे सूत्र आजमा रहे हैं। जैसे छिंदवाड़ा में कहा कि बच्चे मामा लव यू कहते हैं तो मैं भी उन्हें लव यू टू कह देता हूं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान रविवार को भी गुना पहुंचे तो जनजातीय समाज के लोगों ने उन्हें जनजातीय मुकुट पहनाया। बस फिर क्या था, शिवराज उनसे ऐसे घुलेमिले कि ढोल-मांदल की थाप पर जमकर थिरके भी और आदिवासियों द्वारा उत्साह में मारी जाने वाली कुर्राट भी मारी। गुना में ही सड़क किनारे जूते-चप्पलों को सुधारने की दुकान लगाने वाले लखनलाल ने सीएम का काफिला रोक कर अपने हाथों से बनाए जूते भेंट किए। सीएम चौहान ने यह वीडियो भी सोशल मीडिया पर पोस्ट किया।
अगले दिन पन्ना पहुंचे तो रोड शो के बाद फेमस स्टूडेंट चाट भंडार से चार्ट मंगवाई। पन्ना जिले की प्रसिद्ध पान की दुकान कड़ा पान भंडार से पान मंगवा कर अपने हेलीकॉप्टर में बैठकर खाया। वे इटारसी पहुंचे तो सीपीई हैलीपेड जाते समय अचानक रेलवे स्टेशन की राज टी स्टाल पर रुक गए। दुकान के संचालक ने पिछली बार सीएम का काफिला रुकवाकर चाय पीने का आग्रह किया था, लेकिन उन्होंने अगली बार चाय का वादा किया था। इस बार भी दुकान संचालक ने उन्हें हाथ का इशारा कर चाय के लिए आमंत्रित किया तो चाय की चुस्कियां लेने पहुंच गए। चाय पीने के दौरान सीएम ने जमकर हास परिहास भी किया। इस चाय चौपाल का वीडियो भी सीएम शिवराज सिंह चौहान ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर भी शेयर किया है।
इसका अर्थ यह हुआ कि भले ही चुनावी सभाओं में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के भाषण कम ध्यान आकृष्ट करें मगर यह अंदाज सुर्खियां बटोर रहा है। फिर क्या हुआ जो विपक्ष उन्हें कलाकार कह कर आड़े हाथों लेता है।
ऐसा क्या हुआ कि प्रज्ञा ठाकुर कर ‘पेशी’ हो गई?
भोपाल की सांसद प्रज्ञा ठाकुर अपनी कट्टरता और तीखे बोल के कारण जानी जाती हैं। वे सार्वजनिक मंचों से ललकारने वाले शब्दों का खुल कर इस्तेमाल करती है। बैठकों में भी उनके तेवर कट्टर ही होते हैं। मगर राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि इस बार ऐसा क्या हुआ कि उनके लिहाज से सामान्य व्यवहार पर भी बीजेपी ने एक्शन ले लिया और जवाब तलब कर लिया।
कुछ माह पहले साइबर अपराध का शिकार होने से बवी सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाई कि उन्हें अंजान नंबर से कॉल करके जान से मारने की धमकी दी गई है। शिकायत में कहा गया था कि धमकी देने वाले ने खुद को अंडरवर्ल्ड सरगना दाऊद इब्राइम और इकबाल कासकर का आदमी बताया था। धमकी वाले कॉल का वीडियो भी वायरल हुआ। इसमें अपने स्वभाव के विपरीत प्रज्ञा ठाकुर शांत स्वर में बात करती दिखाई दे रही हैं। मगर सोशल मीडिया पर उनका जवाब आक्रामक हो गया।
धमकी को लेकर सोशल मीडिया के जरिए पलटवार करते हुए प्रज्ञा ठाकुर ने लिखा था, ''हां, मैं भोपाल में हूं। हिंदुओं के हत्यारे भगोड़े दाऊद और इकबाल कासकर के छर्रों द्वारा मेरी हत्या की धमकी- अब उनके स्लीपर सेल सक्रिय, 18 को धमकी और 20को हत्या! अरे धमकी देनेवाले सुअर की औलादों तुम्हारी दम भारत आने की नहीं और मुझे मारोगे? हां मैं भोपाल में ही हूं और मुझे ठोकना भी आता है.''
