जी भाईसाहब जी: शाह की अगवानी में सिंधिया की ठसक उतरी, एकता के हवन में नहीं ख़त्म हुआ क्लेश

केंद्रीय मंत्री ज्‍योति‍रादित्‍य सिंधिया ‘महल’ में शाह की अगवानी करके भी निशाने पर आ गए। गृहमंत्री शाह से ज्‍यादा उनकी मुद्राओं की चर्चा है। दूसरी तरफ, ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के समर्थक मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया ने एक बार फिर अपने बयान से सरकार को संकट में डाल दिया है।

Updated: Oct 19, 2022, 03:32 AM IST

जय विलास पेलेस में गृहमंत्री अमित शाह
जय विलास पेलेस में गृहमंत्री अमित शाह

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का दौरा हो तो खबरें केवल मुख्‍य आयोजन में कही गई बातों से ही नहीं बनती हैं बल्कि मंच और मंच से परे जो कहा, सुना और देखा गया है वे बातें भी राजनीति का भविष्‍य लिखती हैं। बीजेपी की राजनीतिक व्‍यूह रचनाकर्ता अमित शाह इसबार भी जब भोपाल और ग्‍वालियर आए तो उनके कहने और होने ने कई तरह के राजनीतिक संकेत दे दिए। किसी के लिए यह अच्‍छे दिन का आभास था तो किसी को मायूसी हाथ लगी। 

मुख्‍य आयोजन भोपाल में एमबीबीएस की पढ़ाई हिंदी में का शुभारंभ था। जहां आयोजन स्‍थल पर अमित शाह के साथ चलने के जतन करते दो कद्दावर मंत्रियों का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। दोनों मंत्री एक दूसरे को पछाड़कर शाह के करीब दिखने की होड़ करते नजर आए। दूसरा ग्वालियर में नए एयर टर्मिनल का शिलान्यास और सिंधिया के महल में मराठा संग्रहालय का उद्घाटन। यहां सबको साथ लेकर चलने का जतन करते खुद गृहमंत्री दिखे। एक सभा को संबोधित करते हुए अमित शाह ने जो कहा वह मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए भले ही निराश करनेवाला हो मगर चुनाव का सिक्का सिर्फ मोदी के नाम चलेगा कहकर शाह ने सबको साधने की कोशिश की। हम अपने कॉलम में पहले ही बता चुके हैं कि शिवराज सरकार के प्रति नाराजगी की खबरों के बाद पार्टी ने पीएम मोदी के चेहरे के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की रणनीति बनाई है।

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सार्वजनिक रूप से शाह का यह कहना पार्टी में शिवराज सिंह चौहान के विरोधियों को ताकत दे गया। विरोधी गुट यह फैलाने में सफल हो रहा है कि जनता में शिव ‘राज’ को लेकर नाराजगी है। वे इसी आधार पर नेतृत्‍व परिवर्तन की उम्‍मीद कर रहे हैं। जबकि, हर बार इन कयासों को झूठा साबित करने वाले सीएम शिवराज सिंह चौहान खेमा एक बार फिर सरकार के कामों व शिवराज की छवि को चुनाव जिताऊ मुहावरा बनाए रखने की कोशिश में जुट गया है। 

इसी तरह, केंद्रीय मंत्री ज्‍योति‍रादित्‍य सिंधिया ‘महल’ में शाह की अगवानी करके भी निशाने पर आ गए। गृहमंत्री शाह से ज्‍यादा उनकी मुद्राओं की चर्चा है। अमित शाह ने ग्‍वालियर में सिंधिया महल के संग्रहालय में मराठा गैलरी का शुभारंभ किया। शाह की मेजबानी को केंद्रीय नागरिक उड्‌डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का ‘शक्ति प्रदर्शन' माना गया। समर्थक इस बात से खुश हुए कि ग्वालियर-चंबल ही नहीं बीजेपी की राजनीति में उन्‍हें वजन भी मिल गया है। 

मगर इस आकलन से ज्‍यादा चर्चा सिंधिया की मुखमुद्रा की हुई। शाह के सामने यूं तो बीजेपी के हर नेता हाथ बांधे खड़े रहते हैं। मगर ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को सार्वजनिक रूप से अपने ही राज प्रसाद में पहले ऐसे कभी नहीं देखा गया..गृहमंत्री शाह की मेजबानी करते हुए उनके चेहरे पर और पहनावे में न वैसी रंगत थी न व्‍यवहार में वैसी ठसक जिसके लिए वे जाने जाते हैं या ‘महाराज’ कहलाते रहे।

