जी भाईसाहब जी: प्रभात झा के लिए बीजेपी में इतना सन्नाटा क्यों है भाई

मध्यप्रदेश बीजेपी को मीडिया की आधारशिला देने वाले पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा जीते जी भी अप्रासंगिक बना दिए गए थे और निधन के बाद तो और भी ज्यादा नजरंदाज किए गए। निराश समर्थक कह रहे हैं कि यह नई दौर की बीजेपी है। 

Updated: Jul 30, 2024, 03:57 PM IST

कभी अपने चाल, चरित्र और चेहरे का बखान करने वाली बीजेपी हमेशा कार्यकर्ताओं को देवतुल्‍य कहती रही है। शून्‍य से एकतरफा बहुमत हासिल करने वाली बीजेपी की सफलता की यात्रा एक पार्टी की यात्रा नहीं है बल्कि यह कई नेताओं के परिश्रम का परिणाम है। कुछ बरस पहले तक बीजेपी अपने इन नेताओं का भरपूर आदर-सम्‍मान किया करती थी लेकिन आज की बीजेपी में पुराने तो ठीक समकालीन आधार नेताओं को भी नजरअंदाज किए जाने का चलन है। 

ऐसे नेताओं में एक नाम है प्रभात झा का। अब स्‍वर्गीय प्रभात झा कहना पड़ रहा है क्‍योंकि बीते दिनों उनका निधन हो गया। वे कुछ समय से अस्‍वस्‍थ थे और कुछ सालों से राजनीतिक रूप से हाशिए पर। लेकिन जब प्रभात झा के योगदान का उल्‍लेख किया जाता है तो सच पता चलता है कि प्रदेश अध्‍यक्ष के रूप में पूरे प्रदेश में अपना मजबूत नेटवर्क बनाने वाले प्रभात झा ने ही बीजेपी और मीडिया के रिश्‍तों को ताकतवर बनाया था। वे उस वक्‍त में मीडिया प्रभारी बनाए गए थे जब बीजेपी अपने विस्‍तार की नई राहें चुन रही थीं। बीजेपी नेता और पत्रकारों-राजनीतिक विश्‍लेषकों के आपसी संवाद में बड़ी खाई थी।

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ग्‍वालियर में पत्रकारिता कर रहे प्रभात झा को जब मीडिया प्रभारी बनाया गया तो उन्‍होंने कल्‍पनातीत काम किया। उनके प्रभाव का ही असर था कि उन्हें भोपाल से दिल्‍ली भेज दिया गया। फिर प्रदेश अध्‍यक्ष बनाया गया तो वे कई स्‍थापित नेताओं के लिए खतरा बन गए। उनको प्रदेश अध्‍यक्ष पद से हटाए जाने की भी दिलचस्‍प राजनीतिक कथा है। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने पर उन्‍होंने दु:खी मन से कहा था कि ‘उन पर पोखरण विस्फोट हो गया है’। 

प्रभात झा उन नेताओं में से थे जिन्होंने ग्‍वालियर में महल यानी सिंधिय परिवार की राजनीतिक को चुनौती दी थी। पहले बीजेपी मे विरोधी नेताओं के ताकतवर होने और फिर ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में आने से प्रभात झा को पूरी तरह अलग-थलग कर दिया गया। वे हाशिए पर थे लेकिन जब जब मौका मिला उन्‍होंने अपनी सक्रियता को बनाए रखा। 

67 साल की उम्र निधन की उम्र नहीं होती लेकिन वे आज दुनिया मे नहीं है। उनके निधन पर मीडियाकर्मियों ने उनके बारे में खूब लिखा और उनके योगदान को याद किया लेकिन बीजेपी इस मामले में पीछे ही रही। नेताओं ने सोशल मीडिया पर बयान जारी कर इति श्री कर ली। प्रदेश अध्‍यक्ष वीडी शर्मा, संगठन महामंत्री हितानंद सहित कई नेता अंतिम संस्‍कार में भी पहुंचे लेकन पार्टी के स्‍तर पर उन्‍हें वैसा याद नहीं किया गया जैसा अन्‍य नेताओं का स्‍मरण किया जाता है।

यही वही बीजेपी है जिसने अपने एक वरिष्‍ठ नेता की पत्‍नी के देहांत पर संवेदनशीलता दिखाते हुए भोपाल में आयोजित एमपी के नवनियुक्त केंद्रीय मंत्रियों का सम्मान समारोह स्थगित कर दिया था। लेकिन अपने पूर्व प्रदेश अध्‍यक्ष के निधन पर प्रदेश कार्यालय में या प्रदेश में व्‍यापक रूप से श्रद्धांजलि सभा नहीं की है। हालांकि, दूसरे कार्यक्रम सामान्य रूप से हो रहे हैं। प्रभात झा के साथ जीवित रहते और फिर निधन के बाद हुआ यह व्‍यवहार समर्थकों को अखरने वाला है। 

बोलूंगा तो बोलोगे के बोलता है...

