जी भाईसाहब जी: आदिवासी का मत चाहिए मगर मान की चिंता नहीं

MP News: वोट की राजनीति में क्‍या अंतर होता है यह आदिवासी महिला राष्‍ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के स्‍वागत में बीजेपी की नीति को देखकर समझा जा सकता है। पद ग्रहण करने के बाद जब राष्‍ट्रपति द्रोपदी मुर्मू मध्‍य प्रदेश आयीं, तब न तो उनके ओहदे की गरिमा के हिसाब से और न ही बीजेपी के बड़े पदाधिकारियों के हिसाब से उनके स्वागत की वो भव्यता दिखी जो अमूमन पीएम और गृहमंत्री आदि के आने पर होता है.. भले ही उन्हें आदिवासी वोटबैंक लुभाने के हिसाब से ही आमंत्रित किया गया हो

Updated: Aug 08, 2023, 06:34 PM IST

आदिवासी महिला राष्‍ट्रपति के सम्‍मान में बीजेपी की चूक 
आदिवासी नेतृत्‍व को राष्‍ट्रपति पद तक पहुंचाने का श्रेय लेनेवाली बीजेपी ने 3 अगस्‍त को राष्‍ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को भोपाल बुलाया जरूर लेकिन उनके आने का वैसा शोर और जलसा न रहा जैसा अमूमन बड़े नेताओं के आने पर देखने को मिलता है। म अखबारों में बड़े बड़े विज्ञापन दिखे और न ही  राष्ट्रपति की आदमकद तस्वीरों से रंगा-पटा शहर दिखा। यह ठंडा रुख साहित्‍य अकादेमी के एशिया के सबसे बड़े साहित्‍य उत्‍सव ‘उन्‍मेष’ का उद्घाटन करने आईं राष्‍ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के जाने के बाद से विपक्ष में चर्चा का विषय बन गया।

राष्ट्रपति तीन घंटे से ज्‍यादा समय तक भोपाल में रहीं लेकिन उनके आने की खबर अधिकांश लोगों को तब हुई जब रास्‍ते बंद होने के कारण लोगों को असुविधा हुई। अन्‍यथा सरकार ने जैसे उनकी यात्रा को नजर‍अंदाज ही किया। हर छोटे-बड़े नेता के आगमन पर सड़कों को बड़े बड़े कटआउट और पोस्‍टर-बैनर से पाट देने वाली बीजेपी की सरकार और संगठन ने राष्‍ट्रपति के स्‍वागत में ऐसा कुछ नहीं किया। यहां तक कि अखबारों में भी विज्ञापन ऐसे पन्‍नों पर दिया गया जहां आमतौर पर निगाहें जाती नहीं है। 

इस लापरवाही ने बता दिया कि आदिवासी महिला को सर्वोच्‍च पद पर पहुंचाने का श्रेय लेकर आदिवासी वोट पाने की जुगत कर रही बीजेपी को वोट की चिंता तो है लेकिन आदिवासी महिला राष्‍ट्रपति के मान-सम्‍मान की कोई फिक्र नहीं है। राष्‍ट्रपति के रूप द्रोपदी मुर्मू के सम्‍मान को नजरअंदाज करना आदिवासी ही नहीं सर्वोच्च शिखर पर बैठी महिला के प्रति भी पार्टी की बेरुखी व्‍यक्‍त कर गयी।

दूसरी तरफ, कांग्रेस का एक धड़ा तेज़ी से आदिवासी मुख्‍यमंत्री की मांग उठाकर चर्चा में आ गया है। कमलनाथ सरकार में वनमंत्री रहे कांग्रेस विधायक उमंग सिंघार ने धार के बदनावर में टंट्या मामा की प्रतिमा का अनावरण करने के बाद सभा में कहा कि कहा कि जब तक मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री आदिवासी नहीं बनेगा तब तक चैन से मत बैठना। मैं खुद की बात नहीं कर रहा लेकिन अपने समाज की बात कर रहा हूं। हमारे समाज का मुख्यमंत्री बनना चाहिए। इस बयान के बाद राजनीति तेज हो गई है। मुख्यमंत्री का चेहरा लगभग तय होने के बावजूद सिंघार का यह बयानम क्यों आया इसे लेकर जहां कांग्रेस में कयास लग रहे हैं वहीं बीजेपी चुटकियां ले रही है। बहरहाल ऐसे बयानों और दिखावों से आगे सियासी दल कुछ गंभीर प्रयास करेंगे यह तो चुनाव परिणाम और विधायकों की सम्मति पर ही निर्भर करेगा। 

राहुल गांधी के रूप में चाहिए पॉवर बूस्‍टर 

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने मध्‍य प्रदेश में कांग्रेस को एक खास तरह की ऊर्जा से भर दिया था। केवल यात्रा वाले मार्ग में ही नहीं बल्कि लगभग यात्रा मार्ग के समीपवर्ती क्षेत्र में भी कांग्रेस संगठन सक्रिय हुआ था। राहुल गांधी की यात्रा का प्रभाव आदिवासी इलाके में अधिक आंका गया था। मामला चुनाव का है तो भारत जोड़ो यात्रा की तरह ही कांग्रेस को एक बार फिर राहुल गांधी के पॉवर बूस्‍टर की आवश्‍यकता है।  

कांग्रेस संगठन ने शहडोल में राहुल गांधी की यात्रा की तैयारी की थी लेकिन उनकी यात्रा टल गई थी। इसका कारण कोर्ट में जारी सुनवाई को बताया गया था। अब सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद राहुल गांधी की लोकसभा सदस्‍यता बहाल हो गई है तो उनके मध्‍य प्रदेश दौरे की संभावना को टटोला जाने लगा है। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गांधी का कद काफी बड़ा है।

