सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा, क्या सभी धर्मों में तलाक-भत्ते के लिए हो सकता है समान कानून

सुप्रीम कोर्ट में तलाक और गुजारा भत्ता के लिए समान आधार की मांग के लिए दायर याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई हुई, इस दौरान अदालत ने केंद्र सरकार से अपनी राय देने को कहा है

Updated: Dec 17, 2020, 12:47 AM IST

Photo Courtesy: twitter
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नई दिल्ली। तलाक और गुजारा भत्ता के मामलों में देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून होने चाहिए, फिर चाहे वे किसी भी धर्म को मानने वाले हों, यह मांग करने वाली याचिकाओं पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने फिलहाल इस मामले में केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि यह ऐसा मामला है, जो अलग-अलग धर्मों के लोगों पर लागू होने वाले पर्सनल लॉ से जुड़ा है। लिहाजा कोर्ट को इस मामले में कोई भी कदम बेहद सावधानी के साथ उठाएगा। 

चीफ जस्टिस ने कहा कि कोर्ट पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप किए बिना अलग-अलग धर्मों की भेदभावपूर्ण प्रथाओं को कैसे हटा सकता है। कोर्ट में यह जनहित याचिका बीजेपी नेता और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है। याचिकाकर्ता की ओर से बहस करते हुए सीनियर एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि अगर किसी धार्मिक अधिकार की वजह से नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन होता है, तो उसे दूर करने के लिए कदम उठाने चाहिए।

दरअसल बीजेपी नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दो जनहित याचिकाएं दायर की हैं। जिसमें मांग की गई थी कि सभी धर्मों की महिलाओं के साथ समान व्यवहार होना चाहिए। अगर कुछ धार्मिक प्रथाएं उनके मौलिक अधिकारों से उन्हें वंचित करती हैं, तो ऐसी प्रथाओं को समाप्त किया जाना चाहिए। याचिका में मांग की गई है कि तलाक औऱ गुजारा भत्ता के मामले में जाति, धर्म, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव किए बिना सभी के लिए समान कानून लागू होना चाहिए। सभी धर्मों में तलाक और गुज़ारा भत्ता लेने के लिए एक सामान आधार होना चाहिए। 

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इस मामले में CJI एस ए बोबडे की बेंच ने कहा कि कोर्ट पर्सनल लॉ में कैसे अतिक्रमण कर सकता है। केंद्र सरकार के भेजे नोटिस में CJI एस ए बोबडे ने पूछा है कि, 'समान कानून का क्या मतलब है? किसके कानून को हम सब के लिए समान बनाएं, ये एक चैलेंज होगा। हिन्दू के कानून को तरजीह दें या मुस्लिम के कानून को। चीफ जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की बेंच ने कहा कि हम केंद्र सरकार को बेहद सर्तकता के साथ नोटिस जारी कर रहे हैं, क्योंकि इस तरह की मांग का असर पर्सनल लॉ पर होगा।

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याचिकाकर्ता की वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने दलील दी थी कि पर्सनल लॉ में कुछ कानून महिला विरोधी हैं। उन मामलों में कोर्ट कानून को दुरुस्त कर सकता है। इस दौरान उन्होंने तीन तलाक का जिक्र भी किया था।