जी भाईसाहब जी: किसानों को शत्रु क्यों मानती है सरकार

MP Politics: देश में किसानों का आंदोलन जारी है। एमपी में भी किसान नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। किसानों का दर्द यही है कि उनकी पीड़ा और मांग को सुनने की जगह सरकार दमन की कार्रवाई कर रही है। उनका यह सवाल लाजमी है कि हम इस देश के नागरिक हैं, आखिर हमारे साथ शत्रु देश के नागरिकों जैसा बर्ताव क्‍यों?

Updated: Feb 13, 2024, 12:58 PM IST

2021-22 के संघर्ष के बाद किसान एक बार फिर आंदोलन कर रहे हैं। किसान यह आंदोलन इस उम्‍मीद में कर रहे हैं कि लोकसभा चुनाव के पहले दबाव काम करेगा सरकार पिछले आंदोलन के वक्‍त किए वादे को पूरा करेगी। मगर किसान इस बात से आहत है कि सरकार उनके साथ शत्रु जैसा व्‍यवहार कर रही है।  

संयुक्त किसान मोर्चा ने 13 फरवरी को दिल्ली कूच का ऐलान किया था। सरकार के साथ बातचीत विफल होने के बाद देश भर के किसान 'दिल्ली चलो' का नारा बुलंद करते हुए घरों से निकल पड़े हैं। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के साथ ही मध्‍य प्रदेश से भी किसानों से दिल्‍ली कूच किया ही था कि इन किसानों को रेलवे स्‍टेशनों पर रोक लिया गया। 

किसान नेताओं ने सोशन मीडिया पर मैसेज भेज कर बताया है उन्‍हें भोपाल सहित अलग-अलग स्‍थानों पर ट्रेन से उतार कर उज्‍जैन भेजा जा रहा है। इतना ही नहीं कई किसान नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। महिला किसान भी आंदोलन के लिए दिल्‍ली जा रही थीं। उन्‍हें भी रोक लिया गया है। इन महिलाओं का मीडिया को बताया है कि उनके साथ पुलिस का बर्ताव अच्‍छा नहीं थी। इस कार्रवाई में महिला पुलिसकर्मी भी शामिल नहीं थी। 

अपनी मांग मनवाने के लिए या विरोध के लिए प्रदर्शन लोकतांत्रिक प्रक्रिया है। सरकारें हमेशा इन प्रदर्शनों से असहज हुई हैं। अब तो इन प्रदर्शनों को कुचलने के लिए पूरी ताकत लगा दी जाती है। किसानों का दर्द भी यही है कि उनकी पीड़ा और मांग को सुनने की जगह सरकार दमन की कार्रवाई कर रही है। संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है कि वह केंद्र सरकार को सिर्फ उनके दो साल पहले किए गए वादों को याद दिलाना चाहते हैं जो किसानों से आंदोलन वापस लेने की अपील करते हुए सरकार ने किए थे। वो वादे अबतक पूरे नहीं हुए हैं। सरकार ने एमएसपी पर गारंटी का वादा किया था. किसानों के खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस लेने की बात कही थी। उनका यह सवाल लाजमी है कि हम इस देश के नागरिक हैं, आखिर हमारे साथ शत्रु देश के नागरिकों जैसा बर्ताव क्‍यों?

दोस्ती की सांप सीढ़ी में उलझे शिवराज सिंह चौहान 

मध्‍य प्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सियासत की बाजी सांप सीढ़ी के खेल जैसी हो गई है। एक कदम उन्‍हें आगे बढ़ता है तो दूसरा मोहरा सांप की तरह काट कर नीचे पहुंचाने का जतन साबित होता है। दिल्‍ली नहीं जाऊंगा की टेर लगा चुके शिवराज सिंह चौहान की दिल्‍ली दौड़ जारी है। इसबार दिल्‍ली जाना बेहद खास हुआ क्‍योंक शुक्रवार को दिल्‍ली में उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात हुई। करीब आधे घंटे की मुलाकात के बाद शिवराज सिंह चौहान ने मीडिया से बात नहीं की लेकिन हावभाव देख कर जान पड़ा कि वे खुश है। आखिर, चुनाव के बाद वे पहली बार प्रधानमंत्री मोदी से मिले थे। 

यह मुलाकात इसलिए भी अहम् हो गई है क्‍योंकि शिवराज सिंह के लिए अब मध्‍य प्रदेश के राजनीतिक आकाश में कम जगह बची है। कैसा संयोग है कि कभी उनपर अपने मित्र कैलाश विजयवर्गीय को मध्‍य प्रदेश की राजनीति से बाहर करने के आरोप लगे हैं और अब खुद कैलाश विजयवर्गीय ही शिवराज को मध्‍य प्रदेश के बाहर भेजने का खाका खींच चुके हैं। शिवराज भले ही कहें कि वे दिल्ली नहीं जाएंगे लेकिन उनके दोस्‍त उन्‍हें मध्‍य प्रदेश से विदा करके ही मानेंगे। कम से कम कैलाश विजयवर्गीय की पहल तो यही कहती है। बीजेपी चुनाव समिति की बैठक में कैलाश विजयवर्गीय ने ही छिंदवाड़ा सीट के पैनल में शिवराज सिंह चौहान का नाम रखने का सुझाव दिया था। 

तब से राजनीतिक जगत में यह चर्चा है कि एक दोस्‍त ने पूर्व मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ‘दूसरे दोस्‍त’ कमलनाथ के सामने ले जाकर खड़ा करने की तैयारी कर ली है। असल में, शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ के बीच दोस्‍ती की चर्चा हमेशा रहती है और इनके संबंध राजनीति से तय नहीं होते। इस कारण यह दिलचस्‍प आकलन हो रहा है कि छिंदवाड़ा से शिवराज का नाम किसे मात देने के लिए चलाया गया है, शिवराज खुद या कमलनाथ? 

