हरिद्वार में भी पीने लायक़ नहीं है गंगा का पानी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की चेतावनी
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सर्वे में गंगाजल में फिकल कॉलीफॉर्म यानि अपशिष्ट की मात्रा अधिक पाई गई है। इसके बाद बोर्ड ने आम लोगों को आचमन नहीं करने की हिदायत दी है।
हरिद्वार। करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र मां गंगा का पानी साफ करने को लेकर केंद्र की मोदी सरकार ने दस साल पहले नमामी गंगे परियोजना की शुरुआत की थी। इन वर्षों में तमाम दावों और करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद भी गंगाजल की हकीकत डरावनी है। गंगा का पानी मैदानी क्षेत्रों में तो दूर हरिद्वार में भी आचमन करने लायक नहीं है। ये दावा किसी और का नहीं, बल्कि हर महीने गंगा के पानी की गुणवत्ता को लेकर जांच करने वाले उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने किया है।
गंगा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की नवंबर महीने की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है। हालांकि रिपोर्ट में राहत की बात ये कही गई है कि हरिद्वार में गंगा का पानी स्नान करने लायक जरूर है। उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी राजेंद्र सिंह के अनुसार उन्होंने हरिद्वार के ऊपर और नीचे यानी यूपी बॉर्डर तक करीब आठ जगहों पर गंगा के पानी की हर महीने जांच करती है। जांच का डाटा देखा तो एक बात साफ होती है कि हरिद्वार में गंगा के पानी की क्वालिटी B क्लास की है।
हरिद्वार में घुलनशील अपशिष्ट (फेकल कोलीफॉर्म) और घुलनशील ऑक्सीजन (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) का स्तर मानक से अधिक मिला है। नहाने योग्य नदी जल के लिए ऑक्सीजन का मानक पांच मिली ग्राम प्रति लीटर होता है।
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक गंगा में मिलने वाला कॉलीफॉर्म 120 एमपीएन तक है। यानी गंगा का जल नहाने योग्य है, लेकिन पीने योग्य नहीं है। क्षेत्रीय अधिकारी राजेंद्र सिंह ने दावा किया है कि उनकी टीम लगातार गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के प्रयास में लगी हुई है। हरिद्वार में जिन जगहों से यह सैंपल लिए गए हैं, उनमें हरकी पौड़ी क्षेत्र के साथ-साथ सप्त ऋषि, रंजीतपुर और सुल्तानपुर के अलावा अन्य स्थान मौजूद हैं।