दफ्तर दरबारी: जिंदा रहेंगे तब तो खिलौनों से खेलेंगे बच्‍चे

मध्य प्रदेश में आंगनवाड़ी केंद्रों की स्थिति में सुधार लाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खिलौना संग्रह की मुहिम छेड़ कर लोगों से आंगनवाड़ी केंद्रों को गोद लेने का आह्वान किया है। जन्‍म से पांच वर्ष तक के बच्‍चों की मृत्‍यु को रोकने में तमाम प्रयास छोटे साबित हो रहे हैं। ऐसे में मुद्दा यह है कि आंगनवाड़ी तक खिलौने पहुंच तो जाएंगे लेकिन बच्‍चे खेलेंगे तो तब जब वे जीवित बचेंगे।

Updated: May 29, 2022, 06:22 AM IST

बच्‍चों के साथ आंगनवाड़ी में मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान : फाइल फोटो
बच्‍चों के साथ आंगनवाड़ी में मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान : फाइल फोटो


घर सजाने का तसव्वुर तो बहुत बाद का है/  पहले ये तय हो कि इस घर को बचाएं कैसे...

प्रख्‍यात शायर वसीम बरेलवी का यह शेयर इनदिनो बहुत याद आ रहा है। इसकी वजह, मध्‍य प्रदेश में शिशु मृत्‍यु दर के आंकड़े, इन बच्‍चों के लिए पोषण का प्रबंधन करने वाले आंगनवाड़ी केंद्रों की दशा और मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की खिलौना जुटाने की मुहिम है। 

मध्य प्रदेश में आंगनवाड़ी केंद्रों की स्थिति में सुधार लाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खिलौना संग्रह की मुहिम छेड़ कर लोगों से आंगनवाड़ी केंद्रों को गोद लेने का आह्वान किया है। मुख्‍यमंत्री चौहान ने कहा है कि आंगनवाड़ी केवल सरकार की जवाबदारी नहीं है। सरकार संसाधन जुटा रही है। पोषण आहार भेज रही है। व्यवस्थाएं जुटा रही हैं। इसमें समाज की भी जवाबदारी है। इसलिए, सरकार ने सोचा है कि आंगनवाड़ी केवल सरकार न चलाए, सरकार के साथ समाज को भी जोड़ा जाए। इस उद्देश्य से हमने आंगनवाड़ी गोद लें अभियान प्रारंभ किया है।

मुख्‍य सवाल यह है कि आंगनवाड़ी तक खिलौने पहुंच तो जाएंगे लेकिन बच्‍चे खेलेंगे तो तब जब वे जीवित बचेंगे। खिलौने पहुंचाने से अधिक जरूरी पहल बच्‍चों को बचाने के इंतजामों को पुख्‍ता करना है। जन्‍म से पांच वर्ष तक के बच्‍चों की मृत्‍यु को रोकने में तमाम प्रयास छोटे साबित हो रहे हैं। 

प्रदेश में बच्‍चों की मृत्‍यु के आंकड़े विकास के हमारी तमाम उपलब्धियों को बौना साबित करते हैं। 25 मई को आई सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम की रिपोर्ट बताती है कि मध्यप्रदेश में जन्म लेने वाले हर एक हजार बच्चों में से 43 बच्चे आज भी जन्म के एक साल के अंदर ही दम तोड़ देते हैं। ये आकंड़े वर्ष 2020 के हैं। साल भर की तुलना करें तो यह दर 2019 में 46 थी। आंकड़ों में सुधार होने के बावजूद देश के अन्य राज्यों की तुलना में मध्यप्रदेश में नवजात की मौत के मामले सबसे ज्यादा है। 

