मध्य प्रदेश के 80 हज़ार बिजली कर्मचारियों ने दी हड़ताल पर जाने की धमकी, बिजली वितरण में निजीकरण का विरोध

बिजली कंपनी के कर्मचारियों का कहना है कि निजीकरण के कारण प्राइवेट कंपनियां उनका शोषण शुरू कर देंगी, उनके वेतन में भी मनमानी कटौती कर दी जाएगी

Updated: Feb 02, 2021, 02:40 PM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश के बिजली कर्मचारी प्रस्तावित निजीकरण के खिलाफ हड़ताल पर जा सकते हैं। बिजली कर्मचारियों से जुड़े एक संगठन ने कहा है कि अगर प्रदेश में निजीकरण की प्रक्रिया शुरू की गई, तो प्रदेश के 80 हज़ार से ज़्यादा कर्मचारी हड़ताल पर चले जाएंगे। इतना ही नहीं नाराज कर्मचारियों ने पूरे प्रदेश में बिजली आपूर्ति को रोक देने की धमकी भी दी है।

केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने हाल ही में स्टैंडर्ड बिड डॉक्यूमेंट जारी किए हैं, जिसका बिजली वितरण कंपनियों में कार्यरत कर्मचारी विरोध कर रहे हैं। केंद्र के डॉक्यूमेंट के मुताबिक बिजली कंपनियों का निजीकरण किया जाना है। लिहाज़ा प्रदेश की बिजली वितरण कंपनियों में कार्यरत कर्मचारियों में लगातार असंतोष बढ़ रहा है। 

दरअसल मध्यप्रदेश की तीन बिजली वितरण कंपनियों, मध्य क्षेत्र भोपाल, पूर्व क्षेत्र जबलपुर तथा पश्चिम क्षेत्र इंदौर में करीब 80 हज़ार कर्मचारी कार्यरत हैं। इनमें 30 हज़ार नियमित कर्मचारी हैं। जबकि 35 हज़ार आउटसोर्स और 6 हज़ार संविदा अधिकारी कर्मचारी शामिल हैं। कर्मचारियों का कहना है कि अगर वितरण कंपनियों का निजीकरण किया जाएगा तो वे सब प्राइवेट प्लेयर्स के कठपुतली बन जाएंगे। उनका शोषण शुरू हो जाएगा और उनके वेतन में भी भारी कटौती कर दी जाएगी।

बिजली कमर्चारियों ने मध्यप्रदेश सरकार को खुली चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर सरकार ने निजीकरण की प्रक्रिया को शुरू करने का प्रयास भी किया तो सभी कर्मचारी उत्तर प्रदेश की तर्ज़ पर हड़ताल पर चले जाएंगे। कर्मचारियों का कहना है कि उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल वितरण निगम बनारस को सरकार ने निजी हाथों में बेचने की योजना बनाई थी। इसके बाद बिजली कर्मचारी राज्य सरकार के विरुद्ध हड़ताल पर चले गए थे। जब बिजली कर्मियों ने एक महीने से ज़्यादा तक हड़ताल जारी रखा और बिजली आपूर्ति ठप कर दी। उसके बाद यूपी सरकार ने कैबिनेट मीटिंग बुलाकर इस प्रस्ताव को स्थगित कर दिया। अब कुछ ऐसी ही चेतावनी मध्यप्रदेश सरकार को दी जा रही है।

एक आकलन है कि अगर बिजली कर्मचारी हड़ताल पर उतर गए तो इसका सीधा प्रभाव राज्य के करीब डेढ़ करोड़ से ज़्यादा उपभोक्ताओं पर पड़ सकता है।