उद्धव ठाकरे इस्तीफा नहीं देते तो सरकार बहाल हो सकती थी, बड़ी बेंच के पास पहुंचा अयोग्यता का मामला

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट का मामला 7 जजों की बड़ी बेंच को सौंप दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल पर भी सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल ऐसे शक्ति का इस्तेमाल नहीं कर सकते, जो संविधान या कानून ने उन्हें नहीं दी है।

Updated: May 11, 2023, 01:54 PM IST

नई दिल्ली। महाराष्ट्र राजनीतिक संकट को लेकर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने उद्धव गुट बना शिंदे गुट मामले में अपना फैसला सुना दिया है। शीर्ष अदालत ने साफ कर दिया कि महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे सरकार बनी रहेगी। यदि उद्धव ठाकरे इस्तीफा नहीं देते तो सरकार बहाल हो सकती थी। स्पीकर के खिलाफ अगर अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है, तो क्या वह विधायकों की अयोग्यता की अर्जी का निपटारा कर सकते हैं? अब इस मुद्दे की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की पीठ करेगी।

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ये भी कहा कि उद्धव ठाकरे इस्तीफा नहीं देते तो सरकार बहाल हो सकती थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया। उन्होंने स्वेच्छा से इस्तीफा दिया था। ऐसे में कोर्ट इस्तीफा को रद्द तो नहीं कर सकता है। हम पुरानी सरकार को बहाल नहीं कर सकते हैं। ऐसे में स्पष्ट है कि एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने रहेंगे।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के फ्लोर टेस्ट को गलत ठहराया। उद्धव सरकार को फ्लोर टेस्ट के लिए राज्यपाल की तरफ से कहना सही नहीं था। इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया। उन्होंने इस्तीफा दिया था। ऐसे में कोर्ट इस्तीफे को रद्द तो नहीं कर सकता है। वहीं कोर्ट ने कहा कि स्पीकर अयोग्यता के मामले को समय सीमा में निपटारा करे।

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने बागी विधायकों के मामले पर कहा कि साल 2016 का नबाम रेबिया मामला, जिसमें कहा गया था कि स्पीकर को अयोग्य ठहराने की कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है, जब उनके निष्कासन का प्रस्ताव लंबित है, तो इसमें एक बड़ी पीठ के संदर्भ की आवश्यकता है। इसे बड़ी बेंच का पास भेजा जाना चाहिए। स्पीकर के खिलाफ अगर अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है, तो क्या वह विधायकों की अयोग्यता की अर्जी का निपटारा कर सकते हैं? अब इस मुद्दे की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की पीठ करेगी।

संविधान पीठ ने मामले को बड़ी बेंच के पास भेजते हुए तीखी टिप्पणी भी की है। न्यायालय ने कहा कि स्पीकर को दो गुट बनने की जानकारी थी। भरत गोगावले को चीफ व्हिप बनाने का स्पीकर का फैसला गलत था। स्पीकर को जांच करके फैसला लेना चाहिए था। स्पीकर को सिर्फ पार्टी व्हिप को मान्यता देनी चाहिए। उन्होंने सही व्हिप को जानने की कोशिश नहीं की। अध्यक्ष को हटाने का नोटिस, अयोग्यता नोटिस जारी करने के लिए अध्यक्ष की शक्तियों को प्रतिबंधित करेगा या नहीं जैसे मुद्दों को एक बड़ी पीठ की ओर से जांच की जरूरत है।