सांसदी खत्‍म होने के बाद जिस तरह से वे अपने स्‍टैंड पर डटे रहे तथा माफी मांगने से इंकार किया और फिर सु्प्रीम कोर्ट में मिली सफलता से राहुल गांधी की छवि में सकारात्‍मक सुधार हुआ है। उनकी बात का असर बढ़ा है। उन्‍हें संविधान रक्षक के तौर पर देखा जा रहा है। कांग्रेस नेता मान रहे हैं कि ऐसे में यदि राहुल गांधी के चुनाव के पहले दौरे होंगे तो कांग्रेस को इसका फायदा जरूर मिलेगा। कर्नाटक चुनाव के परिणामों पर राहुल गांधी के असर को देखते हुए मध्‍य प्रदेश में भी एक से अधिक सभा आयोजन की मंशा दिखाई दे रही है।  

दलित वोट के लिए हरसंभव प्रयास 

आदिवासी के लिए आरक्षित 47 सीट पर जीत के लिए कांग्रेस-बीजेपी में होड़ है तो दलित वोट पर भी दोनों पार्टियों की नजर है। प्रदेश में अनुसूचित जाति वर्ग की 35 सीटें है। अकेले सागर और उसकी सीमा से लगे जिलों में 10 अनुसूचित जाति की आरक्षित सीटें है। यही कारण है कि प्रदेश में सागर दलित वोटरों को लुभाने के लिए आयोजन का केंद्र बन गया है। 

दलित वोटरों को साधने के लिए बीजेपी ने प्रदेश के चार दलित बहुल आबादी वाले जिलों से संत रविदास समरसता यात्राएं निकाली हैं। 12 अगस्‍त को ये यात्राएं सागर पहुंचेगी जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा होगी। वे 100 करोड़ की लागत से संत रविदास का मंदिर बनाने के प्रोजेक्‍ट को आरंभ करेंगे। 
जवाब में कांग्रेस ने भी पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की सभा का आयोजन किया है। यह सभा 22 अगस्‍त को सागर में होगी। कांग्रेस भी मानकर चल रही है कि इस सभा का असर बुंदेलखंड की सभी दलित सीटों के साथ प्रदेश भर में होगा। 

आंकड़ों के हिसाब से देखें तो 2018 के चुनाव में दलितों के लिए आरक्षित 35 सीटों में से कांग्रेस ने 18 और बीजेपी ने 17 सीटें जीती थीं। बीजेपी दलित वोट को कांग्रेस और बसपा में जाने से रोकने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी को केवल चुनाव के समय ही दलित और रविदास याद आते हैं। दलित बीजेपी की रीति-नीति की असलियत समझते हैं। इसलिए वे बीजेपी का साथ नहीं देंगे। बसपा भी मैदान में है लेकिन बीजेपी और कांग्रेस दोनों के प्रयास है कि बसपा का वोट बैंक उनके हिस्‍से में आ जाए।  

20 साल बाद आई परिवार की याद 

2003 से सत्‍ता में आई बीजेपी पिछले 20 वर्षों से प्रदेश में प्रदेश में सरकार चला रही है। इन बीस सालों में उसके पास कामों की फेहरिस्‍त होनी चाहिए लेकिन चुनाव के पहले मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जिस तरह से घोषणाएं कर रहे हैं, उससे ऐसा लगता है कि बीते 20 सालों में प्रदेश में जैसे कोई काम हुआ ही नहीं है। हर वर्ग के लिए घोषणाएं और वादें हो रहे हैं। 

इन वादों और घोषणाओं की झड़ी का कारण मैदान से मिल रहा नकारात्‍मक फीडबैक है। शिवराज सरकार से नाराजगी का स्‍तर ऐसा कि गृहमंत्री अमित शाह भी अपने कार्यकर्ताओं से 2023 में बीजेपी की सरकार बनाने का आग्रह करते हैं। वे 2024 में मोदी सरकार बनाने की अपील की तरह शिवराज सरकार बनाने का आह्वान नहीं करते हैं। 

आलम यह है कि विपक्ष आरोप लगा रहा है कि शिवराज सरकार को लोगों की याद केवल चुनाव के समय में ही आती है और जवाब में मुख्‍यमंत्री को कहना पड़ रहा है कि वे सरकार नहीं चला रहे हैं, परिवार चला रहे हैं। प्रत्‍युत्‍तर में तंज होता है कि ऐसा कैसा परिवार चला रहे हैं जहां परिजनों की याद बीस साल बाद आती है। यह तंज तब भी हुआ जब मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूर्व वित्‍तमंत्री राघव जी से मुलाकात की। 

आपको याद होगा कि एक सीडी कांड के बाद सीएम शिवराज सिंह चौहान ने वित्त मंत्री राघव जी से इस्तीफा ले लिया था। बाद में राघव जी जेल भी गए और हाईकोर्ट ने एफआईआर निरस्‍त भी लेकिन इस दौरान उनका राजनीतिक कॅरियर खत्‍म हो गया। 

राघव जी विदिशा क्षेत्र की शमशाबाद सीट से विधायक हुआ करते थे। यह सीट शिवराज सिंह चौहान के संसदीय क्षेत्र में आती थी। क्षेत्र में वर्चस्व को लेकर दोनों नेताओं में कई बार संघर्ष की स्थितियां बनी थी। माना गया कि पार्टी में जारी इस वर्चस्‍व की लड़ाई के कारण सीडी कांड में राघव जी अलग थलग पड़ गए। अब जब पार्टी और नेतृत्‍व संकट में आया है तो इस तरह भूले बिसरे नेता याद आ रहे हैं और उनके घर दस्‍तक दी जा रही है।