खबर है कि इस ट्वीट के बाद प्रज्ञा ठाकुर को प्रदेश संगठन ने पार्टी कार्यालय में तलब किया था। यहां उनकी भाषा पर आपत्ति जताई गई। संगठन इसके पहले भी कड़वे बोल पर प्रज्ञा ठाकुर को हिदायत देता रहा है। मगर प्रज्ञा ठाकुर समर्थक यह नहीं समझ पा रहे हैं कि हर बार तो उनके तीखे बोल पर कोई एक्शन नहीं होता। फिर इस बार ऐसा क्या हुआ कि संगठन ने उन्हें कार्यालय बुला कर बात की?
इस प्रक्रिया के पीछे लोकसभा 2024 का गणित भी है। एक तरफ जहां, प्रज्ञा ठाकुर अपनी सक्रियता और तीखे तेवर बनाए रख दोबारा टिकट पर दावा मजबूत रखना चाहती है वहीं संगठन में जैसे उनकी माइनस मार्किंग शुरू हो गई है। हिसाब रखा जा रहा है कि उन्होंने कब-कब, क्या-क्या गलतियां की ताकि जब टिकट काटने की बारी आए तो हिसाब बताया जा सके। विरोधी भी अपने स्तर पर गणित बैठाने में जुटे हैं।
सवाल तो यह भी उठ रहे हैं कि रिपोर्ट होने, सबूत के तौर पर धमकी वाले कॉल की रिकार्डिंग होने के बाद भी पुलिस ने अब तक धमकी देने वाले के बारे में कोई खुलासा क्यों नहीं किया है? अब तक इस मामले में किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। खैर, धमकी और धमकी के जवाब से शह-मात की राजनीति जरूर शुरू हो गई है।
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शोभा ओझा के अचानक सक्रिय होने के मायने
यह वह समय है जब नगरीय निकाय चुनाव को लेकर सभी राजनेता सक्रिय हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने संगठन के स्तर पर मोर्चा संभाला हुआ है। टिकट वितरण से लेकर मिशन 2023 तक के समीकरणों को जांचा व परखा जा रहा है। इसी के आधार पर नेताओं का भविष्य तय हो रहा है। ऐसे महत्वपूर्ण समय में महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष रही शोभा ओझा के अचानक सक्रिय होने के मायने तलाशे जा रहे हैं।
2020 में जब कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था तब कुछ नेताओं को विभिन्न आयोग की कमान सौंपी थी। तब शोभा ओझा को राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। सरकार में आने के वैधानिक कारणों से बीजेपी सरकार शोभा ओझा को पद से हटा नहीं पाई। मगर शोभा ओझा समय समय पर सरकार का सहयोग न मिलने की बात कहती रहीं।
अब नगरीय चुनावों की सरगर्मी के बीच उन्होंने अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी। शोभा ओझा ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा है कि सरकार ने राज्य महिला आयोग की संवैधानिक रूप से गठित कार्यकारिणी को भंग करने का प्रयास कर उसे न्यायालयीन प्रक्रियाओं में उलझा कर हजारों महिलाओं को न्याय से वंचित करने का अन्यायपूर्ण व अक्षम्य कार्य किया है। ओझा ने खुद को एक ऐसा अशक्त मुखिया बताया जिसके सारे अधिकार छीन लिए गए हो।
माना जा रहा है कि शोभा ओझा सक्रिय राजनीति में अपना भविष्य आजामाना चाहती हैं। संगठन में काम करेंगी या मालवा खासकर इंदौर की किसी सीट पर विधानसभा टिकट के लिए दावेदारी करेंगी यह तो भविष्य में पता चलेगा मगर फिलहाल तो वे एक अच्छा मौका खो चुकी हैं।
कमलनाथ सरकार में जिन लोगों ने शोभा ओझा के पॉवर को देखा है, उनके लिए यह अचरज का विषय था कि लगभग दो साल तक आयोग में इतनी अशक्त बन कर बैठी कैसे रहीं? वे अपने स्तर पर महिलाओं के हक की लड़ाई को आवाज दे सकती थी। उनका संबल बन सकती थीं। महिलाओं के साथ हुई घटनाओं पर सक्रिय होती तो सरकार भी परेशानी से घिर सकती थीं। वे चाहती तो सरकार के लिए रोज संकट खड़ा करती मगर वे निष्क्रिय बनी रहीं।