9 साल पुराने आंकड़े से सरकार ने घटाए गरीब, नहीं होगी मुफ्त जांच

केंद्र सरकार ने कोर्ट में 9 साल पुराना आंकड़ा दे कर करीब 50 करोड़ गरीबों को कोरोना की मुफ्त जांच से 'वंचित' कर दिया है। जबकि‍ रोजगार बंद होने के कारण गरीबी और बढ़ने की आंशका जताई जा रही है।

Publish: Apr 16, 2020, 03:26 AM IST

कोरोना महामारी में नौकरियां जाने और काम-धंधे बंद हो जाने के कारण भारत में करीब 40 करोड़ लोगों के गरीबी रेखा से नीचे चले जाने का खतरा बन गया है। ऐसी अभूतपूर्व महामारी के समय में सभी गरीबों को मुफ्त जांच की सुविधा दी जानी चाहिए। सरकार अपने ही आंकड़ों को छिपा कर 50 करोड़ गरीबों को कोरोना की मुफ्त जांचे से 'वंचित' कर चुकी है।

आंकड़ों की बाजीगरी का यह खुलासा सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामों से हुआ। कोरोना टेस्‍ट की कीमत 4500 रुपए है और इसे अधिक पाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निजी लैब से कहा था कि वे यह जांच मुफ्त करें। सरकार और लैब के हलफनामों के बाद कोर्ट ने तय किया कि गरीबों को ही निजी लैब में मुफ्त जांच की सुविधा मिलेगी। कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि प्राइवेट लैब में फ्री जांच का लाभ उठाने के लिए प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना लाभार्थियों को केवल अपना प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना कार्ड और पहचान संख्या दिखानी होगी। आंकड़ों का खेल यहीं हुआ है। कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा है कि प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के दायरे में आने वाले लगभग 10.74 करोड़ गरीब और कमजोर परिवारों को मुफ्त जांच का लाभ पाने की अनुमति दी जानी चाहिए। जबकि इस योजना को क्रियान्वित करने वाले राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण की वेबसाइट पर बताया गया है कि 14 अप्रैल तक योजना के तहत 12.45 करोड़ ई-कार्ड जारी किए गए हैं। केंद्र सरकार ने कोर्ट में दिए हलफनामे में 10.74 करोड़ परिवार का ही जिक्र करते हुए करीब दो करोड़ परिवारों को भूला दिया।

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असल में केंद्र ने कोर्ट में 9 साल पुराने सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार गरीबों की संख्‍या 10.74 करोड़ बताई है। जबकि गुजरे नौ सालों में गरीबों की संख्‍या बढ़ गई है। इस तरह पुराने आंकड़ें के इस्‍तेमाल से दो करोड़ परिवारों के लगभग 50 करोड़ लोग निजी लैब में कोरोना की मुफ्त जांच से वंचित रहे गए।

राज्‍यों की शिकायत- केंद्र ने कम गरीब माने

मुद्दा केवल सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना 2011 और राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के आंकड़ों में गैप का नहीं है। असली मुद्दा तो गरीबों की पहचान का भी है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार राज्‍यों ने बीते नौ सालों में कई गरीब परिवारों को बीपीएल सूची में शामिल किया है मगर वे सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना 2011 के आंकड़ों में शामिल न होने के कारण योजना का लाभ नहीं ले पाएंगे। राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण को कई राज्‍य बार-बार डेटा भेज कर लाखों परिवारों के गरीबी रेखा से बाहर रह जाने की शिकायत करते रहे हैं। मगर उन्‍हें केन्‍द्र ने बीपीएल सूची में जगह नहीं दी है। दूसरा मुद्दा गरीबों की पहचान का भी है। उत्तर प्रदेश सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना 2011 के डेटाबेस में दिए गए 6.47 करोड़ परिवार में से केवल 89.66 लाख प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना लाभार्थियों की पहचान कर पाया है। बिहार में 5.55 करोड़ में से केवल 53.28 लाख, और छत्तीसगढ़ में 1.52 करोड़ में से मात्र 5 फीसदी 8.35 लाख लाभार्थियों की पहचान ही हुई है। यानि बचे हुए गरीबों को प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना का लाभार्थी नहीं होने के कारण मुफ्त जांच की सुविधा नहीं मिलेगी।

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जब काम धंधें बंद तो गरीबी का आंकड़ा 9 साल पुराना क्‍यों?

कोरोना महामारी के कारण भारत के 40 करोड़ लोगों के गरीबी रेखा के नीचे जाने का खतरा बढ़ गया है। संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कोविड-19 की वजह से इस साल की दूसरी तिमाही में वैश्विक स्तर पर 19.5 करोड़ लोगों की फुलटाइम जॉब जा सकती है। आईएलओ रिपोर्ट में कहा गया है, ''भारत में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करने वालों की हिस्सेदारी लगभग 90 प्रतिशत है, इसमें से करीब 40 करोड़ श्रमिकों के सामने गरीबी में फंसने का संकट है। इसके मुताबिक भारत में लागू किए गए देशव्यापी बंद से ये श्रमिक बुरी तरह प्रभावित हुए हैं और उन्हें अपने गांवों की ओर लौटने को मजबूर होना पड़ा है। जब देश में गरीबी बढ़ती जा रही है तो फिर सवाल यह उठता है कि सरकार कोरोना की जांच में गरीबी का 9 साल पुराना आंकड़ा क्‍यों उपयोग में ला रही है। खासकर तब जब कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने का एकमात्र उपाय है इसकी अधिक से अधिक जांच है। भोजन का अधिकार अभियान भोपाल के सचिन जैन कहते हैं कि जब काम बंद हो गए हैं। श्रमिकों के सामने रोजी का संकट है। ऐसे में आहार और स्‍वास्‍थ्‍य योजना का लाभ देने के लिए पुराने तो क्‍या गुजरे छह माह के सर्वे भी अप्रासंगिक हो गए है। जो गरीबी रेखा से थोड़ा भी ऊपर थे वे बेरोजगारी के चलते गरीबी रेखा से नीचे आ जाएंगे। वास्‍तव में देखेंगे तो कोरोना के कारण देश की करीब 90 फीसदी आबादी गरीब की परिभाषा में आ जाएगी। इसलिए सरकार को भोजन और स्‍वास्‍थ्‍य सेवा देने के लिए योजना में कोई भी सीमा तय नहीं करना चाहिए।