असल में, इन दिनों वे जितना सरल दिखने का प्रयास कर रहे हैं, उतने ही विपक्ष और अपनी ही पार्टी के नेताओं के निशाने पर आ गए हैं। महल में गृहमंत्री शाह के सम्‍मुख सिंधिया की मुद्रा को देख कांग्रेस ने तंज कसा कि ‘महाराज’ अपने ही महल में ‘दरबारी’ बने नजर आए हैं। दूसरी तरफ पीएम और एचएम के जाने के बाद बीजेपी यह हिसाब लगाने में लगी है कि इन यात्राओं में किसके हिस्‍से में क्‍या आया और किसने क्‍या खोया। 


एकता के हवन में मनभेद नहीं हुआ स्‍वाहा 

केंद्रीय मंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया जब से कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में आए हैं, ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में बीजेपी की अंतर्कलह थमने का नाम नहीं ले रही है। पहले बीजेपी के स्‍थानीय नेता खुलकर ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया का विरोध किया करते थे, पार्टी नेतृत्‍व की समझाइश के बाद सार्वजनिक विरोध कम हुआ है मगर आंतरिक प्रतिस्‍पर्धा व नाराजगी बढ़ गई है। 

ग्‍वालियर-चंबल क्षेत्र की खेमेबंदी को समझते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने एकजुटता का संदेश देने की कोशिश की। एयरपोर्ट के विस्तार योजना के शिलान्यास कार्यक्रम में अमित शाह के साथ प्रदेश बीजेपी के सभी दिग्गज एक साथ हवन करते नजर आए। ऐसा कर नेतृत्‍व उम्‍मीद कर रहा है कि इस हवन में बीजेपी क्षत्रपों की हितों की लड़ाई और वर्चस्‍व का संघर्ष स्‍वाहा हो जाएगा। मगर ऐसा हुआ नहीं बल्कि मनभेद फिर उजागर हुआ। 

पिछले सप्‍ताह जिलाध्‍यक्ष की नियुक्ति होने पर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का खेमा प्रसन्‍न था तो इस सप्‍ताह जवाब में सिंधिया खेमे ने महत्‍वपूर्ण मौके पर तोमर को नजरअंदाज कर दिया। ग्‍वालियर नगर निगम चुनाव में महापौर का पद हारने के बाद बीजेपी ने नए जिला अध्यक्ष की नियुक्ति की है। नवनियुक्‍त जिलाध्‍यक्ष अभय चौधरी केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के करीबी माने जाते हैं। उनकी नियुक्ति से माना गया कि तोमर ने स्थानीय राजनीति में बढ़त ले ली है। तोमर का कद बढ़ने का प्रभाव यह था कि नवनियुक्‍त अध्‍यक्ष के स्‍वागत में दूसरे नेताओं के समर्थक पहुंचे ही नहीं। 

ग्‍वालियर क्षेत्र में हर नियुक्ति पर महल यानि सिंधिया की सहमति और इच्‍छा के सम्‍मान की परंपरा टूटी तो सिंधिया समर्थकों को यह बात नागवार गुजरी। जवाब में सिंधिया खेमे ने शाह की ग्‍वालियर यात्रा के समय जारी विज्ञापन में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का फोटो गायब कर दिया। अमित शाह के स्वागत में सिंधिया समर्थक मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर ने समाचार पत्रों में विज्ञापन जारी किए हैं तो विज्ञापन में एक दर्जन छोटे-बड़े नेताओं के फोटो थे लेकिन केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का फोटो गायब था। कयास लगाए जा रहे हैं कि ग्‍वालियर संसदीय सीट पर दावेदाी से लेकर क्षेत्र की राजनीति में वर्चस्‍व तक का यह संघर्ष आगे और कड़वा होगा। 


मंत्री ही खोल रहे हैं पोल, भ्रष्‍टाचार की तुलना भगवान को चढ़ावे से 

रोजगार और भ्रष्‍टाचार को लेकर विपक्ष तो बीजेपी सरकारों को घेरता ही रहा है, अब तो दो मंत्रियों के बयानों ने राजनीति गर्मा दी है। बेरोजगारी और युवाओं में बढ़ते तनाव पर केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने यूं कहते हुए सहमति दिखाई कि देश के युवा डिप्रेशन में आकर आत्महत्या कर रहे हैं। उन्‍होंने डिप्रेशन की सबसे बड़ी वजह सरकारी नौकरी ना मिलने को बताया।

