समलैंगिक संबंध को कुलीनों का शग़ल कहना अनुचित, सेम सेक्स मैरिज पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को सुनायी खरी-खोटी
सिद्धांत वास्तव में बहुत सरल है कि राज्य किसी व्यक्ति के खिलाफ विशेषता के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता। जिस पर व्यक्ति का कोई नियंत्रण नहीं है: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। समलैंगिक संबंध महज ‘Urban Elitist Concept’ नहीं है, सेम सेक्स मैरिज के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को यह अहम टिप्पणी की। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र सरकार को खरी-खोटी सुनाते हुए कहा कि शहरों में अपनी सेक्सुअल आइडेंटिटी बताने वाले ज्यादा लोग सामने आते हैं। इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि सरकार के पास कोई ऐसा डाटा हो कि सेम सेक्स मैरिज की मांग सिर्फ शहरी वर्ग तक ही सीमित है।
दरअसल, समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के मामले में दाखिल अपने जवाब में केंद्र सरकार ने सेम सेक्स मैरिज याचिका पर ही जोरदार विरोध दर्ज किया है। सरकार कि कहना था कि यह सिर्फ कुछ कुलीन क्लास के लोगों की सोच को दर्शाता है। मामले की सुनवाई के दौरान बुधवार को अदालत ने कहा कि सिद्धांत वास्तव में बहुत सरल है कि राज्य किसी व्यक्ति के खिलाफ विशेषता के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता। जिसके लिए व्यक्ति का कोई नियंत्रण नहीं है।
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सर्वोच्च अदालत ने कहा, 'जब आप कहते हैं कि यह एक सहज विशेषता है, तो यह इस विवाद का जवाब भी है कि यह शहरी लोगों के लिए बहुत अभिजात्य है और इसमें एक वर्ग के लिए पूर्वाग्रह है। जब यह जन्मजात होता है तो उस वर्ग के लिए पूर्वाग्रह नहीं हो सकता।' न्यायालय ने यह भी कहा कि, 'समलैंगिक कृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के बाद अब हमारे समाज को अधिक स्वीकृति मिली है। इसे हमारे विश्वविद्यालयों में स्वीकृति मिली है। हमारे विश्वविद्यालयों में केवल शहरी बच्चे ही नहीं हैं, वे सभी क्षेत्रों से हैं। हमारे समाज ने समलैंगिक संबंधों को स्वीकार कर लिया है। पिछले पांच सालों में चीजें बदली हैं। एक स्वीकृति है जो शामिल है। हम इसके प्रति सचेत हैं।'
सुनवाई के दौरान पक्ष और विपक्ष दोनों ने ही खूब तर्क रखे। याचिकाकर्ताओं के पक्ष से वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि संविधान भी कहता है कि सभी को समानता का अधिकार है। ऐसे में प्यार को शादी में बदलने का अधिकार सबको मिलना चाहिए। उन्होंने कहा, 'दूसरी तरफ से कहा जा रहा है कि पुरुष और महिला के मिलन से ही जन्म हो सकता है। वे कहते हैं कि समलैंगिक नॉर्मल नहीं हैं। लेकिन क्या नॉर्मल होता है जो कि बहुसंख्यक होता है। कानून यह नहीं कहता बल्कि यह केवल एक सोच है। इस तरह की सोच का जन्म 18वीं शताब्दी में हुआ लेकिन अगर भारतीय ग्रंथों और रचनाओं पर गौर करें तो सैकड़ों साल पहले दीवारों पर चित्र उकेर दिए गए थे जिसमें समैलिंगकता को दिखाया गया था। इसका मतलब है कि हमारी परंपरा में हमारी सोच बहुत आगे थी। यह रूढ़िवादी नहीं हुआ करती थी।'
न्यायालय में इस बात पर भी रोचक बहस हुई कि अगर सेम सेक्स मैरिज को मान्यता मिली तो यह कैसे तय करेंगे कि कौन सा पार्टनर 18 साल की उम्र में है और कौन सा 18 वर्ष की उम्र में शादी कर सकता है। देश ने लड़कों की शादी की उम्र 21 साल तय है और लड़कियों की 18 साल। इस पर याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया कि अगर दो लड़कियां शादी कर रही हों, तो 18 रख सकते हैं और अगर दो पुरुष शादी कर रहे हों तो 21 रख सकते हैं। लेकिन कोर्ट इससे सहमत नहीं दिखा। कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसा करेंगे तो अपनी ही दलीलों को पीछे छोड़ते हैं। दरअसल, याचिकाकर्ता की दलील Gender neutral की है, इसी कारण कोर्ट उस पर सवाल उठा रहा था।