नीलोत्पल की कविताएं

मध्य प्रदेश के चर्चित युवा कवियों में से एक नीलोत्पल विज्ञान में स्नातक हैं, पहला काव्य संग्रह 'अनाज पकने का समय' 2009 में भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित, 'पृथ्वी को हमने जड़ें दिन', 'अनाज पकने का समय' कृतियों का प्रकाशन, वर्ष 2009 में विनय दुबे स्मृति सम्मान

Updated: Sep 11, 2020, 09:27 AM IST

1.यक़ीन

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वक़्त कैसा भी हो

मैं जीवन पर यक़ीन करना नहीं छोड़ सकता

 

मैं नहीं जानता

इस साधारण से जीवन में ऐसा क्या है

जो मुझे पराजय और मृत्यु के अवसर पर भी

यह बराबर याद दिलाता रहता है कि

 

कहीं नए पेड़ तैयार हो रहे हैं

प्रेम और तितलियां तुम्हें चूमने के लिए आतुर हैं

आग जीवन की भाषा को पका रही है

फल के पक जाने पर

परिंदे उसे घेर रहे हैं

जैसे घास पर सितार की चहल हो

 

सुदूर पहाड़ियों में ग्राम देवता पुकारता है

ताकि वहां टहलती लोक गीतों की धुन पर 

हम अपनी अशांति और अतृप्तियां रख सकें

 

पश्चाताप के आंसुओं में

यदि कोई कमी रह गई है तो

हम अपने समूचे अपराध स्वीकार कर ले

ताकि सजा के समय कोई ग्लानी न रह जाएं

 

मैं उन दिनों में भी यह यक़ीन नहीं छोड़ सकता

जब सारी आत्माओं ने एक सा चोला पहनकर

इतनी लंबी खामोशी ओढ़ ली हो कि

सारे बचे सबूत भी

जीवन बचाने में नाकाम रहे

 

उन दिनों में भी

अपने पुरखों की बची राख से

यह शोक गीत लिखूंगा

संभव है आने वाली पीढ़ियां

सब कुछ याद ना रख सके

लेकिन जीवन के इस शोकगीत में

वह आंच पहचान ले

जो जीवन के उत्सर्ग से पैदा हुई थी

 

पेड़ों की रोशनी से बने इन काग़ज़ों पर

इस जीवन के लिए

अपनी अंतिम गवाही जरूर दूंगा

 

2. एक स्त्री जिसने अभी प्रेम नहीं किया

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मैं हमेशा से भूलता रहा

भूलता रहा कि

अँधेरे से एक जादूगरनी

अपनी रहस्यमयी दुनिया को

देखती है, खामोश रहती है

 

याद करने की कोशिश में

सर्दियों की एक सुबह, मक्खियों के पंख भीगे थे

जब वे बाहर आईं

अपने अज्ञात दड़बों से

भूल चुकी थीं

दुनिया के पैर गीले हैं

वे भिनभिनाती, मृत्यु के आसपास

 

हर मरी मक्खी एक अज्ञात सुबह है

मैं कई सुबहों से अकेला तफरीह करता हूँ

मेरे पास भूलने के लिए

नदी, पहाड़ और पेड़ हैं

 

याद रखने के लिए

ढेरों प्रेमिकाएँ और स्वप्न

 

मैं भूलता रहा कि

एक स्त्री जिसने अभी प्रेम नहीं किया

डूबी हुई है

उसके नजदीक से हवाएँ गुजरती है

और वह बस लीन है मेरी खामोशी में ।

 

3. तुम जो मेरी प्रेमिका नहीं हो 

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तुम जो छत पर हाथ

टिकाए खड़ी हो

तुम्हारे हाथ और बाल ढँके हैं

शाल के भीतर

धूप सेंकते हुए तुम्हारा चेहरा

तपता है

अलाव में सेंके हुए अनाज की तरह

 

उस वक़्त मैं देखता हूँ तुम्हें

तुम जो मेरी प्रेमिका नहीं हो

ना ही हमनें मिलकर सपने देखे हैं

(हम क़ैद हैं अपने-अपने सीखचों में )

 

मैं देखता हूँ तुम्हारी आँखों में

गुलमोहर की शांत झरती पत्तियाँ

तुम एक गहरी लम्बीं साँस लेती हो

तुम्हारी उदासी में ढेरों पक्षी विदा लेते हैं

 

लेकिन हमनें कोई विदा नहीं ली अब तक

हम नहीं जानते इस बारे में

हम अस्पष्ट हैं

 

तुम जो मेरी प्रेमिका नहीं हो

मैंने तुम्हें कभी कोई ख़त नहीं लिखा

लेकिन हमारी आँखें जानती हैं

कि हमनें सदियों प्रतीक्षा की एक दूसरे की

 

हमनें वादा नहीं लिया

लेकिन मैं देखता हूँ

शाम का सूरज तुम्हारे चेहरे पर चमकता है

लिखता है हमारी अस्पष्ट कहानी को

अपने महान अंतरालों के बीच ।

 

4. उन क्षणों में

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समुद्र ख़ाली था

जाल हटा लिए गए

लहरें किनारों पर रेत में सुस्ताती रहीं

सारी मछलियां उड़ गईं आसमान की ओर

तारों में चमक बरकरार थी

 

घोंघे और आक्टोपस

पृथ्वी का एंटीना थे

एक चुप जिसने समुद्र को घेर लिया

 

आवाज़ें रिक्त, समुद्र ख़ामोश

 

कुछ इस तरह जीवन को जाना

 

समुद्र और जीवन से ज़्यादा मौन

तुममें खो जाने में था

 

उन क्षणों में था

जब तुम्हें छू रहा था

 

आह, समय ईथर है

तुम्हारे बंद होठों की तरह

सबसे चुप और थरथराता।