देश की पहली महिला शिक्षिका की 191वीं जयंती, सावित्रीबाई फुले ने खोला था देश का पहला गर्ल्स स्कूल

सावित्रीबाई फुले भारत में महिला शिक्षा की पक्षधर थीं, उन्होंने पति के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले, सती प्रथा और बाल विवाह, जाति प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई

Updated: Jul 22, 2022, 02:16 AM IST

Photo Courtesy: vsk telengana
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सावित्रीबाई फुले को भारत की पहली लेडी टीचर और सोशल वर्कर माना जाता हैं। उनका जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले में 03 जनवरी 1831 को हुआ था। नायगांव नामक गांव में उनका बचपन बीता। वे देश के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापिका थीं। मात्र 9 साल की उम्र में उनकी शादी 13 साल के ज्योतिराव फुले से हो गई थी। शादी के समय सावित्री को पढ़ना लिखाना नहीं आता था, जबकि पति तीसरी कक्षा में पढ़ते थे। मायके में पढ़ ना पाने का दुख सावित्री को था, जब उनके पति ज्योतिराव फुले को उनकी पढ़ने की इच्छा के बारे में पता चला उन्होंने उसका सम्मान किया औऱ सावित्रीबाई के पढ़ने का इंतजाम किया। उस दौर में लड़कियों औऱ दलितों के साथ बहुत भेदभाव होता था।

कहा जाता है कि एक बार सावित्री के पिता ने उनके हाथ से अंग्रेजी की किताब छीन ली थी। इसके पीछे उनका तर्क था कि शिक्षा का अधिकार केवल ऊंची जाति के पुरुषों का है। महिला उस पर भी  दलितों का शिक्षा ग्रहण करना पाप है। इसी बात की कसक सावित्रीबाई के मन में थी, उन्होंने प्रण किया कि कुछ भी हो जाए वो पढ़ना-लिखना जरूर सीखेंगी। आगे चलकर ना केवल सावित्रीबाई ने पढ़ाई की बल्की देश का पहला कन्या स्कूल समेत 18 स्कूल खोले। 1848 में उन्होंने पुणे में देश के सबसे पहले बालिका स्कूल की स्थापना की थी।  लेखक, चिंतक और समाजसुधारक पति के साथ मिलकर सावित्रीबाई ने सैकड़ों लड़कियों में शिक्षा की अलख जगाने का काम भी किया। कहा जाता है कि जब सावित्रीबाई फुले स्कूल जाती थीं, तो लोग उन्हें पत्थर मारते थे, कई बार उन पर मैला फेंक दिया जाता था।  

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सावित्रीबाई ने सती प्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध के खिलाफ पुरजोर आवाज उठाई। वे आजीवन महिला अधिकारों के लिए लड़ती रहीं। प्लेग महामारी के चलते 66 साल की उम्र में सावित्रीबाई फुले का निधन 10 मार्च 1897 को हो गया था।