जी भाईसाहब जी: आखिर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राम से बनाई दूरी
MP Politics: ग्वालियर चंबल क्षेत्र केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का गढ़ माना जाता है। यहां वे राजनीतिक ही नहीं प्रशासनिक मामलों पर भी किसी का हस्तक्षेप या अपनी मर्जी के बगैर कोई निर्णय पसंद नहीं करते है। फिर ऐसा क्या हुआ कि अपने ही क्षेत्र में अपने पूर्व समर्थक रामनिवास रावत के चुनाव से सिंधिया ने दूरी बना ली?
अपने प्रभाव के क्षेत्र में भी राम (निवास) से दूर ही क्यों रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया?
मध्य प्रदेश की 2 विधानसभा सीटों बुधनी और विजयपुर के उपचुनाव में 13 नवंबर को मतदान होना है। बुधनी पर कृषिमंत्री शिवराज सिंह चौहान की प्रतिष्ठा दांव पर हैं। वे यहां जीत का अंतर बनाए रखने का जतन कर रहे हैं वहां विजयपुर सीट सबसे ज्यादा चर्चित है। यह सीट कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में आए रामनिवास रावत की नहीं, बीजेपी की भी नाक का सवाल बन गई है। इसीलिए इस सीट पर जीत के लिए बीजेपी सरकार और संगठन ने कोई कसर शेष नहीं छोड़ी।
सरकार ने कांग्रेस छोड़ कर आने के पहले ही रामनिवास रावत को कैबिनेट मंत्री बना दिया था। उनकी जीत पक्की करने के लिए 400 करोड़ विकास कार्यों को स्वीकृति दी गई। बीजेपी में टिकट के प्रबल दावेदार पूर्व विधायक सीताराम आदिवासी को सहरिया विकास प्राधिकरण का उपाध्यक्ष नियुक्त कर राज्यमंत्री का दर्जा भी दे दिया ताकि आदिवासी वोटर बीजेपी से नाराज न हो।
संगठन ने प्रचार के लिए पूरी ताकत झोंक दी। सीएम डॉ. मोहन यादव के साथ पार्टी के दिग्गज नेताओं ने जनसभाएं और नुक्कड़ सभाएं कीं लेकिन बीजेपी के स्टार प्रचारक और क्षेत्र के प्रभावी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया तो राम ‘निवास’ से दूरी बनाए रखते हुए एक बार भी विजयपुर नहीं आए। ज्योतिरादित्य सिंधिया के नहीं आने से होने वाली क्षति की पूर्ति के लिए विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर को प्रचार का जिम्मा संभालना पड़ा़।
आमतौर पर विधानसभा अध्यक्ष निरपेक्ष रहने की गरज से राजनीतिक रूप से सक्रिय नहीं रहते हैं लेकिन कांग्रेस के विरोध को नजरअंदाज कर भी तोमर प्रचार मैदान में उतरे। इसकी वजह यही है कि बीजेपी इस सीट पर कमी नहीं रखना चाहती थी। जब समूची पार्टी इतनी गंभीर थी तो क्या कारण है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया नहीं आए?
