मालेगांव ब्लास्ट केस: सबूतों के अभाव में प्रज्ञा ठाकुर समेत सातों आरोपी बरी, NIA ने की थी मौत की सजा देने की मांग

NIA ने अपनी आखिरी लिखित दलिल में मुंबई के स्पेशल कोर्ट से 2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले में प्रज्ञा ठाकुर समेत सभी सात आरोपियों को UAPA की धारा 16 के तहत मौत अथवा आजीवन कारावास की सजा देने की मांग की थी।

Updated: Jul 31, 2025, 02:03 PM IST

मुंबई। महाराष्ट्र के मालेगांव ब्लास्ट मामले में बड़ा फैसला आया है। NIA कोर्ट ने गुरुवार को पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर समेत सातों आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है। 2008 में हुए इस ब्लास्ट के मामले में 17 साल बाद फैसला आया आया है। इससे पहले NIA ने अपनी आखिरी दलित में प्रज्ञा ठाकुर समेत सभी सात आरोपियों को मौत अथवा आजीवन कारावास की सजा देने की मांग थी।

गुरुवार को इस मामले में आरोपी पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल प्रसाद पुरोहित, रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर चतुर्वेदी, समीर कुलकर्णी और सुधाकर धर द्विवेदी कोर्ट में मौजूद थे। इस दौरान स्पेशल कोर्ट के जज एके लाहोटी ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ये साबित नहीं हुआ कि जिस बाइक में ब्लास्ट हुआ वो साध्वी प्रज्ञा के नाम थी। ये भी साबित नहीं हो सका कि कर्नल प्रसाद पुरोहित ने बम बनाया। साजिश का कोई एंगल साबित नहीं हुआ।

विशेष एनआईए अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष मामला साबित करने में विफल रहा। ऐसे में आरोपियों को संदेह का लाभ मिलना चाहिए। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा की वकालत नहीं कर सकता। अदालत केवल धारणा और नैतिक सबूतों के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहरा सकती, इसके लिए ठोस सबूत होने चाहिए। 

NIA कोर्ट ने कहा कि प्रॉसिक्यूशन ने ये तो साबित कर दिया कि मालेगांव में धमाका हुआ था, लेकिन वे ये साबित करने में नाकाम रहे कि बाइक में बम प्लांट किया गया। कोर्ट ने यह भी कहा कि धमाके के बाद पंचनामा ठीक से नही किया गया और घटनास्थल से फिंगरप्रिंट नहीं किए गए। बाइक का चेसिस नंबर भी कभी रिकवर नहीं हुआ। प्रज्ञा ठाकुर उस बाइक की मालिक थी, यह भी सिद्ध नही हो पाया।

बता दें कि 29 सितंबर 2008 को मालेगांव ब्लास्ट हुए थे। इस धमाके में 6 लोगों की मौत हुई थी। करीब 101 लोग जख्मी हुए थे। इस ब्लास्ट के पीछे हिंदू राइट विंग ग्रुप्स से जुड़े लोगों का हाथ होने की बात सामने आई थी। इस केस की शुरुआती जांच महाराष्ट्र एटीएस ने की थी। 2011 में केस एनआईए को सौंप दिया गया। 2016 में एनआईए ने चार्जशीट दायर की। इस मामले में 3 जांच एजेंसियां और 4 जज बदल चुके हैं। साथ ही 323 गवाहों में से 32 ने कथित तौर पर दबाव में आकर अपने बयान वापस ले लिए थे। इससे पहले 8 मई 2025 को फैसला आने वाला था, लेकिन बाद में इसे 31 जुलाई तक के लिए सुरक्षित रख लिया था।

17 साल से चल रहे इस मामले की दलीलें पूरी होने के बाद अप्रैल 2025 में NIA की ओर से आखिरी लिखित दलील दायर की गई थी। NIA द्वारा दायर की गई 1,500 से अधिक पृष्ठ लंबी इस दलील में सभी सात आरोपियों पर व्यापक साजिश के तहत विस्फोट की साजिश रचने और उसे अंजाम देने का आरोप लगाया गया था। NIA ने मुंबई के स्पेशल कोर्ट से 2008 के इस मामले में प्रज्ञा ठाकुर समेत सभी सात आरोपियों को मौत अथवा आजीवन कारावास की सजा देने की मांग है। हालांकि, अब कोर्ट ने सबूतों के अभाव में सभी को बरी कर दिया है।