जी भाईसाहब जी: शिवराज सिंह चौहान का रास्ता रोक कर खड़ी हो गईं उमा भारती
MP Politics: एक तरह से राजनीतिक संन्यास की घोषणा कर चुकी उमा भारती फिर पुराने तेवर में दिखीं। अंदाज और शब्द उतने ही तीखे। इस बार उनका निशाना अपनी ही पार्टी के दो पूर्व मुख्यमंत्री थे। उमा भारती का यह कदम राजनीतिक बदले का भाव देखा जा रहा है।

पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती बीस साल बाद केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान का रास्ता रोक कर खड़ी हो गई हैं। यह निष्कर्ष उमा भारती की हाल की सक्रियता के कारण निकाला जा रहा है। सब मान चुके थे कि उमा भारती अब गुजरे जमाने की बात हो गई हैं। खुद बीजेपी भी उन्हें लगभग भूला चुकी है। पिछले दो सालों में उनकी छुटपुट राजनीतिक बयानबाजी और शराब विरोधी आक्रामकता भी अब शिथिल हो चली थी कि यकायक उमा भारती अपने पुराने पुराने फायरब्रांड अंदाज में लौट आईं। मीडिया से चर्चा में उमा भारती ने कहा कि उनकी अपनी ही पार्टी की सरकारों में उन्हें और उनके परिवार को ‘प्रताडि़त’ किया। उनके कहे ने मध्यप्रदेश से लेकर दिल्ली तक की राजनीति को सकते में डाल दिया।
उन्होंने नाम नहीं लिया लेकिन व्यापमं का जिक्र करते हुए उमा भारती पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर निशाना साधा। माना जा रहा है कि शिवराज सिंह चौहान की नेगेटिव मार्किंग के लिए उमा भारती ने यह मुद्दा उठाया। उमा के तीखे तेवरों के पीछे बीस साल पुराना मामला है। 2003 में मध्यप्रदेश में बीजेपी उमा भारती के चेहरे पर ही सत्ता में आई थी। लेकिन जिसकी उमा भारती हकदार थीं, वो उन्हें बहुत लंबे समय तक नहीं मिल पाया। कर्नाटक के हुबली में हुए एक मामले में गैर जमानती वारंट होने से पूरी कहानी पलट गई और उमा को कुर्सी छोड़नी पड़ी। उन्हें उम्मीद थी कि वापस आने पर उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। यूं भी केस ऐसा नहीं था कि उन्हें दोबारा पद नहीं मिलता लेकिन तब तक राजनीतिक बदल चुकी थी। 2005 में उमा के आने के बाद बाबूलाल गौर हटे जरूर लेकिन कुर्सी शिवराज सिंह चौहान के पास चली गई।
यह उमा भारती की राजनीति का टर्निंग पाइंट था। उन्होंने बगावत की। नई पार्टी बनाई। बीजेपी में लौटी और केंद्रीय मंत्री भी बनाई गईं लेकिन एमपी की राजनीति से दूर कर दी गई। वैसा ही शिवराज सिंह चौहान के साथ हुआ है। सबसे ज्यादा समय तक एमपी के सीएम रहे शिवराज सिंह चौहान के लिए अब एमपी में जगह नहीं है। उन्हें बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष का दावेदार बताया जा रहा है। ऐसे समय में अपनी प्रताड़ना की बात कह कर उमा भारती ने दिल ही हल्का नहीं किया बल्कि जिन्हें भाई कहती रहीं, उन शिवराज सिंह चौहान की राह में बाधा भी खड़ी कर दी।
कैलाश और मोहन का डमरू, राजनीति के झांझ-मंजीरें
कभी लगता है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के संबंध बहुत मधुर है, कभी यह आरोप सही लगता है कि मोहन के आगे कैलाश बेबस हो गए है। सावन सोमवार को जब दोनों नेता उज्जैन पहुंचे तो महाकाल की शाही सवारी मार्ग में कहीं कैलाश ने डमरू बजाया तो मोहन ने मंजीरे से ताल मिलाई। कहीं मोहन ने डमरू बजाया तो कैलाश ने मंजीरे। सड़क पर एकदूसरे की ताल से ताल मिला रहे इन नेताओं को देख इंदौर में कैलाश विजयवर्गीय द्वारा की गई शिकायत और डॉ. मोहन यादव द्वारा उसे अनसुना कर देना याद आया।
बात सीएम डॉ. मोहन यादव की पिछली इंदौर यात्रा के समय की है। उनके समक्ष सार्वजनिक रूप से एक बार फिर कैलाश विजयवर्गीय ने अपनी पीड़ा उजागर की। मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि वे रेवती रेंज पहाड़ी पर 21 लाख पौध लगाना चाहते हैं। यह बीजेपी के ‘एक पौधा मां के नाम’ अभियान का हिस्सा है। लेकिन इस अभियान में वन विभाग का सहयोग नहीं मिल रहा है। कैलाश विजयवर्गीय ने मुख्यमंत्री से सहायता मांगी कि वन विभाग पौध नहीं दे रहा है। विदेश जाने के पहले सीएम विभाग को निर्देश दे कर जाएं।