सिंधिया के न आने के कारण में अतीत की मिठास और वर्तमान की कड़वाहट के तार हैं। ग्वालियर चंबल क्षेत्र की राजनीति में हमेशा ही ‘महल’ (सिंधिया परिवार) का दखल रहा है। कांग्रेस में रहते हुए रामनिवास रावत भी सिंधिया परिवार के निकट थे। राजनीतिक ऊंचाई पाने का एक कारण सिंधिया परिवार की निकटता भी रही है। जब मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी में जाने का फैसला किया तो अन्य समर्थक ने तो दल बदला लेकिन रामनिवास रावत ने कांग्रेस नहीं छोड़ी। इससे दोनों के बीच दूरियां आ गई।
फिर जब रामनिवास रावत ने बीजेपी में आने की कोशिश की तो सिंधिया ने उन्हें बेहतर प्रतिक्रिया नहीं दी। बल्कि वे रामनिवास रावत को बीजेपी में शामिल करवाने के पक्ष में नहीं थे। यही वजह रही कि रामनिवास रावत के बीजेपी में आने का रास्ता विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने आसान बनाया। यही वजह रही कि रामनिवास रावत जब मैदान में हैं तो उन्हें तोमर का तो साथ मिला लेकिन सिंधिया ने दूरी ही बनाए रखी।
विधानसभा उपचुनाव का परिणाम चाहे जो रहे लेकिन रामनिवास रावत की सिंधिया से दूरी और तोमर से समीपता क्षेत्र में बीजेपी की राजनीतिक को नया कोण प्रदान कर रही है।
भूपेंद्र सिंह के जुबानी धमाकों से बेपरवाह संगठन
मध्य प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में बीजेपी संगठन में आंतरिक स्थितियां ठीक नहीं दिखाई दे रही हैं। वर्चस्व के लिए आपसी संघर्ष और कार्यकर्ताओं की नाराजगी की खबरें आम बात हो गई है। खासकर बुंदलेखंड में तो बड़े नेताओं में तलवारें खिंची हुई हैं और संगठन इन सब के प्रति बेपरवाह बना हुआ है।
बुंदेलखंड के सागर में बीजेपी के तीन बड़े नेताओं गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह और कांग्रेस से बीजेपी में आए मंत्री गोविंद सिंह राजपूत का आपसी संघर्ष बीते कई माह से सुर्खियां बन रहा है। बात कमरों और पार्टी फोरम से आगे निकल कर चौराहों तक आ गई है।
बुंदेलखंड की राजनीति में अपनी उपेक्षा और संगठन द्वारा लगातार उपेक्षा से नाराज पूर्व गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह ने जैसे अपना ब्रह्मास्त्र चला दिया है। सोमवार को दीपावली मिलन समारोह में अपनी इस पीड़ा को बयान करते हुए उन्होंने कहा कि कभी बीजेपी कार्यकर्ताओं पर अत्याचार करने वाले ऐसे नेताओं को उनकी पार्टी भले स्वीकार करे न करे, लेकिन मैं कभी स्वीकार नहीं करूंगा। बीते सप्ताह समर्थक कार्यकर्ताओं की कॉल डिटेल अवैध तरीके से निकालने पर वे जिला योजना समिति की बैठक में आक्रामक आपत्ति जता चुके हैं। इसके पहले रिजनल इंवेस्टर्स समिट में वे और गोपाल भार्गव तवज्जो न मिलने से मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के भाषण के पहले ही कार्यक्रम छोड़ कर ले गए थे।
भूपेंद्र सिंह की पीड़ा यह है कि उनके आरोपों और शिकायतों पर भी संगठन ने ध्यान नहीं दिया है। अब जब बीजेपी में कांग्रेस नेताओं को न अपनाने का बयान दिया है तब भी उन्हें नसीहत ही मिली है। इस बयान पर प्रतिक्रिया में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने साफ कहा है कि पार्टी में आने वाला हर व्यक्ति अब पार्टी की ताकत और पार्टी का कार्यकर्ता है। किसी को कोई समस्या होगी तो पार्टी फोरम पर चर्चा की जाएगी।
