जब आधा भारत भूखा हो तो क्यों चाहिए 1000 करोड़ की नई संसद, कमल हासन का पीएम मोदी से सवाल

Kamal Haasan: अभिनेता कमल हासन का प्रधानमंत्री मोदी से सवाल, जब देश में लोग भूखे हों, उनके रोज़गार छिन रहे हों तो नए संसद भवन पर पैसे लुटाने की क्या ज़रूरत है

Updated: Dec 14, 2020, 02:34 AM IST

Photo Courtesy: National Herald
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नई दिल्ली। नए संसद भवन भवन के भूमिपूजन के 2 दिन बाद तमिल एक्टर-डायरेक्टर कमल हासन ने केंद्र सरकार से बेहद तीखे सवाल पूछे हैं। उन्होंने कहा है कि जब देश कोरोना से जूझ रहा है, महामारी की वजह से लोगों की नौकरियां जा रही हों, ऐसे में नए संसद भवन की क्या जरूरत है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसका जवाब देना चाहिए। 

कमल हासन ने ट्विटर पर लिखा है, 'जब आधा देश भूखा है और कोरोना की वजह से लोगों की रोज़ी-रोटी छिन गई है, ऐसे वक्त में एक हज़ार करोड़ की नई संसद क्यों चाहिए? जब चीन की दीवार बनाने के दौरान हजारों लोगों की जान गई थीं, तब वहां के शासकों ने कहा था कि यह लोगों की सुरक्षा के लिए जरूरी था। आप एक हज़ार करोड़ की संसद किनकी रक्षा के लिए बना रहे हैं? हमारे जनता द्वारा निर्वाचित माननीय प्रधानमंत्री कृपया जवाब दें।'

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प्रधानमंत्री मोदी ने 10 दिसंबर को संसद भवन की नई बिल्डिंग का भूमिपूजन किया था। नए भवन में लोकसभा सांसदों के लिए लगभग 888 और राज्यसभा सांसदों के लिए 326 से ज्यादा सीटें होंगी। पार्लियामेंट हॉल में कुल 1,224 सदस्य एक साथ बैठ सकेंगे। मौजूदा संसद 1921 में बनना शुरू हुई, 6 साल बाद यानी 1927 में बनकर तैयार हुई थी। जबकि नई संसद को लेकर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने कहा था कि 2022 में देश की आजादी के 75 साल पूरे होने पर हम नए संसद भवन में दोनों सदनों के सेशन की शुरुआत करेंगे। नया संसद भवन बीस हज़ार करोड़ के सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का हिस्सा है।

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आपको बता दें कि हाल ही में आई हंगर वॉच की रिपोर्ट के मुताबिक करीब 46 फ़ीसदी लोगों को लॉकडाउन के दौरान और उसके बाद से कई बार भूखे रहना पड़ता है। सर्वे के मुताबिक क़रीब 45 फ़ीसदी लोगों का कहना है कि लॉकडाउन और उसके बाद के समय में उन्हें भोजन के लिए क़र्ज़ तक लेना पड़ रहा है। करीब 62 फ़ीसदी लोगों ने कहा कि लॉकडाउन से पहले उनकी आमदनी जितनी थी, उतनी अब नहीं रह गई है। क़रीब 25 फ़ीसदी लोगों का कहना है कि लॉकडाउन के बाद उनकी कमाई पहले के मुक़ाबले आधी रह गई है। लगभग 53 फ़ीसदी लोग बताते हैं कि उनकी गेहूं और चावल की खपत अब पहले से कम हो गई है, जबकि 64 फ़ीसदी लोगों ने बताया कि अब वे पहले के मुक़ाबले कम दालें खा पाते हैं। सब्ज़ियों की खपत के मामले में तो हालत और भी ख़राब है। सर्वे के मुताबिक़ क़रीब 73 फ़ीसदी लोगों का कहना है कि वे पहले के मुक़ाबले कम हरी सब्ज़ियाँ खा पाते हैं। हंगर वॉच ने यह भी पाया कि लगभग 74 प्रतिशत दलितों के भोजन की खपत में कमी आई है।