छिंदवाड़ा की बहनों ने बनाई ईको फ्रेंडली राखियां, भाइयों की उम्र के साथ पर्यावरण की भी बढ़ाएंगी उम्र

राखियों में विभिन्न वृक्षों के बीज भी लगाए गए हैं। जिससे रक्षाबंधन के त्यौहार के बाद इन राखियों को लोग कहीं जमीन के पास रखेंगे तो वहां से पौधे उग जायेंगें।

Publish: Aug 30, 2023, 09:23 AM IST

Image courtesy- Naidunia
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छिंदवाड़ा। आज देशभर में रक्षाबंधन के पर्व की धूम है। सभी जगह हर्ष उल्लास का माहौल है। रक्षाबंधन पर इस बार विभिन्न प्रकार की राखियां आई हुई हैं। मध्य प्रदेश में भी राखियों के बाजार सज चुके हैं। यहाँ नए-नए प्रयोग कर ईको फ्रेंडली राखियां बाजार में सबकी पसंद बनी हुई हैं।गोबर आदि के बाद अब छिंद के पत्तों, बांस और धान से बनी राखियां खूब पसंद की जा रही हैं। छिंद के पत्तों से झाड़ू बनाने के लिए मशहूर भारिया जनजाति के लोगों ने इस वर्ष छिंद के पत्तों से राखियां बना रहे हैं उनकी यह राखी भाइयों की उम्र लम्बी करने के साथ पर्यावरण की भी उम्र बढाएंगी

यह राखी सूती कपड़े, बांस और धान का उपयोग करके बनाई गई हैं। वेस्ट सूती कपड़े में छिंद की पत्ती, बांस की लकड़ी को फाड़कर, उसे चिकना कर उसे विभिन्न प्रकार के आकार दिए जाते हैं। राखी के फूल वाले हिस्से विभिन्न पौधों के बीज रखकर उन्हें धान से सजा दिया जाता है। इसके बाद धागा लगाया जाता है। इस प्रकार की एक राखी 15 से 50 रुपए तक में बाजार में बिक रही है। देखने में बेहद आकर्षक होने के साथ यह पर्यावरण के लिए भी बहुत फायदेमंद है।

राखी बनाने वाली एक महिला ने बताया कि जब त्यौहार के बाद इन राखियों को निकाल कर जमीन के आस पास रखा जाएगा तो इनमें लगा पेड़ों के बीज से वृक्ष लगने लगेंगे इससे यह राखी पर्यावरण के लिए बहुत फायदेमंद होगी। राखी भाइयों की उम्र तो बढ़ाएगी ही इससे लगे पौधों से पर्यावरण की उम्र भी बढ़ेगी। हम राखी बेचने से पहले ग्राहक को इसमें लगे बीज के बारे में बता रहे हैं जिससे वह भी जागरूक होकर इस राखी उपयोग के बाद जमीन में ही गाड़े।

छिंद एक जंगली पेड़ है, जो छिंदवाड़ा जिले में प्रचुर मात्रा में मिलता है। यहां निवासरत भारिया जनजाति के लोगों की आय का प्रमुख साधन भी छिंद का पेड़ है। यह समुदाय बांस, छिंद की पत्ती और देवबहारी घास से झाड़ू,मुकुट, जैसी सामग्री बनाते हैं लेकिन इस बार इन्होंने ईको फ्रेंडली राखी बनाने का काम किया। इनकीं यह राखी पर्यावरण के लिए बेहद फायदेमंद है। इनकी इस सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए भोपाल की संस्था सर्च एंड रिसर्च डेवलपमेंट सोसाइटी ने इन्हें पिछले साल राखी बनाने का प्रशिक्षण दिया था। अब इनकी राखी भोपाल समेत प्रदेश के कई शहरों में बेची जा रही हैं और लोगों में ईको फ्रेंडली राखियां पहली पसंद बनी हुई हैं।