सालों जेल से बाहर रहे बिल्किस बानो के रेपिस्ट, पैरोल के दौरान महिला के शीलभंग का आरोप

गुजरात सरकार का कहना है कि बिल्किस बानो के साथ दरिंदगी और गैंग रेप करने वालों का व्यवहार जेल में अच्छा था, जबकि असलियत ये है कि इनमें से एक पर साल 2020 में भी पैरोल के दौरान महिला का शीलभंग करने का आरोप लगा था

Updated: Oct 18, 2022, 06:41 PM IST

नई दिल्ली। गुजरात दंगों के दौरान मुस्लिम महिला बिल्किस बानो के साथ दरिंदगी और गैंग रेप करने वालों की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिका के खिलाफ गुजरात सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि सभी 11 दोषियों का व्यवहार जेल में अच्छा था, इसलिए उन्हें क्षमा नीति के तहत रिहा किया गया। हालांकि, असलियत बेहद चौंकाने वाली है। 

दरअसल, बिल्किस बानो केस के सभी हैवानों को शुरू से ही स्पेशल सुविधा दी जाती रही। वे सालों तक पैरोल पर जेल से बाहर रहे। शादी व अन्य कार्यक्रमों के बहाने वे अक्सर बाहर रहते थे। इस दौरान 11 में से चार दोषियों पर गवाहों को धमकाने के आरोप लगे। इतना ही नहीं दो साल पहले ही इनमें से एक दोषी चिम्मनलाल भट्ट पर महिला का शीलभंग करने के मामले में मुकदमा दर्ज किया गया था। पैरोल के दौरान उसने कथित रूप से महिला का शीलभंग किया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे कितने व्यवहार कुशल हैं।

कोर्ट के डॉक्यूमेंट से ही पता चलता है कि सभी दोषी 14 साल की सजा के दौरान एक हजार दिन से ज्यादा पैरोल पर बाहर ही रहे। इनमें से एक दोषी ने 1576 दिन जेल से बाहर बिताए। एक अन्य दोषी रमेशभाई रुपाभाई चंदाना को इन 14 सालों के दौरान 1198 दिनों की परोल मिली और 378 दिन फरलो (कैदी को मिली छुट्टी, जो सजा में ही गिनी जाएगी) भी मिली। दो और दोषी राजूभाई बाबूलाल सोनी और प्रदीप रमनलाल मोधिया 1200 दिन से ज्यादा पैरोल पर बाहर रहे।

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पैरोल पर बाहर आने पर उन्होंने बिलकिस बानो को तंग किया था। बिलकिस ने उत्पीड़न की सूचना भी दी थी, जो गुजरात सरकार के उनके "अच्छे व्यवहार" के दावे पर गंभीर सवाल उठाता है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने गुजरात सरकार के अनुरोध के दो सप्ताह के भीतर दोषियों की रिहाई को मंजूरी दे दी थी। गुजरात सरकार ने 28 जून को केंद्र की मंजूरी मांगी थी। यानी इस मामले में केंद्र सरकार ने भी बेहद तेजी दिखाई जो आमतौर पर दूसरे मामलों में महीनों लग जाते हैं।

साल 2021 में इस केस गवाहों में से एक अब्दुल रज्जाक मंसूरी ने गुजरात के गृह मंत्री प्रदीपसिंह जडेजा को पांच पन्नों का एक पत्र लिखा था। इसमें कहा गया था कि आरोपी पैरोल के दौरान जेल से बाहर आकर अपने समय का उपयोग राजनीतिक कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए कर रहे हैं। साथ ही अपने व्यवसाय फैला रहे थे। एक दोषी ने तो कथित रूप से पैरोल के दौरान ही भाजपा ज्वाइन कर लिया था।

मंसूरी ने इस पत्र में यह भी कहा कि वे लगातार गवाहों को जान से मारने की धमकी दे रहे हैं। इस वजह से गवाह डर के साए में जी रहे हैं। इतना ही नहीं धमकियों के बीच मंसूरी की सीआरपीएफ कवर भी छीन ली गई। इस वजह से वे और असुरक्षित महसूस करने लगे। बावजूद इस साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर सभी दोषियों को रिहा किया गया। गुजरात की जेल के बाहर आने पर फूल माला और मिठाइयों से उनका स्वागत किया गया था।

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बता दें कि 11 दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। गुजरात सरकार ने उनके अच्छे व्यवहार का तर्क दिया। साथ ही बताया कि केंद्र सरकार की मंजूरी से ही उन्हें छोड़ा गया। हैरानी की बात ये है कि केंद्र और गुजरात सरकार दोनों ने इन दोषियों को मुक्त करने के लिए सीबीआई और एक विशेष न्यायाधीश की कड़ी आपत्तियों को भी खारिज कर दिया था। सीबीआई ने पिछले साल ही कहा था कि ये अपराध जघन्य और गंभीर है, इसमें किसी तरह की नरमी नहीं बरती जानी चाहिए।

एक विशेष न्यायाधीश ने इसे घृणा अपराध का सबसे बुरा रूप कहा था। न्यायाधीश ने कहा था कि ये अपराध इसलिए किया गया क्योंकि पीड़ित एक विशेष धर्म की थी। इस मामले में, नाबालिग बच्चों को भी नहीं बख्शा गया। इसी बीच केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इस केस में कुछ भी गलत नहीं हुआ। कानून के अनुसार दोषियों को रिहा किया गया।