अन्नदाता का मतलब समझना हो तो किसानों के लंगर में आइए

दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसानों के लंगर में कई गरीबों का पेट भर रहा है, जिन्हें दिन में एक वक़्त खाना नसीब नहीं था अब उन्हें नाश्ता, खाना, चाय, फल, स्नैक्स सब मिल रहे हैं

Updated: Dec 06, 2020, 04:22 PM IST

Photo Courtesy: Twitter
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नई दिल्ली। किसानों को अन्नदाता क्यों कहते हैं, समझना हो तो दिल्ली की सीमाओं पर मौजूद उनके लंगर में चले जाइए। जहां ये किसान अपने साथ लाए राशन से अपना ही नहीं, इलाके के बेघर और गरीब लोगों का भी पेट भर रहे हैं। मोदी सरकार भले ही इनकी मांगें पूरी करने में आनाकानी कर रही हो, लेकिन ये धरती पुत्र इंसानियत का तकाज़ा पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। जिन गरीब बच्चों को पहले एक वक्त के भोजन के लिए भी दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती थीं, उन्हें अब चाय, नाश्ता, खाना सब मिल रहृा है।

दरअसल कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के लिए आए पंजाब-हरियाणा के लाखों किसान पिछले 11 दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं। वे अपने साथ कई महीने का राशन लेकर आए हैं। जिससे वे सिर्फ अपना नहीं, बल्कि तमाम गरीबों और बेसहारा लोगों का भी पेट भर रहे हैं।

किसानों के लंगर में वे लोग भरपेट भोजन पा रहे हैं, जिन्‍हें पहले पता नहीं होता था कि दिन में एक बार भी भरपेट खाना मिलेगा या नहीं। ऐसे तमाम लोगों को किसानों के लंगर में दिन में तीन बार खाना और कई बार चाय-नाश्ता मिल रहे हैं। लंगर में बंटने वाले फल, खीर, मीठे चावल और स्‍नैक्‍स भी गरीबों को नसीब हो रहे हैं। इसके अलावा किसानों के डेरे कचरा बीनने वालों के लिए रोज़ी-रोटी कमाने का जरिया भी बन गए हैं। लंगर में इस्‍तेमाल होने वाली प्‍लेट्स, प्‍लास्टिक की चम्‍मच और गिलास बेचकर इन्हें कुछ पैसे भी मिल जा रहे हैं। 

न्यूज 18 की एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे ही तीन बच्‍चे हैं 10 साल का रुबियाल और उसके दो छोटे भाई-बहन। तीनों अपने मां-बाप के साथ दिल्‍ली-हरियाणा के सिंघु बॉर्डर के पास झुग्‍गी-झोपड़ी में रहते हैं। उनके मां-बाप कबाड़ बीनकर उसे बेचते हैं, जिससे मुश्किल से ही उनका पेट भरता है। जब से किसानों का धरना शुरू हुआ है, तीनों बच्‍चे किसानों के डेरे के पास ही डटे रहते हैं। वे अपने स्कूल तक नहीं जाते कि कहीं लंगर में मिलने वाला भोजन न छूट जाए। 

रुबियाल बताता है कि वह सुबह-सुबह अपनी बहन और छोटे भाई के साथ सिंघु बॉर्डर पर मौजूद किसानों के लंगर में आया तो उसे चाय, मठरी, बिस्‍कुट और संतरे नाश्‍ते में मिले। इसके बाद दोपहर में उन्‍हें रोटी-चावल समेत पूरा खाना मिला। शाम को किसानों ने उन्‍हें गन्‍ने और केले दिए। 

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक 14 साल के शेख रहीम की भी यही कहानी है। पांच साल पहले पिता की मौत के बाद मां के साथ रह रहा शेख रहीम कचरा बीनकर उसे बेचने का काम करता है। वह लगातार किसानों के लंगर में खाना खाने आ रहा है। यहां उसे भरपेट खाना तो मिलता ही है, साथ ही प्‍लेट, गिलास और अन्‍य इस्‍तेमाल किए गए सामान मिल जाते हैं, जिन्‍हें वह बेचकर पैसे भी कमा लेता है। उसका कहना है कि किसान पिछले एक हफ्ते से उसे और उसकी मां को खाना खिला रहे हैं। 

हमें याद रखना चाहिए कि ये वही किसान हैं, जिन्हें अपने ही देश की राजधानी में घुसने से रोकने के लिए मोदी और खट्टर की सरकारों ने क्या-क्या नहीं किया। वॉटर कैनन,आंसू गैस,लाठियों, फर्ज़ी मुकदमों और गिरफ्तारियों के इस्तेमाल के अलावा सड़कों पर गड्ढे तक खोदे गए ताकि दिल वालों की कही जाने वाली दिल्ली में धरती पुत्र घुस न सकें। लेकिन तमाम मुसीबतें झेलने के बाद भी इन किसानों के दिल में कड़वाहट नहीं, मिठास है जिसे वो अपने देश के ज़रूरतमंदों के साथ दिल खोलकर बांटना जानते हैं।