यौन अपराधों से जुड़े मामलों में स्टीरियोटाइप टिप्पणियों से बचें जज- सुप्रीम कोर्ट

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के इंदौर बेंच ने यौन अपराधी को यह कहते हुए जमानत दे दी थी कि वह पीड़िता से रक्षाबंधन के दिन राखी बंधवाए, हाईकोर्ट के इस निर्णय को आज सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया है

Updated: Mar 18, 2021, 11:21 AM IST

Photo Courtesy : ABP
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने जजों के स्टीरियोटाइप यानी रूढ़िवादी सोच को लेकर एक अहम टिप्पणी की है। शीर्ष न्यायालय ने सभी तरह के कोर्ट के जजों को निर्देश दिया है कि वे महिलाओं के खिलाफ हुए यौन अपराधों में स्टीरियोटाइप टिप्पणी करने से बचें। न्यायालय ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के उस फैसले को भी रद्द कर दिया है जिसमें राखी बांधने के शर्त पर अपराधी को जमानत दे दी गई थी।

शीर्ष न्यायालय ने जजों, वकीलों व सरकारी वकीलों के सेंसटाइजेशन के लिए प्रशिक्षण मॉड्यूल सहित कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा पीड़िता को राखी बांधने की शर्त के साथ यौन उत्पीड़न के आरोपी को जमानत देने के मामले में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से मदद मांगी थी। इसपर वेणुगोपाल कहा कि निचली अदालतों और हाईकोर्ट के जजों को भी जेंडर के मुद्दे पर संवेदनशील बनाने की जरूरत है। 

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वेणुगोपाल ने यह भी कहा कि इस केस की सुनवाई के दौरान जिस-जिस तरह के सवाल पूछे गए, जैसी जानकारियां मांगी गईं, वह बेहद असंवेदनशील है। इतना ही नहीं उन्‍होंने कहा था कि जजों की भर्ती परीक्षा में जेंडर सेंसटाइजेशन पर भी एक अध्याय होना चाहिए। इसके लिए गाइडलाइंस बनाई जानी चाहिए कि यौन उत्‍पीड़न के मामलों के साथ किस प्रकार की संवेदनशीलता बरती जाए। हमें अपने जजों को शिक्षित करने की जरूरत है।

क्या है मामला

दरअसल, बीते साल 30 जुलाई को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने छेड़छाड़ के एक आरोपी को 50 हजार रुपए के मुचलके पर सशर्त जमानत दी थी। इसमें एक शर्त यह थी कि आरोपी रक्षाबंधन पर पीड़ित के घर जाकर उससे राखी बंधवाएगा और रक्षा का वचन देगा। हाईकोर्ट ने शर्त रखी थी कि आरोपी रक्षाबंधन के दिन 11 बजे अपनी पत्नी को साथ लेकर पीड़ित के घर राखी और मिठाई लेकर जाएगा और पीड़िता से आग्रह करेगा कि वह उसे भाई की तरह राखी बांधे। साथ ही पीड़िता की रक्षा का वचन देकर भाई के रूप में परंपरा के मुताबिक 11 हजार रुपये देगा और पीड़िता के बेटे को भी 5 हजार रुपये कपड़े और मिठाई खरीदने के लिए देगा।

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कोर्ट ने यह भी कहा था कि इस पूरे घटनाक्रम की तस्वीरें रजिस्ट्री में जमा करानी होगी। न्यायालय के इस फैसले को लेकर देशभर में आलोचनाएं शुरू हो गई थी। लोगों का कहना था कि जिसने पीड़िता के घर में घुसकर उसके साथ छेड़छाड़ और अभद्र व्यवहार किया हो उस यौन अपराधी को इस तरह से मुक्त नहीं किया जा सकता है।

मामले पर 9 महिला वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। वकीलों का कहना था कि ऐसे आदेश महिलाओं को एक वस्तु की तरह दिखाते हैं। याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष न्यायालय से कहा था कि इस तरह कि शर्त वाले निर्देशों के मामले में हम सिर्फ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट नहीं, बल्कि सभी हाईकोर्ट और निचली अदालत के लिए निर्देश चाहते हैं। इसके बाद शीर्ष न्यायालय ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के इस फैसले को पलटते हुए यह टिप्पणी की है।