ड्रग एडिक्ट को जेल भेजने से बचें, मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत: सामाजिक न्याय मंत्रालय

सामाजिक न्याय मंत्रालय ने एक सिफारिश में कहा है कि ड्रग्स लेने वाले या कम मात्रा में ड्रग्स के साथ पकड़े गए लोगों को अपराध मुक्त करना चाहिए, मंत्रालय ने एनडीपीएस अधिनियम में संशोधन की मांग की है

Updated: Oct 24, 2021, 08:07 AM IST

Photo Courtesy: SCL
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नई दिल्ली। गौतम अडानी के पोर्ट पर हजारों करोडों के ड्रग्स की बरामदगी से लेकर आर्यन खान के दोस्त के पास 6 ग्राम ड्रग्स पाए जाने का मामला पिछले कई दिनों से सुर्खियों में है। इसी बीच ड्रग्स को लेकर सामाजिक न्याय मंत्रालय की एक अहम सिफारिश सामने आई है। इसमें केंद्रीय मंत्रालय ने कहा है कि हमें ड्रग्स लेने वालों को जेल भेजने से बचना चाहिए, साथ ही ड्रग एडिक्ट के साथ मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। 

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्‍ट की समीक्षा के बाद उसमें संशोधन का सुझाव दिया है। इसमें मंत्रालय ने स्पष्ट कहा है कि कम मात्रा में ड्रग्स रखने को अपराध से मुक्त करना चाहिए। सिफारिश में यह भी कहा गया है कि जिन्हें ड्रग्स की लत हो तो ऐसे लोगों को जेल में डालने के बजाए नशामुक्ति केंद्र में भेजना चाहिए।

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रिपोर्ट के मुताबिक पिछले महीने एनडीपीएस एक्‍ट की नोडल एडमिनिस्‍ट्रेटिव अथॉरिटी (राजस्व विभाग) ने केंद्रीय गृह मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय, सामाजिक न्याय मंत्रालय, NBC और CBI को एनडीपीएस कानून में बदलाव के लिए सुझाव और उसके लिए तर्क मांगे थे।  सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने इस संबंध में इंटरनेशनल नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड की सिफारिशों के आधार पर अपना सुझाव दिया है। इंटरनेशनल नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड कहता है कि ड्रग्स के उपयोग का अपराधीकरण केवल धब्बा लगाने का काम करता है और इससे समस्या कम होने के बजाए और जटिल हो सकती है।

बता दें कि भारत में ड्रग्स सेवन को बेहद गंभीर अपराध के रूप में दर्शाया जाता है। एनडीपीएस कानून का सेक्शन 27 में ड्रग्स लेने अथवा कम मात्रा में रखने पर अधिकतम 1 साल की कैद अथवा 20 हजार जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान है। इसमें पहली बार ट्राय करने, शौकिया तौर पर लेने अथवा उसके आदि के बीच कोई अंतर नहीं है। भारतीय न्यायिक परंपरा में अमूमन अधिकतम सजा नहीं दी जाती है, बल्कि बीच का रास्ता अपनाया जाता है।

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हालांकि, बॉलीवुड से जुड़े हाल के दिनों में जो मामले सामने आए हैं, उनमें ऐसा नहीं है। बीते दिनों में देश में जो इस तरह के मामले सामने आए हैं उसे सनसनीखेज तरीके से बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने के लिए प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने आरोपियों के चरित्रहनन में भी कोई कसर नहीं छोड़ा है। इतना ही नहीं एनसीबी और न्यायालय के रवैये को लेकर भी पूर्वाग्रह से ग्रसित होने के आरोप लगने लगे। 

मशहूर अभिनेता शाहरुख खान के बेटे आर्यन के मामले में भी 6 ग्राम ड्रग्स रिकवरी को इंटरनेशनल कार्टेल के तौर पर पेश किया गया। इतना ही नहीं जिस अपराध की अधिकतम सजा ही 1 साल है उसमें अपराध पूरी तरह सिद्ध होने से पहले ही अभियुक्त को तीन हफ्ते से जेल में रखा गया है। जबकि कानून के मुताबिक बेल नियम होना चाहिए और जेल अपवाद। ऐसे में कानूनी जानकार इस बात को लेकर चिंतित हैं कि ड्रग्स के चंगुल में फंसे लोगों को जब मुख्यधारा में शामिल करने का प्रयास किया जाना चाहिए तब चरित्रहनन और उनके साथ कठोर व्यवहार होने से वे अपराध के और करीब जा सकते हैं।