शिवराज सरकार, मंत्रिमंडल विस्तार या तलवार की धार

मध्य प्रदेश में चौथी बार मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान पहली बार अपनी टीम बनाने को लेकर असहज भी दिख रहे हैं और असहाय भी। 

Publish: May 01, 2020, 06:10 PM IST

मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार फ़िलहाल 5 मंत्रियों के साथ आगे बढ़ रही है। कई दिनों तक शिवराज अकेले ही चले। बड़े दिनों में एक छोटी सी टीम के साथ फिलहाल सरकार चल रही है। इस मंत्रिमंडल के गठन के साथ ही यह तय हो गया था कि जब 5 नाम तय करने में ही पसीना छूट गया तो फिर बाकी नाम तय करने में मुश्किल भी बड़ी है और तनाव भी। दरअसल मध्य प्रदेश में चौथी बार मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान पहली बार अपनी टीम बनाने को लेकर असहज भी दिख रहे हैं और असहाय भी। 

साल 2004 में बाबूलाल गौर के इस्तीफे के बाद जबसे शिवराज ने मुख्यमंत्री का पद संभाला वे तमाम चुनौतियों से लड़ते हुए लगभग अपनी बात मनवाने में कामयाब हो जाते थे। विशेष तौर पर मंत्रिमंडल में ज्यादातर सिपाही उनके ही ख़ास होते थे। यदि कोई मंत्री उनका करीबी नहीं भी होता तो अपनी पसंद के कुछ बड़े अधिकारीयों को उस मंत्री के विभाग में तैनात कर ,शिवराज अपरोक्ष तौर पर कमान संभाल लेते थे। यह शिवराज की राजनैतिक पैंतरेबाजी ही थी कि बीते कार्यकाल में कैलाश विजयवर्गीय के मंत्रिमंडल से इस्तीफे के बाद आखिर तक उन्होंने इंदौर से कोई मंत्री नहीं बनाया। इसके अलावा मंत्रिमंडल के उनके कद्दावर सहयोगी गोपाल भार्गव, नरोत्तम मिश्रा जैसे मंत्री भी कभी शिवराज को सीधी चुनौती नहीं दे पाए। 

शिवराज की इस मजबूती के पीछे राष्ट्रीय नेतृत्व से लेकर शिवराज  का कौशल , बहुतेरे कारण रहे। लेकिन इस बार मामला कुछ अलग है। शिवराज मुख्यमंत्री चुनाव जीतकर नहीं बल्कि ज्योतिरादित्य  सिंधिया की कृपा से बने हैं। केंद्र का नेतृत्व भी कैसे उनके नाम पर सहमत हो पाया यह शिवराज ही बेहतर जानते होंगे। इसके साथ ही कांग्रेस सरकार गिराने से लेकर भाजपा सरकार बनाने तक में कई नेताओं की अहम् भूमिका रही। कुल मिलकर शिवराज जो अब तक फिल्म के सोलो हीरो के तौर पर काम करते थे अब मल्टी स्टारर फिल्म के एक हीरो हैं , जिनकी  फिल्म में बाकियों से बस थोड़े से ज्यादा रोल की अहमियत है। 

छोटे से मंत्रिमंडल के गठन में ही बहुत सी गांठें खुलकर सामने आ गईं। जहां पूर्व नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव मंत्री नहीं बन पाए तो शिवराज अपने चहेते भूपेंद्र सिंह , रामपाल सिंह, राजेंद्र शुक्ला और संजय पाठक को मंत्री नहीं बनवा पाए। सागर में तो हर कोई चौंक गया जब भाजपा के दो दिग्गजों ,गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह पर सिंधिया गुट के गोविन्द सिंह भारी पड़ गए। इस घटनाक्रम के बाद से ही भाजपा के बड़े नेताओं में सन्नाटा पसरा है। जो नेता मंत्री बनने के लिए नए कपड़े सिलाये बैठे थे, वे अब पद पाने के लिए ही संघर्ष करते दिख रहे हैं। दरअसल शिवराज सिंह के सामने चुनौती सिर्फ मंत्रिमंडल विस्तार नहीं है , बल्कि मंत्रिमंडल के साथ ही भविष्य में होने वाले उपचुनाव के लिए समीकरण बिगड़ने से बचाना है। 

उदाहरण के तौर पर सागर जिले में गोविन्द सिंह राजपूत के मंत्री बनने के बाद यदि गोपाल भार्गव या भूपेंद्र सिंह में से कोई भी नेता मंत्री बनने से वंचित हुआ तो उपचुनाव में सुरखी से गोविन्द सिंह की जीत मुश्किल हो जाएगी। ऐसे ही रायसेन जिले में सिंधिया समर्थक प्रभुराम चौधरी मंत्री बनते हैं तो जिले से दो बड़े नाम रामपाल सिंह और सुरेंद्र पटवा में से कोई मौका  गंवा सकता है। इंदौर में भी तुलसी सिलावट के मंत्री बनने के बाद मालिनी गौड़, रमेश मेंदोला,महेंद्र हार्डिया और ऊषा ठाकुर जैसे सीनियर नेताओं में से अब किसे मंत्री बनायें और किसे नहीं, यह शिवराज के लिए अनसुलझी पहेली बन रहा है। इसके साथ ही विंध्य इलाके में भाजपा की बड़ी जीत के बाद कई विधायक मंत्री पद की आस लगाए हैं तो ग्वालियर चम्बल इलाके में सिंधिया समर्थक पूर्व विधायकों की उम्मीदें भाजपा के विधायकों को निराश कर रही हैं। 

कुल मिलकर शिवराज मुख्यमंत्री तो बन चले हैं , लेकिन कोरोना संकट में उनका संकट कई मोर्चों पर है। राष्ट्रीय नेतृत्व से समन्वय  अपनी पार्टी के प्रदेश स्तर के नेताओं की महत्वाकांक्षा, सिंधिया गट से किये गए वादे और अपने समर्थक विधायकों के बीच खुद को मजबूत दिखाए रखने की मजबूरी। इन सबके बीच मंत्रिमंडल के गिने चुने पद , मुश्किलों को आमंत्रण देने वाले हैं।