यह तो एक वर्ष तक की उम्र के बच्‍चों की मृत्‍यु की बात हुई। यदि पांच वर्ष तक के बच्‍चों की बाल मृत्‍यु दर को देखा जाए तो भी मध्‍य प्रदेश अव्‍वल ही नजर आता है। पांचवें नेशनल हेल्थ फैमिली सर्वे 2020-21 की रिपोर्ट बताती है कि (प्रदेश में प्रति 1 हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 970 हो गई है, जो 2015-2016 में 948 थी। 1 हजार जन्मे बच्चों में लड़कियों की संख्या भी बढ़कर 956 हो गई है, जो 2015-16 में 927 थी। मगर यह उपलब्धि खुशी नहीं देती।

रिपोर्ट रेखांकित करती है कि इस दौरान एनीमिया से पीड़ित बच्चों और महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। प्रदेश में 6-59 माह उम्र के बच्चों में एनीमिया की समस्या बढ़ी है। वर्ष 2015-16 के सर्वे में 68.9 फीसदी बच्चे एनीमिया से पीड़ित थे। जो 2020-21 में बढ़कर 72.7 फीसदी हो गए है। वहीं, 15-49 वर्ष की उम्र के महिलाओं में भी एनीमिया 52.5 प्रतिशत से बढ़कर 54.7 प्रतिशत हो गया है।

मध्यप्रदेश में अब भी 2.5 प्रतिशत प्रसव घर में हो रहे हैं। सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं की तुलना में निजी अस्पताल में सिजेरियन डिलीवरी की संख्या बढ़ी है। संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के बावजूद यह आंकड़ा चिंताजनक है। 

सवाल उठता है कि इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार क्‍या कर रही है? अब तक अलग-‍अलग विभागों में चल रही योजनाओं व उनके बजट को एक साथ प्रस्‍तुत करते हुए शिवराज सरकार ने इस बार पहली बार चाइल्ड बजट पेश किया है। सरकार ने चाइल्‍ड बजट में 57 हजार 800 रुपए का प्रावधान किया है। गुजरे वर्षों में आंगनवाड़ी केंद्रों पर प्रतिवर्ष सरकार ने 2 हजार करोड़ से अधिक राशि खर्च की है। 

इतनी राशि खर्च करने के बाद भी आंगनवाड़ी और इनके कार्यकर्ताओं की स्थिति सुधरी नहीं है। राज्य में 97 हजार से ज्यादा आंगनवाड़ी केंद्र स्वीकृत हैं

इसको लेकर राज्य में सियासत गर्मा गई है। भाजपा इस पहल का स्वागत कर रही है, वहीं कांग्रेस सरकार को ही कटघरे में खड़ा करने में लगी है।
महिला एवं बाल विकास विभाग की आंतरिक रिपोर्ट बताती है कि मध्यप्रदेश में कुल स्वीकृत 97,135 आंगनवाडि़यों में से 50,979 आंगनवाड़ियों में बच्चों के लिए अनिवार्य चिकित्सा किट और 24;275 आंगनवाड़ियों में शिक्षा किट उपलब्ध नहीं है। 32,338 आंगनवाडियों में बच्चों के लिए शौचालय उपलब्ध नहीं है। 8,623 आंगनवाड़ियों में खाने के लिए थालियां तथा 12,235 आंगनवाड़ियों में पीने के पानी के गिलास उपलब्ध नहीं है।

इन आंकड़ों के आधार पर मुख्‍यमंत्री खिलौना मुहिम विपक्ष के निशाने पर आ गई है। कांग्रेस नेताओं ने पूर्व मंत्री पीसी शर्मा और मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता ने कहा है कि मुख्यमंत्री ठेला लेकर खिलौने एकत्रित करने निकले हैं। लेकिन प्रदेश में 10 लाख कुपोषित बच्‍चों के पोषण व सेहत का प्रबंधन करने वाली आंगनवाड़ियों की सेहत क्‍यों नहीं सुधारी जा रही है? कुपोषण दूर करने के लिये केन्द्रीय अनुदान भी मिलता है। फिर भी सरकार इन समस्यायों को 17 साल में हल नहीं कर पाई है? 

