जानिए क्या है बुद्धिमत्ता

हमें मानव शरीर से वही करना है जो पशु पक्षी आदि अन्य शरीरों से न किया जा सकता हो

Publish: Jul 21, 2020, 11:27 AM IST

हम जिस सुख की खोज में निरन्तर लगे हुए हैं। वास्तव में वह सुख तो अपना स्वरुप ही है। अमृतोपदेश में गुरुवर अपने शिष्यों को उपदेश करते हैं कि प्रगाढ़ निद्रा में जब प्राणी सुषुप्ति अवस्था में चला जाता है तब उसको जिस सुख का अनुभव होता है, वह निश्चय ही भोग जन्य नहीं है क्यूंकि उस समय शरीर,इन्द्रिय, मन सभी निश्चेष्ट रहते हैं। बिना इनके सचेष्ट हुए भोग नहीं होता। फिर भी वहां सुखानुभूति होती है। और वह सुखानुभूति इतनी विलक्षण होती है कि मनुष्य उसके बिना पागल हो जाता है। पागल को नींद नहीं आती।

सुषुप्ति में सुख के साथ अज्ञान भी रहता है, इसलिए अध्यात्म के साधक इस सुख का अनुभव करने के लिए निद्रा का परित्याग कर ध्यान, समाधि और भगवद्भजन के द्वारा इस सुख को प्राप्त करते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान वासुदेव कहते हैं- बाह्य भोगों में अनासक्त साधक अपनी आत्मा में जिस सुख का अनुभव करते हैं, ब्रह्मनिष्ठ महात्माओं के लिए वह अक्षय होता है।विद्वान इसका अर्थ करते हैं कि समाधि  निष्ठ को प्रत्यगात्मा के अनुभव का सुख मिलता है जबकि तत्वदर्शी ज्ञानी को अनंत-अखण्ड-अपरिच्छिन्न ब्रह्म से अभिन्न प्रत्यक्चैतन्य का अपार अक्षय सुख प्राप्त होता है।

इस सुख के प्राप्त हो जाने पर संसार के सभी भोग जन्य सुख इसके अन्तर्गत आ जाते हैं। जिस प्रकार सब ओर से परिपूर्ण अमृत तुल्य मधुर जल के समुद्र के प्राप्त हो जाने पर वापी,कूप,सरोवर के जल की अपेक्षा नहीं रहती।उसको प्राप्त कर लेने पर कुछ भी प्राप्त करना अवशिष्ट नहीं रह जाता। वह साधक कृतकृत्य हो जाता है।

शास्त्रों में जिन कर्मों को न करने योग्य बताया गया है, उनका त्याग करते हुए विहित कर्मों का अनुष्ठान कर उनमें फल की आकांक्षा न रखना, संसार के एवं सांसारिक भोगों के यथार्थ रूप पर विचार करना, सत्पुरुषों का सत्संंग करना, नियमित रूप से साधनाभ्यास करना,राग- द्वेष और अभिनिवेश से मुक्ति के लिए यत्न करना, संसार की नि:सारता और दुःख रूपता को समझना और परब्रह्म परमात्मा की भक्ति एवं ज्ञान प्राप्त करना यही बुद्धमत्ता है। 

हमें मानव शरीर से वही करना चाहिए जो पशु पक्षी आदि अन्य शरीरों से न किया जा सकता हो।

मानव शरीर परमात्मा की सर्वोत्तम कृति है,उनकी कृपा से इसकी प्राप्ति हुई है और कमल पत्र के जल के समान मानव जीवन अति चपल है,इस बात का हमें सदा ध्यान रखना चाहिए।