दो दोस्‍तो कैलाश विजयवर्गीय और शिवराज सिंह चौहान के बीच शह-मात के खेल का यह भी एक संयोग ही है कि केंद्रीय राजनीति में जाने के बाद कैलाश विजयवर्गीय को पश्चिम बंगाल का प्रभार मिला था और शिवराज सिंह चौहान भी लोकसभा चुनाव लड़ने की खबरों की बीच पश्चिम बंगाल पहुंचे थे। ये राजनीतिक चाले और पीएम मोदी व राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जेपी नड्डा से शिवराज सिंह चौहान की मुलाकातें क्‍या और कैसा असर दिखाएगी कुछ दिन में साफ हो जाने वाला है।  

ऐसी उलझी सियासत की सुलझी नहीं

शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक भविष्‍य पर जितना कोहरा है उतनी ही उलझन मध्‍य प्रदेश की राज्‍यसभा सीटों को लेकर भी है। बीजेपी को चार सीटों के लिए प्रत्‍याशी तय करने हैं जबकि कांग्रेस को एक उम्‍मीदवार तय करना है मगर राजनीति के धागे ऐसे उलझे हैं कि सुलझने का नाम नहीं ले रहे हैं। 15 फरवरी नामांकन भरने की अंतिम तिथि है और नामों की घोषणा कभी भी हो सकती है। 

जहां तक उम्‍मीदवार चयन की बात है तो बीजेपी में कई दावेदार हैं। दावा मजबूत करने तथा अपने नाम पर मुहर लगाने के लिए दावेदार नेता संघ से लेकर दिल्‍ली दरबार तक में मोर्चा संभाले हुए हैं। वे पुख्‍ता प्रबंध कर रहे हैं कि मीडिया में नाम न चले। लेकिन इतना भी जानते हैं कि दिल्ली के मन में क्‍या है यह जानना टेढ़ी खीर है। 

दूसरी तरफ, माना जा रहा था कि कांग्रेस ओबीसी नेता को राज्‍यसभा में भेजेगी क्‍योंकि यह सीट ओबीसी नेता राजमणि पटेल का कार्यकाल समाप्‍त होने पर खाली हो रही है। इस कारण प्रदेश अध्‍यक्ष जीतू पटवारी, पूर्व प्रदेश अध्‍यक्ष अरुण यादव आदि के नाम चल पड़े थे। इसबीच पूर्व मुख्‍यमंत्री कमलनाथ की सोनिया गांधी से मुलाकात हुई और खबर आई कि कमलनाथ राज्‍यसभा में जाना चाहते हैं। मामला तब और उलझ गया जब प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष जीतू पटवारी सहित अन्‍य नेताओं ने प्रस्‍ताव दिया कि कांग्रेस नेता सोनिया गांधी को मध्‍य प्रदेश से राज्‍यसभा में भेजा जाए। 

गेंद अब दिल्‍ली के पाले में हैं। उम्‍मीदवार की घोषणा किसी भी पल हो सकती है। देखना होगा कि बीजेपी और कांग्रेस के मुख्‍यालय से किसके नाम पर मुहर लगती है। इतना तो तय है कि नाम जो भी हो, यह चयन आगे की राजनीति को प्रभावित करने वाला है।

आईटी के बहाने कांग्रेस नेताओं की परीक्षा

राज्‍यसभा चुनाव की सरगर्मी, राहुल गांधी की न्‍याय यात्रा की तैयारी, लोकसभा चुनाव की रणनीति के बीच आयकर विभाग ने अलग राजनीतिक फ्रंट खोल दिया है। आयकर विभाग ने कांग्रेस विधायक डॉ. विक्रांत भूरिया, पूर्व मंत्री पीसी शर्मा, पूर्व कोषाध्यक्ष गोविंद गोयल, देवाशीष जरारिया समेत कई कांग्रेस नेताओं को नोटिस दिया है। इन नेताओं को 2014 से 2021 तक की कमाई- खर्च के हिसाब के साथ 13 से 21 फरवरी के बीच दिल्‍ली बुलाया गया है। 

इस समन पर विधायक विक्रांत भूरिया ने कहा है कि आयकर विभाग के पास पूरी जानकारी है। लोकसभा चुनाव नजदीक है, इसलिए यह डराने की कोशिश है। देवाशीष जरारिया ने कहा कि केंद्र सरकार विपक्ष के नेताओं को परेशान कर रही है। ईडी और आईटी का डर दिखाया जा रहा है, पर हम डरने वाले नहीं हैं।

प्रक्रिया जो भी हो लेकिन समन की टाइमिंग पर सवाल उठ रहे हैं। राहुल गांधी की यात्रा के ठीक पहले और लोकसभा चुनाव की तैयारी के बीच कांग्रेस नेताओं को समन के राजनीतिक मंतव्‍य पर सवाल तो उठेंगे ही। कांग्रेस नेताओं के लिए भी यह मौका है कि वे इसे अवसर मानते हुए मैदान में अपनी ताकत दिखाएं। आईटी को गलत साबित करते हुए इसे कार्यकर्ताओं को एकजुट करने का मौका बना लें। आखिर, यह कई मायनों में परीक्षा की घड़ी है और उत्‍तीर्ण होना पहली शर्त है।