एमपी में आदिवासी फंड पर केंद्र सरकार की टेढ़ी नज़र, 5 साल में 60 फ़ीसदी हुई कटौती

बालाघाट के बीजेपी एमपी ढाल सिंह बिसेन के सवाल के जवाब में पता चला है कि केंद्र सरकार ने 2017-18 से लगातार आदिवासी बजट में कटौती का रास्ता अपनाया और 4144 से घटाकर साल 2021-22 में 1718 करोड़ किया बजट.

Updated: Dec 07, 2021, 03:29 PM IST

भोपाल। मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार जितने ज़ोरशोर से आदिवासी गौरव का ढ़ोल पीट रही है, उतना ही उसके दावे खोखले साबित हो रहे हैं। पहले एनसीआरबी ने बताया कि मध्य प्रदेश आदिवासियों पर अत्याचार के मामले में सबसे अव्वल है, और अब खुद संसद में सरकार के जवाब से पता चला है कि उसने पांच साल में आदिवासी कल्याण के बजट में साठ फीसदी की कटौती कर दी है।

बालाघाट से बीजेपी सांसद ढाल सिंह बिसेन ने संसद में आदिवासियों के कल्याण के लिए केंद्र द्वारा आवंटित की गई राशि का हिसाब मांगा था। इसके जवाब में आदिवासी मामलों की केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह ने संसद में बताया कि 2017-18 में केंद्र ने मध्य प्रदेश में आदिवासी कल्याण फंड पर 4,144 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की थी लेकिन 2021-22 में यह राशि महज़ 1,718 करोड़ रुपए कर दी गयी है। 

चुनावी साल में केंद्र ने एक तरफ 4144.38 हजार करोड़ रुपए की राशि आवंटित की तो वहीं प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आने के बाद 2019-20 में  इसे घटाकर 3453 करोड़ कर दिया गया। कोरोना काल में जब आदिवासी मजदूर बाहरी राज्यों से मध्य प्रदेश आए और रोजगार का संकट खड़ा हुआ तब केंद्र सरकार ने आदिवासी फंड बढ़ाने की बजाय और कटौती का रास्ता अपनाया। साल 2020-21 में यह राशि घटकर 3207 करोड़ रुपए हो गयी। लेकिन सबसे ज्यादा चौंकानेवाला आंकड़ा इस वित्तीय वर्ष का है जब केंद्र और राज्य की बीजेपी सरकार आदिवासियों को लुभाने के अनेक कार्यक्रम कर रही है, तब आदिवासी कल्याण बजट को साठ फीसदी घटाकर 1718 करोड़ कर दिया गया। पांच सालों के आंकड़े देखें तो यह बजट आधे से भी कम रह गया है। 

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यह बजट महज एक आंकड़ा नहीं है बल्कि आदिवासियों को लेकर सरकार की प्राथमिकताएं साबित करता है। सरकारी प्राथमिकताओं में आदिवासी समुदाय का हाल यह है कि प्रदेश आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के मामले में पूरे देश में सबसे ऊपर आ गया है। आदिवासी समुदाय को सुविधा मुहैया कराने में भी मध्य प्रदेश सबसे फिसड्डी राज्य है। नीति आयोग की रिपोर्ट पहले ही बता चुकी है कि प्रदेश के अलीराजपुर और झाबुआ जैसे इलाके पूरे देश में सबसे गरीब जिले हैं और गरीबी के पायदान पर एमपी चौथे नंबर पर है। राज्य की आबादी में 21 फीसदी हिस्सा रखनेवाला आदिवासी समुदाय आधे से ज्यादा यानी 50 फीसदी लोग, गरीबी रेखा के नीचे अपना जीवन जीने पर मजबूर हैं। सत्ताधारी बीजेपी आदिवासी गौरव ज्ञान के जरिए उनका वोटबैंक बनाने की कवायद तो कर रही है लेकिन कल्याण के काम ठंडे बस्ते में डाल दिए हैं।