मध्य प्रदेश में सुरक्षित नहीं हैं महिलाएं, हर दिन दुष्कर्म के 15 और छेड़छाड़ के 20 मामले

मध्य प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं। पिछले वर्ष में दुष्कर्म, अपहरण और छेड़छाड़ की घटनाएं बढ़ी हैं। पुलिस की सुस्ती और कमजोर खुफिया तंत्र के कारण अपराधियों में पुलिस का डर नहीं है।

Updated: Jan 22, 2025, 05:36 PM IST

Photo Courtesy: The Week
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भोपाल। मध्य प्रदेश में आधी आबादी यानी बेटियां और महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। महिलाओं को घर से बाहर निकलते ही छेड़छाड़ और दुष्कर्म का डर सताने लगता है। पिछले साल यानी 2024 में दुष्कर्म, सामूहिक कुकर्म और छेड़छाड़ की घटनाओं में शर्मनाक वृद्धि दर्ज की गई है। राज्य में प्रतिदिन औसतन 15 महिलाएं दुष्कर्म और 20 महिलाएं छेड़छाड़ की शिकार बनती हैं।

महिला सशक्तीकरण के तमाम दावों के बीच वर्ष 2024 के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में हर दिन दुष्कर्म की 15, अपहरण व बंधक बनाने की 31 और छेड़छाड़ की 20 घटनाएं हुईं। लगभग साढ़े आठ करोड़ की आबादी वाले मध्य प्रदेश में बीते वर्ष नवंबर तक बालिकाओं और महिलाओं के अपहरण और बंधक बनाने के 10 हजार 400 मामले सामने आए। यानी हर दिन औसतन 31 घटनाएं हो रही हैं। वर्ष 2022 से 2024 के बीच अपहरण और बंधक बनाने की घटनाएं लगातार बढ़ी हैं।

ये तो सिर्फ अपहरण और बंधक बनाने के आंकड़े हैं। दुष्कर्म की घटनाएं लगातार बढ़ते हुए वर्ष 2024 में पांच हजार से ऊपर पहुंच गईं। सामूहिक दुष्कर्म के मामले भले ही पिछले वर्षों की तुलना में घटे हैं पर घटनाएं 200 से अधिक हैं। कहने को तो एक घटना से एक महिला (पीड़िता) प्रभावित होती, पर सच्चाई यह है कि पूरा परिवार और हर वह महिला भयग्रस्त हो जाती है, जिसे घटना के बारे में पता लगता है।

इतना ही नहीं अपने घर में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। राज्य में इस अवधि के दौरान पति द्वारा क्रूरता के 7 हजारा 172 घटनाएं सामने आई है। यानी प्रतिदिन 19 से अधिक महिलाओं को घर में ही उत्पीड़न सहना पड़ता है। वर्ष 2024 में महिलाओं द्वारा खुदकुशी के भी 629 मामले सामने आए हैं। जबकि दहेज के लिए हत्या के 412 केस दर्ज हुए हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक ये आंकड़े तो वे हैं जो रिपोर्ट की गई। अधिकांश घटनाएं रिपोर्ट तक नहीं होती हैं। ऐसे में वास्तविक आंकड़े इससे कहीं अधिक होंगे।

एक्सपर्ट्स का मानना है कि महिला सुरक्षा के मामले में पुलिस को जिस संवेदनशीलता से काम करना चाहिए वह नहीं दिखता। प्रदेश में कई ऐसे उदाहरण हैं कि पीड़िता की थाने में सुनवाई नहीं हुई। इसी माह गुना में एक दुष्कर्म पीड़िता की सुनवाई तीन माह तक नहीं हुई तो वह आरोपितों के नाम की तख्ती गले में लटकाकर थाने पहुंची। ऐसी घटनाएं बताती हैं कि पुलिस को महिला सुरक्षा के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होने की आवश्यकता है।