कुलस्‍ते ने क‍हा कि सरकारी नौकरियों में अवसर बेहद सीमित हैं। कट ऑफ बहुत ज्यादा है। सामान्य वर्ग का कट ऑफ 99 फीसदी के करीब खत्म होता है जबकि एससी एसटी का 95 फीसदी। ऐसे में बड़े पैमाने पर युवा नौकरियों से वंचित रह जाते हैं। भोपाल में हुए दलित चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (डिक्की) कि एससी-एसटी बिजनेस कॉन्क्लेव में स्वरोजगार और स्‍व उद्यम का संदेश देने के मंत्री कुलस्‍ते के इस तरीके ने विपक्ष को बेरोजगारी के मसले पर सरकार को घेरने का मौका दे दिया। 

दूसरी तरफ, पंचायत मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया एक बार फिर अपने बयान के कारण चर्चा में आए। केंद्रीय मंत्री ज्‍योतिरादत्यि सिंधिया के समर्थक मंत्री सिसोदिया ने भ्रष्‍टाचार की तुलना मंदिर में भगवान को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद से कर दी। 

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मामला शिवपुरी जिले की कोलारस विधानसभा का है। प्रभारी मंत्री महेंद्र सिसोदिया के साथ कोलारस के विधायक वीरेंद्र सिंह रघुवंशी मौजूद थे। सरपंच सचिव सम्मेलन में एक सरपंच ने कहा कि पिछले 6 महीने में उनकी पंचायत में 6 रुपए के काम नहीं हुए। अधिकारी हर काम में कमीशन मांगते हैं। हम तो महाराज के सिपाही हैं। मगर जनता तो काम मांगती है। 

जवाब में प्रभारी मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया ने यह कहते हुए समझाया कहा कि भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे तक फैला हुआ है। इसे खत्म करने में 8 नहीं 80 साल भी लग सकते हैं। प्रश्‍नकर्ता को समझाते हुए मंत्री सिसोदिया ने कहा कि भगवान को भी तो प्रसाद चढ़ाते हो। उसमें भी तो तुम्हारा स्वार्थ होता है। जवाब आया भगवान तो सुनते है। इतना सुनते ही बैठक में ठहाके लग गए। 

भ्रष्‍टाचार और कमिशनखोरी की तुलना भगवान के प्रसाद से कर मंत्री सिसोदिया उलझ गए हैं। वे अब पार्टी नेतृत्‍व को सफाई दे रहे हैं मगर जो वीडियो वायरल हुआ उसको झुठलाएं भी तो कैसे? 

सोशल मीडिया कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक

2018 में सरकार बनाने वाली कांग्रेस दो साल भी सत्‍ता में नहीं रह पाई। बीजेपी ने कांग्रेस के तत्‍कालीन कद्दावर नेता ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के साथ दो दर्जन विधायकों को तोड़ कर सरकार में वापसी कर ली। तब से अब तक हुए उपचुनावों, नगरीय और पंचायत चुनावों में कांग्रेस की राह रोकने के लिए बीजेपी ने हर तरह के जतन किए है।

साम, दाम, दंड, भेद की राजनीति के बीच कांग्रेस को अहसास था कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को देश के मुख्‍य मीडिया में मनचाहा कवरेज नहीं मिलेगा। तभी दूसरी रणनीति पर काम किया गया। यात्रा फिलहाल दक्षिण में है लेकिन इसे देश भर में लोकप्रिय बनाने का काम सोशल मीडिया के माध्‍यम से किया गया। 

करीब चार हजार किलोमीटर की यात्रा 40 दिनों के सफर में एक हजार किलोमीटर की दूरी पूरी कर चुकी है। कांग्रेस की सोशल मीडिया विंग के साथ यात्रा में शामिल लोगों ने यात्रा के फोटो और वीडियो पोस्‍ट करने शुरू किए और देखते ही देखते सोशल मीडिया के जरिए ये हर तरफ दिखाई देने लगे हैं।

सोशल मीडिया पर लोकप्रियता बड़ी तो मुख्‍य मीडिया में भी यात्रा को जगह मिलने लगी। इस तरह सोशल मीडिया को कोसने की जगह उसका बुद्धिमानी से उपयोग कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक साबित हुआ।