छात्रों को विदेश भेजकर वजीफा देना भूली सरकार, मदद के लिए छात्र ने ट्विटर पर लगाई गुहार
ओवरसीज स्कॉलरशिप स्कीम के तहत एससी, एसटी छात्रों को विदेशों में पढ़ने के लिए मिलने वाली छात्रवृत्ति महीनों से लंबित, विदेशों में फंसे मध्य प्रदेश के दर्जनों छात्र, एडमिशन के बावजूद फंड क्लियर न हो पाने के कारण कई छात्रों का करियर अधर में

भोपाल। प्रदेश में एससी, एसटी, ओबीसी छात्रों के वजीफे में कटौती की खबरों के बीच अब सरकार के भरोसे विदेशों में पढ़नेवाले छात्र भी संकट में आ गए हैं। मध्य प्रदेश सरकार ओवरसीज स्कॉलरशिप स्कीम का फंड भी समय से रिलीज नहीं कर रही है। इस वजह से विदेश में सरकारी वजीफे पर गए अनुसूचित जाति के छात्रों का करियर अधर में आ गया है। समय से छात्रवृत्ति न मिलने से प्रदेश के दर्जनों छात्र विदेशों में फंस गए हैं और उन्हें आगे का रास्ता नहीं सूझ रहा है। कुछ के लिए ये अवसर छूट रहे हैं तो कुछ उधार चुकाने की स्थिति भी खो बैठे हैं। यूनाइटेड किंगडम के लफब्रो यूनिवर्सिटी में पढ़ने गए ऐसे ही एक छात्र ने अब ट्विटर पर आपबीती लिखी है।
लफब्रो यूनिवर्सिटी के 22 वर्षीय छात्र वैभव सिंह ने एक ट्वीट में लिखा है कि, 'आदरणीय अधिकारियों, मैं सितंबर 2021 से मास्टर्स डिग्री के लिए यूके में हूं। मुझे वीजा और टिकट के अलावा अन्य पैसे अभी तक नहीं मिले हैं, जो वादा किया गया था। मुझे तत्काल अपना रेंट भरना है, अन्यथा मुझे यूके कर्ज वसूली विभाग के समक्ष पेश किया जाएगा। यह मेरा भविष्य खराब कर सकता है। कृपया मेरी मदद करें।'
I haven't received any promised expenses other than the Visa and Ticket price reimbursement.
— vaybhav11 (@jaag_ruk) December 13, 2021
I've to pay my accomodation rent urgently, otherwise I'd be presented to the debt collecting dept of the UK.
As a student it can hamper my future prospects of working and learning here.
वैभव राजधानी भोपाल के नारियलखेड़ा इलाके के रहने वाले हैं। माखनलाल यूनिवर्सिटी से बैचलर्स की डिग्री पूरा करने के बाद यूके स्थित लफब्रो यूनिवर्सिटी में उनका दाखिला हुआ। यहां वो स्पोर्ट्स मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे हैं। वैभव ने बताया कि एससी डिपार्टमेंट से उन्हें पूरा वजीफा देने का लिखित वादा मिला था। लेकिन तीन महीने बीतने के बाद भी वीजा और फ्लाइट किराया के अलावा कुछ नहीं मिला है।
यह भी पढ़ें: भोपाल: 20 फीट गहरे सीवेज टैंक में उतरे थे दो कर्मचारी, दम घुटने से हुई दोनों की मौत
वैभव को 500 पाउंड्स मासिक रूम रेंट देना होता है और खाने पर तकरीबन 150 पाउंड खर्च होते हैं। तीन महीने की पढ़ाई का खर्च तो उन्होंने कर्ज लेकर किसी तरह उठा लिया लेकिन अब सभी रास्ते बंद हो चुके हैं और छात्रवृत्ति ही एकमात्र उपाय है। ऐसे में यदि वादे के अनुसार सरकार तत्काल छात्रवृत्ति की राशि नहीं देती है तो उनकी पढ़ाई संकट में आ सकती है।
मगर सरकारी उदासीनता के शिकार अकेले वैभव ही नहीं हैं, प्रदेश के तकरीबन 48 एससी कैटेगरी के छात्र अलग-अलग देशों में इसी तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं। कुछ छात्र तो ऐसे हैं जिनका करियर शुरू होने के पहले ही खत्म होने को है, क्योंकि उन्हें विदेश जाने के लिए सफर के पैसे भी नहीं मिल रहे।