कार्यकर्ताओं के लिए यह चौंकाने वाली बात थी कि इंदौर के भाई कहे जाने वाले कैलाश विजयवर्गीय को सार्वजनिक रूप से मुख्यमंत्री के सामने गुहार लगाना पड़ रही है। जबकि यह बात अकेले में भी हो सकती थी। मंच से कही गई कैलाश विजयवर्गीय की बात को सीएम ने अनुसना भी कर दिया, जबकि वे वन विभाग के मंत्री होने के साथ-साथ इंदौर के प्रभारी भी हैं। इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के अधीन आने वाले जनसपंर्क विभाग ने एक प्रेसनोट जारी कर साफ किया कि वन विभाग के पास बहुत पौधे हैं। जिन्हें भी रोपण के लिए पौधे चाहिए वे कीमत दे कर खरीद सकते हैं।
यह एक तरह से कैलाश विजयवर्गीय की शिकायत का जवाब माना गया। कांग्रेस ने तंज भी किया कि कैलाश विजयवर्गीय की स्थिति ‘शोले फिल्म के ठाकुर’ की तरह हो गई है। यह कहने के पीछे वजह है कैलाश विजयवर्गीय द्वारा समय-समय पर सार्वजनिक रूप से की गई शिकायतें। सीएम डॉ. मोहन यादव और मंत्री कैलाश विजयवर्गीय पड़ोसी शहरों उज्जैन और इंदौर का प्रतिनिधित्व करते हैं। दोनों की गलबहियां बेहतर रिश्ते की गवाही देती है लेकिन फिर कुछ ऐसा होता है कि अपनी ही सरकार में कैलाश विजयवर्गीय को किनारे कर दिए जाने का आभास होता है।
हेमंत खंडेलवाल की टाइम लाइन जिलाध्यक्षों पर भारी
बीजेपी में जिलाध्यक्षों का चुनाव और घोषणा हुए छह माह का वक्त हो गया है। लेकिन वे अपनी कार्यकारिणी गठित नहीं कर पाए हैं। जिलाध्यक्ष इस इंतजार में थे कि प्रदेश अध्यक्ष बदलने पर उनके अनुरूप कार्यकारिणी बनाएंगे। यूं भी जिला कार्यकारिणी गठन बड़ा सिरदर्द होता है क्योंकि जिलाध्यक्ष के सामने सभी विधायकों, सांसदों और प्रदेश संगठन, संघ आदि के प्रभाव और दबाव को ध्यान में रखना पड़ता है। स्थानीय सिफारिश को भोपाल संगठन के नाम पर ही काटा या खारिज किया जा सकता है।
पद संभालने के बाद पहली बार जिला अध्यक्षों से मुलाकात में प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने जिला कार्यकारिणी गठन के लिए 25 जुलाई तक नाम मांग लिए थे। प्रदेश अध्यक्ष की टाइम लाइन है कि 25 जुलाई तक नाम भेजे जाएं और फिर संभागवार बैठक कर कार्यकारिणी को अंतिम रूप दिया जाए।
जिला अध्यक्षों की मुसीबत यह है कि उनके क्षेत्र का हर बड़ा नेता कार्यकारिणी में अपने समर्थकों के लिए ज्यादा और महत्पूर्ण पद चाहते हैं। इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर के साथ मंत्रियों के जिलों में ज्यादा संघर्ष है।
हालांकि, प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने यह भी कहा है कि विधायकों और सांसदों के आने में देरी हो तो संगठन की बैठकों को रोका न जाए। बल्कि बैठक समय पर चालू की जाए। विधायक-सांसद जब जाएगे तब बैठक में शामिल हो जाएंगे। इसरतरह, समय अनुशासन सीखा कर प्रदेश अध्यक्ष विधायकों और सांसदों को सीमा में रखना चाहते हैं लेकिन जिलाध्यक्षों के लिए तो विधायकों व सांसद की अनुशंसाओं को टालना बहुत मुश्किल है। 25 जुलाई आ गई है और अब तक जिलों की सूचियां फाइनल नहीं हुई हैं। असमंजस है कि वे किसकी सुने और किसकी न सुने।
मिलते हैं विधानसभा में...
विधानसभा का मानसून सत्र 28 जुलाई से शुरू हो रहा है।12 दिनों में 10 बैठकें होंगी। ये दस दिन सरकार के लिए काम चलाने की चुनौती होगी तो किसान, खाद, भ्रष्टाचार जैसे मामलों पर सरकार से जवाब तलब करना कांग्रेस का लक्ष्य। इस मानूसन सत्र की विशेषता यह है कि इस बार दोनों दलों, बीजेपी और कांग्रेस, के विधायक प्रशिक्षत हो कर विधानसभा की कार्यवाही में शामिल होंगे।
बीजेपी ने अपने विधायकों को पचमढ़ी में प्रशिक्षित किया है। उन्हें जनता से जीवंत संपर्क बनाए रखने तथा सोच-समझ कर बोलने की हिदायत दी गई है जबकि कांग्रेस विधायकों का प्रशिक्षण मांडू में हुआ है। जहां बीजेपी ने अपने विधायकों को चुप रहने का सलीका सिखाया तो कांग्रेस ने अपने विधायकों को आक्रामक होने का नुस्खा दिया।
कांग्रेस विधायकों को सोशल मीडिया पर सक्रियता के साथ मैदान में आक्रामक होने की टिप दी गई है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने ऑनलाइन संवाद में सतर्क किया कि कांग्रेस नेता अपने क्षेत्र में मतदाता सूचियों को लेकर जागरूक रहें। खेल न हो जाए। ऐसी ही जागरूकता मानसून सत्र के दौरान सदन में भी रखनी होगी। सरकार की कोशिश होगी कि उसके सारे कार्य विरोध-प्रतिरोध के बिना निपट जाएं। छोटे सत्रों को लेकर आपत्ति जताती रही कांग्रेस के लिए ये दस बैठकें अवसर होगा कि सदन पूरे समय चलवा कर अपना विरोध दर्ज करवाए।