बिहार में घटने लगा नीतीश का कद, बीजेपी सांसद ने क्या इसीलिए मांगी शराबबंदी में छूट

नीतीश कुमार का नया कार्यकाल शुरू होने से पहले ही बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने शराबबंदी में ढील देने की मांग कर दी, क्या यह आने वाले दिनों का संकेत है

Updated: Nov 14, 2020, 02:26 AM IST

Photo Courtesy: Timesnowhindi.com
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पटना/रांची। बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार के नए कार्यकाल में उनका दबदबा पहले जैसा नहीं होने वाला ये तो जग जाहिर है। नीतीश की पार्टी जेडीयू की विधानसभा में घटी ताकत के मद्देनज़र ऐसा होना स्वाभाविक भी है। लेकिन हैरानी की बात ये है कि नीतीश कुमार की बदली हैसियत की झलक उनके फिर से मुख्यमंत्री बनने के औपचारिक एलान से पहले ही मिलने लगी है। बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने शराबबंदी में ढील दिए जाने की मांग करके यही संकेत दिया है कि बीजेपी को अब नीतीश कुमार की ज़्यादा परवाह करने की ज़रूरत नहीं है।

झारखण्ड के गोड्डा से बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने नीतीश कुमार से शराबबंदी में ढील देने की मांग ये जानते हुए दी है कि यह मुद्दा नीतीश कुमार के लिए कितना महत्वपूर्ण रहा है। निशिकांत दुबे का कहना है कि बिहार में शराबबंदी लागू किए जाने से राज्य को बहुत नुकसान हो रहा है। राज्य के पर्यटन और होटल कारोबार पर बुरा असर पड़ रहा है। लिहाज़ा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को शराबंदी पर फिर से विचार करना चाहिए।

निशिकांत दुबे ने इस बारे में ट्विटर पर लिखा है, "बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी से आग्रह है कि शराब बंदी में कुछ संशोधन करें,क्योंकि जिनको पीना या पिलाना है वे नेपाल,बंगाल,झारखंड,उत्तरप्रदेश,मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ का रास्ता अपनाते हैं,इससे राजस्व की हानि,होटल उद्योग प्रभावित तथा पुलिस, एक्साइज भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं।"  

ध्यान देने की बात है कि बिहार चुनाव के दौरान चिराग पासवान भी शराबबंदी के मुद्दे पर नीतीश का विरोध करते हुए बहुत कुछ ऐसी ही दलीलें दिया करते थे। महागठबंधन के नेता भी चुनाव में नीतीश के शराबबंदी के फैसले की नाकामी को मुद्दा बनाते रहे हैं। विपक्ष लगातार आरोप लगाता रहा है कि राज्य में शराबबंदी की आड़ में शराब की कालाबाज़ारी बढ़ी है। लेकिन नीतीश कुमार चुनाव अपने फैसले पर डटे रहे और शराबबंदी को अपनी बड़ी उपलब्धि बताते रहे हैं। 

ऐसे में नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के औपचारिक एलान से पहले ही शराबबंदी का मुद्दा बीजेपी के एक सांसद की तरफ से उठाए जाने का क्या मतलब हो सकता है? क्या इसका यह मतलब है कि अब से नीतीश के हर फैसले में बीजेपी का दखल होगा? क्या बीजेपी निशिकांत दुबे के जरिए नीतीश कुमार को उनकी बदली हुई हैसियत का एहसास कराना चाहती है? क्या यह संकेत देने की कोशिश की जा रही है कि कुर्सी पर बैठने से पहले ही वे समझ लें कि आगे क्या होने वाला है? और अगर घटी हुई हैसियत मंज़ूर न हो तो अपने आखिरी चुनावी सभा के भाषण पर अमल करने का रास्ता उनके लिए खुला है?

ये भी संभव है कि निशिकांत दुबे का यह बयान पानी में पत्थर फेंककर अंदाज़ा लगाने की कोशिश हो, जिसे बाद में सांसद की निजी राय बताकर खारिज किया जा सकता है। कुछ भी हो, इतना तो साफ है कि नीतीश कुमार के लिए इस बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पहले जैसी आरामदेह नहीं होने वाली।