बैतूल जिले के रोहित अथांकर का चयन स्कॉटलैंड के एडनबर्ग स्थित हैरियट-वॉट यूनिवर्सिटी में हुआ है। हैरियट-वॉट यूनिवर्सिटी से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में मास्टर्स डिग्री का सपना लेकर रोहित ने टेलीकॉम कंपनी का जॉब छोड़ दिया। रोहित के पिता शादी-ब्याह व अन्य समारोहों में खाना बनाते हैं। कोरोना काल में उनका ये काम भी रुक गया और अब आर्थिक तंगी की वजह से रोहित दो साल से घर बैठे हैं। 2019 से इंतज़ार करते रोहित सितंबर 2021 में भी एडनबर्ग नहीं जा सके क्योंकि जाने का किराया वहां पहुंचने के बाद प्राप्त होता है और उनके पिता फ्लाइट किराया वहन कर पाने में भी सक्षम नहीं हैं।
यह भी पढ़ें: बिपिन रावत के ससुराल में प्रशासन ने जबरन चलाया बुलडोजर, ससुर की समाधि भी कर दी नष्ट
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में नाम बनाने का जुनून रोहित में आज भी है, लेकिन आर्थिक कमजोरी के कारण उनका सपना हकीकत में तब्दील नहीं हो पा रहा है। रोहित कहते हैं कि 'आज भी यदि विभाग छात्रवृत्ति की रकम दे तो मैं एडनबर्ग में निश्चित ही दाखिला ले सकता हूं। थोड़ी परेशानी होगी लेकिन मैं पूरा प्रयास करूंगा। बस फंड कबतक क्लियर होना है ये तय नहीं है।'
इसी तरह सागर के मकरोनिया इलाके में रहने वाले 29 वर्षीय अंकुर राय का करियर भी स्टार्ट होने से पहले ही ब्रेक की कगार पर है। साल 2019 में इस योजना के तहत पढ़ाई के लिए अंकुर का चयन हुआ था। उनका लंदन स्थित ब्रुनेल यूनिवर्सिटी में एमएससी प्रोजेक्ट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर मैनेजमेंट कोर्स में दाखिला हुआ है। चार जनवरी 2022 से वहां सत्र भी शुरू हो जाएगा लेकिन फंड नहीं मिलने के कारण वे जाने की तैयारी नहीं कर पा रहे हैं। जबलपुर के रांझी इलाके के निवासी विवेक भी ऐसी ही समस्या से जूझ रहे हैं। उन्होंने हम समवेत को बताया कि इस योजना के तहत पढ़ाई के लिए साल 2019 में उनका चयन हुआ था लेकिन छात्रवृत्ति न मिलने की वजह से वे भी विदेश नहीं जा पाए हैं। विवेक का चयन यूके स्थित बर्मिंघम यूनिवर्सिटी में एमबीए कोर्स के लिए हुआ है।
यह भी पढ़ें: इंस्टा रील बनाने के लिए आत्महत्या की एक्टिंग कर रहा था छात्र, फांसी पर झूलने से हुई मौत
मामले पर एससी डिपार्टमेंट से जब हम समवेत ने सवाल पूछा तो पैसों की कमी का हवाला देते हुए बताया गया कि फंड जारी होते ही सभी छात्रों को छात्रवृत्ति का भुगतान कर दिया जाएगा। विभाग के ज्वाइंट डायरेक्ट सुधीर कुमार जैन ने कहा, 'हमारे पास लिमिटेड फंड होने के कारण छात्रों की छात्रवृत्ति रुकी हुई है। सरकार की ओर से जो फंड जारी हुए वो पर्याप्त नहीं हैं। छात्रों के साथ हमारा एग्रीमेंट है। फंड आते ही हम उन्हें छात्रवृत्ति का पैसा देंगे। वर्तमान में 48 छात्र विदेशों में अध्ययन कर रहे हैं और कई अन्य छात्र जाने वाले हैं। जो जाने वाले हैं उनके फर्स्ट सेमेस्टर की छात्रवृत्ति के लिए भी प्रस्ताव भेजा जा चुका है। कुल 7 करोड़ रुपए की आवश्यकता है। यदि आज जारी हो जाएं तो हम आज ही छात्रों को दे देंगे।'
इन बेसहारा छात्रों को सरकारी उदारता की दरकार है। बेहद कम सुविधाओं में ये छात्र विदेश से ज्ञान अर्जित कर अपने मुल्क की सेवा करना चाहते हैं, लेकिन सरकार से उन्हें जरूरी मदद नहीं मिल पा रही है। इससे पहले भोपाल में ऐसे वजीफों में कटौती के लिए प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर सरकार लाठी डंडे बरसा चुकी है। इन गुहारों का हश्र क्या होगा यह नहीं पता लेकिन सभाओं की घोषणाएं हकीकत में बदलें तभी दलित, आदिवासी हितैषी सरकार के दावे पूर्ण होंगे।