NHRC: मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को मुआवजा दे छत्तीसगढ़ सरकार

नंदिनी सुंदर समेत 13 मानवाधिकार कार्यक्रताओं पर रमन सिंह सरकार में 4 साल पहले हुई थी झूठी एफआईआर, दोष साबित करने में नाकाम रही पुलिस

Updated: Aug 07, 2020, 11:26 AM IST

नई दिल्ली। राष्ट्रीय मावनाधिकार आयोग ने छत्तीसगढ़ सरकार को मानावधिकारों की रक्षा के लिए काम करने वाले 13 कार्यकर्ताओं के खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज करने और उन्हें मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने के लिए एक-एक लाख रुपये का मुआवजा देने के का निर्देश दिया है। इन कार्यकर्ताओं में दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर का नाम भी शामिल है।

आयोग ने यह निर्देश छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा दर्ज किए गए दो मामलों के अवलोकन के बाद दिया है। ये दोनों ही मामले 2016 में बस्तर क्षेत्र के सुकुमा जिले में दर्ज किए गए थे। एक किस्तराम पुलिस स्टेशन में और दूसरा टोंगपाल में। आयोग ने सात जुलाई को छत्तीसगढ़ सरकार को वह रिपोर्ट जमा करने के लिए कहा था, जिसमें सभी कार्यकर्ताओं को छह सप्ताह के भीतर मुआवजा दिए जाने का सबूत हो। प्रोफेसर नंदिनी सुंदर और तेलंगाना डेमोक्रेटिक फ्रंट के दूसरे कार्यकर्ता कथित मानवाधिकार उल्लंघन की जांच करने के लिए एक फैक्ट फाइंडिंग मिशन पर 2016 में छत्तीसगढ़ गए थे। तब राज्य में रमन सिंह के नेतृत्व वाली बीजेपी की सरकार थी।

आयोग ने कहा कि उसने छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न की खबरों को स्वत: संज्ञान में लिया था। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि, “डीजीपी की जांच में नंदिनी सुंदर, अर्चना प्रसाद, विनीत तिवारी, संजय पराते, मंजू और मंगला राम कर्मा जैसे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है। इसलिए उनका नाम एफआईआर से हटाया जा चुका है।”

वहीं बाकी के सात कार्यकर्ताओं को पहले ही सुकमा की जिला अदालत दोषमुक्त कर चुकी है। इस पूरे घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रोफेसर नंदिनी सुंदर ने बताया, “हमें अभी तक कोई मुआवजा नहीं मिला है। लेकिन जैसे ही यह मुझे मिलेगा मैं इसका प्रयोग झूठे मुकदमों में फंसाए गए आदिवासियों की कानूनी सहायता में करूंगी।”