शिवराज सरकार में दूसरे शक्ति केंद्र के रूप में पहचाने जाने वाले भूपेंद्र सिंह की पीड़ा यह है कि जिस संगठन के लिए उन्होंने परिश्रम किया वही संगठन अब उन्हें न पूछ कर कांग्रेस से बीजेपी में आए सुरखी विधायक गोविंद सिंह राजपूत को अधिक मान और महत्व दे रहा है। वे जुबानी बम फोड़ रहे हैं लेकिन संगठन का रवैया इन धमाकों को फुलझड़ी जितना ही महत्व दे रहा है। भूपेंद्र सिंह के पहले भी कई नेताओं ने इस तरह संगठन की रीति-नीतियों पर सवाल उठाए हैं। उनका बीजेपी में हश्र अच्छा नहीं हुआ। यह जानते हुए भी भूपेंद्र सिंह मोर्चा खोले हुए हैं तो यह राजनीति में अपना महत्व तथा समर्थकों का मनोबल बढ़ाए रखने का ही जतन समझा जाना चाहिए।
हाथी और किसान दोनों ही मर रहे हैं
उमरिया के बांधवगढ़ जंगल में मरने वाले हाथियों की संख्या 11 हो गई है। आक्रोशित हाथियों के हमले से दो लोगों की जान चली गई है। इतना ही नहीं हाथी की मौत का जिम्मेदार फंगस को बताते हुए बड़े क्षेत्र में किसानों की कोदो की फसल उजाड़ दी गई है। न अब तक हाथियों की मौत के सही कारण का खुलासा हुआ है और न किसानों को फसल के बर्बाद होने का मुआवजा मिला है। सरकार की नीतिगत और क्रियान्वयन की लापरवाहियों के कारण हाथी और किसान दोनों मर रहे हैं।
बात इससे और आगे वन्य प्राणियों और इंसानों के बीच टकराव जैसे गंभीर संकट तक पहुंच गई हैं। इस स्थिति को नहीं संभाला गया तो वन्य प्राणियों और इंसानों को एक दूसरे के हमले से बचाना बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाएगा। मगर सरकार का ध्यान इस और नहीं है। किसान मुआवजे के लिए परेशान हो रहे हैं और प्रशासन भी वन विभाग की प्रक्रियाओं का हवाला दे कर चुप है।
किसान कह रहे हैं कि जिस कोदो की फसल के कारण हाथियों की जान जाना बताया जा रहा है उसी को दूसरे मवेशी भी खा रहे हैं। फिर उनकी मौत क्यों नहीं हो रही है?
सवाल महत्वपूर्ण है। कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष और पूर्व वनमंत्री उमंग सिंघार ने आरोप लगाया है कि क्षेत्र में बीजेपी से जुड़े हुए लोगों के रिसॉर्ट हैं। रिसॉर्ट के मालिक नहीं चाहते थे कि हाथी वहां पर रहे। यह आरोप भी गंभीर है। क्या किसी आर्थिक लाभ के लिए हाथी जैसे वन्य प्राणी और किसानों की जान संकट में डाली गई है? सवाल यही है कि कौन हैं जिन्हें बचाने के लिए हाथी और किसानों को मरने के लिए छोड़ दिया गया।
आखिर, काम तो शिवराज सिंह ही आए
बीते कुछ सालों में बीजेपी ने अपनी राजनीति के तौर तरीकों को बदला है। कार्यकर्ताओं को देवतुल्य कहने वाली पार्टी ने अपने नेताओं के साथ व्यवहार को भी प्रोफेशनल कर दिया है। यही कारण है कि पार्टी के अंदर असंतोष खदबदा रहा है। इसी असंतोष को जाहिर करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के पुत्र पूर्व मंत्री दीपक जोशी बीजेपी छोड़ कर कांग्रेस में चले गए थे। धूमधाम से कांग्रेस में गए दीपक जोशी ने बीजेपी की नीतियों और संगठन के व्यवहार को खूब कोसा था। उनके निशाने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी थे।
साल भर भी नहीं हुआ और दीपक जोशी अपनी मातृ पार्टी में आने को छटपटाने लगे। न वे उम्मीद के मुताबिक कांग्रेस को लाभ दिलवा पाए और न बीजेपी को नुकसान ही पहुंचा सके। उन्होंने कोशिश की लेकिन बीजेपी में वापसी मुश्किल हो गई। एक समय तो ऐसा भी आया जब वे सदस्यता लेने को बीजेपी दफ्तर जाने के लिए तैयार बैठे थे लेकिन बात बिगड़ गई।
आखिरकार, बीते सप्ताह कांग्रेस में गए पूर्व मंत्री दीपक जोशी की बीजेपी में वापसी हो गई। उन्हें वे ही शिवराज सिंह चौहान ही पार्टी में लाए जिनसे नाराज हो कर दीपक जोशी कांग्रेस में गए थे। अलबत्ता अब लाख की बंद मुट्ठी खुल चुकी है और यही कारण है कि जितनी धूमधाम से उन्होंने बीजेपी छोड़ी थी उतनी ही गुपचुप वापसी हुई है।