एक प्रख्यात फिल्म के गाने की पंक्ति है, ‘हम बोलेगा तो बोलेगा कि बोलता है...।’ यह पंक्ति बीजेपी के असंतुष्ट नेताओं पर भी लागू होती है। मगर कुछ नेता ऐसे भी हैं जिन्‍होंने टोके जाने या पार्टी नेतृत्‍व के खफा हो जाने के डर से खरा बोलना बंद नहीं किया है। पूर्व मंत्री अजय विश्‍नोई ऐसे ही नेता हैं। बीजेपी में कांग्रेस से आए नेताओं को तवज्‍जो मिलने और बीजेपी के मूल कार्यकर्ताओं की अनदेखी पर अजय विश्‍नोई ने हमेशा ही बेबाक राय रखी है। अब जब कांग्रेस से आए नेता रामनिवास रावत को मंत्री बनाने के लिए मोहन यादव मंत्रिमंडल का विशेष रूप से विस्‍तार किया गया तो कई नेताओं ने दबे छिपे अपना आक्रोश जताया लेकिन अजय विश्‍नोई ने खुल कर अपनी बात रखी।

औरों को बांटने और अपनों को डांटने के बीजेपी के नए कल्चर पर अब पूर्व मंत्री अजय विश्नोई ने कहा है  कि ‘कांग्रेस से भाजपा में आने वाले नेता मंत्री बन रहे हैं, यह उनका सौभाग्य है और हम जैसे विधायक मंत्री नहीं बन पा रहे यह हमारा दुर्भाग्य। हम खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। सीनियर नेता कोई बात कहते हैं तो पार्टी में उस पर ध्यान नहीं दिया जाता।’

सार्वजनिक रूप से पीड़ा जाहिर करने का यह पहला मौका नहीं है। महाकौशल क्षेत्र के कद्दावर नेता अजय विश्नोई लगातार कह रहे हैं मगर पार्टी अनसुना कर रही है।

नए मंत्री हैं, कितना नए रहेंगे

कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में आए नए नवेले मंत्री रामनिवास रावत पिछले कई महीनों से चर्चा में हैं। पहले उनके बीजेपी में शामिल होने पर संशय बना रहा। राजनीतिक गलियारों में चर्चा रही कि बीजेपी में आने के बाद के मसले पर निर्णय नहीं हो पा रहा है इसलिए कांग्रेस में निष्क्रिय होने के बाद भी रामनिवास रावत ने पार्टी की सदस्‍यता नहीं छोड़ी़। फिर उनके बीजेपी में शामिल होने के बाद मंत्री पद को लेकर गलफत हुई। पहले राज्‍यमंत्री की शपथ हुई फिर कुछ मिनट बाद ही उन्‍हें कैबिनेट मंत्री के रूप में दोबारा शपथ दिलाई गई। शपथ हो गई तो विभाग देने में इंतजार करवाया गया। मंत्री बनने तक कांग्रेस विधायक पद नहीं छोड़ने का मामला भी सुर्खियां बना। यहां तक कि रामनिवास रावत को  वन मंत्रालय दिया गया तो विभाग छीने जाने से बीजेपी नेता नागरसिंह चौहान नाराज हो गए। 

इतने विवादों से घिरे मंत्री रामनिवास रावत ने पद संभालते ही सुर्खियां पाने का काम किया। सबसे पहले उन्‍होंने वन विभाग के संरक्षण शाखा में प्रमुख मुख्य वन संरक्षक सीनियर आईएफएस दिलीप कुमार को चार्जशीट थमा दी। उन्‍होंने सबसे पहले सैलाना के खरमोर अभ्यारण के भीतर आने वाले 250 किसानों की 300 हेक्‍टेयर जमीन को अभ्‍यरण से बाहर करने वाली फाइल पर हस्ताक्षर किए। किसान कई वर्ष से इस जमीन को अभ्यारण से मुक्त करने की मांग कर रहे थे। 

नए मंत्री रामनिवास रावत की कार्य प्रणाली देख कर कुछ अफसर असहज हुए तो उन्‍होंने सहायता के लिए पार्टी की ओर देखा। अफसरों को सलाह मिली है धैर्य रखें। नए नवेले मंत्री हैं... कुछ दिनों में ढल जाएंगे।

कांग्रेस भी बनाएगी अपना एक ‘संघ’

विधानसभा चुनाव में हार तथा लोकसभा चुनाव में सभी 29 सीटों पर हार के बाद मध्‍य प्रदेश कांग्रेस में मंथन जारी है। जहां पूरे देश में कांग्रेस ने अच्‍छा प्रदर्शन किया और 99 सीट जीत वहीं मध्‍य प्रदेश की अपनी एक सीट भी गंवा दी। नेतृत्‍व परिवर्तन कर संगठन में ऊर्जा लाने का प्रयत्‍न कर रही कांग्रेस को भी अब अपने कैडर की चिंता सताने लगी है। 

पिछले कुछ समय से जारी समीक्षा बैठकों में यह तथ्‍य रेखांकित किया जा रहा है कि पार्टी को संगठन के स्‍तर भी काफी काम करना होगा। इसी फीडबैक के आधार पर जमीनी आधार पक्का करने के लिए कांग्रेस में भी एक कैडर बनाने की योजना है। संकेत है कि कि यह कैडर कांग्रेस को वैसा ही सहयोग प्रदान करेगा जैसा आरएसएस का सहयोग बीजेपी को मिलता है। एक ऐसा कैडर बनाने की योजना है जो पद के मोह और सत्ता की राजनीति से अलग विचार व संगठन के स्‍तर पर ही काम करेगा। 

कांग्रेस को एकजुट करने तथा सशक्‍त बनाने की दिशा में ऐसे प्रयासों की आवश्‍यकता है लेकिन सवाल भी उठाए जा रहे हैं कि जब सेवादल जैसा संगठन है तो कैडर के लिए नए संगठन की क्या जरूरत है? सेवादल ने बीते चुनावों के दौरान अच्‍छा काम भी किया है। यदि संगठन को मजबूत करना है तो नया विभाजन करने की जगह सेवादल जैसे अन्‍य सहयोगी संगठनों पर ही ध्यान देना चाहिए। पार्टी में उनकी शक्ति बढ़ेगी तो मैदान में पार्टी भी बढ़ेगी।