लापरवाह तंत्र, जनता त्रस्‍त : भय फैल रहा, जागृति नहीं

कोरोना वायरस की चैन तोड़ने के लिए संभावित संक्रमितों पर नजर रखना अनिवार्य है मगर प्रशासन की लापरवाह कार्यप्रणाली से जागरूकता के बदले भय बढ़ रहा है। घरों के बाहर सूचना चस्‍पा करना भी ऐसा ही एक कदम है जो समाज में डर पैदा कर रहा है।   

Publish: Mar 27, 2020, 08:08 AM IST

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भोपाल।

कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए लॉक डाउन किया गया है। मंशा है कि सभी घर में रहेंगे तो वायरस की श्रृंखला टूटेगी और उसका प्रसार थम जाएगा। इसके लिए विदेशों से आए तथा कोरोना वायरस के लक्षण वाले लोगों पर नजर रखी जा रही है। शुरुआत में तो प्रशासन ने कोरोना को गंभीरता से नहीं लिया मगर जैसे ही यह फैलने लगा ताबड़तोड़ कदम उठाए गए। इसी क्रम में विदेशों से आए लोगों तथा संभावित संक्रमितों को चिह्नित करने के लिए प्रशासन ने उनके घरों पर सूचना लगा दी है। इससे इन लोगों की रहवासी सोसायटी में भय का वातावरण बन गया। सोशल डिस्‍टेंसिंग का पालन करने वाले परिवार भी बेवजह चिह्नित हो गए और लोगों ने संदेह मेंं उनसे दूरी बना ली। जबकि प्रशासन अधिक सतर्कता से समाज में जागरूकता बढ़ाने का काम कर सकता है।

मुख्‍यमंत्री को लिखा पत्र

मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का इस ओर ध्‍यान आकृष्‍ट करते हुए वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता विनीत गोधा ने सुझाव दिए हैं। अपने अनुभवों को बताते हुए गोधा ने मुख्‍यमंत्री को पत्र लिखा है। उन्‍होंने बताया कि करोना प्रभावित या संभावित संक्रमित व्यक्तियों के संबंध में दिए गए दिशा निर्देशों का पालन प्रशासन ही नहीं कर रहा है। गोधा के पत्नी एवं पुत्र 16 मार्च को इंग्‍लैण्‍ड से भोपाल आए थे। उन्‍हें घर पर आइसोलेशन में रखा गया था। इस दौरान गोधा ने जे.पी. हॉस्पिटल में अधिकृत डॉक्टर से फोन पर संपर्क कर सलाह भी ली। इस बीच 22 मार्च को उनके छोटे भाई का बेटा सिडनी से भोपाल आया। उसे भी एक कमरे में आइसोलेशन में रखा गया। प्रशासन ने सूचना देने के बाद भी 23 से 26 मार्च तक उसके स्वास्थ्य की कोई जानकारी नहीं ली गई। इनमें करोना के कोई भी लक्षण नहीं है। फिर अचानक 25 मार्च को घर के मेन गेट पर सूचना चिपका की गई कि 14 मार्च तक घर के सभी सदस्य होम क्‍वारंटाइन में रहेंगे।

गोधा ने कहा कि जो सूचना लगाई गई है उससे यह प्रतीत होता है कि जो व्यक्ति विदेश से आया है उसे कोविड-19 है। इससे आस-पास रहने वाले लोग बेवजह डर गए है। दैनिक आवश्यकता की वस्तुएं प्रदान करने वाले दूधवाले, अखवार वाले, सब्जीवाले ने भी ऐसे परिवारों से दूरी बना ली है। मुश्किल यह है कि गोधा की बुजुर्ग माँ के स्वास्थ्य की देखभाल करने वाली नर्स ने भी आना बंद कर दिया है। वह इंजेक्‍शन लगाने को भी तैयार नहीं हुई। जबकि सूचना लगाने के पहले तक विदेश से आने की जानकारी होने के बाद भी सब सामान्‍य व्‍यवहार कर रहे थे।

शासन ने कहा कि नजर रखें, भय न फैलाएं

गौरतलब है कि केन्द्र सरकार ने करोना वायरस से प्रभावित/संक्रमित व्यक्तियों के संबंध में साफ निर्देश दिए हैं। इन निर्देशों में कहा गया है कि जो भी व्यक्ति विदेश से आये हैं उनके स्वास्थ्य पर ध्यान रखा जाए। ऐसे कदम उठाने चाहिये जिससे महामारी से बचाव किया जा सके एवं महामारी फैलने से रोका जा सके। जो लोग विदेश से आए हैं उनकी पहले जांच हों फिर कार्यवाही की जाए। लेकिन प्रशासन यह नहीं कर रहा है। गोधा ने कहा कि 19 मार्च से मेरे या मेरे परिवार के किसी भी सदस्य की कोई जाँच नही हुई, ना किसी ने यह जानकारी ली कि हम लोग कितने व्यक्तियों के संपर्क में आये। जबकि उनके पुत्र एवं पत्नी को आइसोलेशन में 11 दिन हो चुके हैं।

एक सूची ने 25 सौ हो गए संक्रमित’!

प्रशासन की लापरवाह कार्यप्रणाली का नमूना यह कि उसने विदेशों से आए लोगों की एक सूची बनाई और उसी के आधार पर घर के बाहर सूचना चिपकाई जा रही है। सूची में उन लोगों के भी नाम हैं जो 1 मार्च को भोपाल आए हैं। जबकि आइसोलेशन की समयावधि 14 दिन कही जा रही है। इस सूची से ऐसा लग रहा जैसे शहर में 2000-2500 व्यक्ति करोना वायरस से पीडित हैं। क्‍या यह संभव है?

हड़बड़ी नहीं, सजगता से काम करे प्रशासन

गोधा ने सुझाव किए कि इस महामारी को रोकने के लिये प्रशासन को हड़बड़ी नहीं सजगता से काम करना चाहिए। इसके लिए जो व्यक्ति विदेश से आये हैं उनके स्वास्थ्य पर 14 दिन तक नजर रखी जाए या फोन पर ही स्वास्थ्य के संबंध में जानकारी ली जाए। विदेश से आये व्यक्ति किन-किन व्यक्तियों के संपर्क में आये हैं उनके भी स्वास्थ्य की जानकारी ली जाए। यह जानकारी वही व्यक्ति दे सकता है जो विदेश से आया है कि वह विदेश से आने के पश्चात कितने लोगों से मिला कैसा है। घरों के बाहर जो सूचना चिपकाई है उससे भय का वातावरण बन रहा है। यदि सूचना चिपकाना ही है तो उसकी भाषा को बदला जाना चाहिये जिससे शहर में भय का वातावरण ना बने।