सवाल तो यह भी उठा है कि मार्च 2020 तक लघु उद्योग निगम के माध्यम से कमलनाथ की सरकार ने गुप्ता की 94 करोड़ रुपए के खिलौने आंगनवाडि़यों को दिए थे वे कहां गए? सरकार को दो साल में ही ठेला निकालकर मांगीलाल बनने की आवश्यकता क्यों पड़ गयी? 

बहरहाल, बच्‍चों की मृत्‍यु के आंकड़े बेहद शर्मनाक हैं। सरकार द्वारा कई योजनाएं शुरू की गई हैं, लेकिन फिर भी कोई असर होता नहीं दिख रहा है। गर्भवती महिलाओं को सही आहार व सही देखभाल न मिल पाने के कारण शिशुओं में जन्म के समय से ही कुपोषण के साथ कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं और ज्यादातर मामलों में ये बीमारियां समय पर पहचानी ही नहीं जाती है।

यह दशा मात्र खिलौना पहुंचा देने या आंगनवाड़ी गोद लेने से नहीं सुधरने वाली। गोद लेने वाला आंगनवाड़ी का चेहरा सुधारने में मदद कर सकता है मगर आंगनवाडि़यों के जरिए बच्‍चों की सेहत सुधारने व उनकी जान बचाने के लिए अधिक सजग प्रयत्‍नों की आवश्‍यकता है। कॉस्‍मेटिक चेंजेस नाकाफी साबित होना तय है। 

भैंस चोरी, एसपी का तबादला, सजा बन गई मजा 

मंत्री जी ने शिकायत की, मुख्‍यमंत्री ने फटकारा और चंद घंटें में एसपी का तबादला हो गया। प्रशासनिक क्षेत्र में इस घटना की बड़ी चर्चा रही मगर बाद में सब हैरत में पड़ गए कि भले ही मुख्‍यमंत्री ने फटकारा हो और वीडियो कांफ्रेंसिंग में किरकिरी हो गई हो मगर शाजापुर एसपी का तबादला वास्‍तव में सजा नहीं मजा बन गया है। हैरत इस बात पर भी है कि शाजापुर में और भी बड़े मुद्दे और समस्‍याएं होने के बाद भी मंत्री जी ने भैंस चोरी की शिकायत इतने पुरजोर तरीके से क्‍यों रखी और मुख्‍यमंत्री ने तुरंत एक्‍शन क्‍यों लिया? 

बात शुक्रवार की है। हर रोज की तरह सीएम शिवराज सिंह चौहान ने अलसुबह जिले की समीक्षा बैठक शुरू की। वर्चुअल समीक्षा में स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने कहा कि जिले में बाइक चोरी होने के बाद रिकवरी के लिए दलालों का गिरोह सक्रिय है। भैंस तक चोरी हो जाती है। भोपाल में कटने भेजने की सूचनाएं मिली हैं। दो ट्रक हमने खुद पकड़े। इस पर सीएम शिवराज सिंह चौहान ने शाजापुर एसपी पंकज श्रीवास्तव पर जमकर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा, एसपी साहब ये बिल्कुल ठीक नहीं है। आप क्या कर रहे हैं, आपने अपराधियों की आर्थिक कमर तोडऩे के लिए क्या किया? शिवराज ने डीजीपी सुधीर सक्सेना को कहा कि शाजापुर के कामों से बिल्कुल संतुष्ट नहीं हूं। 

सीएम शिवराज सिंह ने कहा था कि पुलिस का अपराधियों पर इतना आतंक हो कि वे जिला छोड़कर भाग जाएं। अपराधी तो जब जिला छोड़ने को मजबूर होंगे तब होंगे मुख्‍यमंत्री की नाराजगी के बाद शाम को एसपी पंकज श्रीवास्तव का तबादला कर दिया गया। श्रीवास्तव को गुना भेजा गया है। 

यह नई पोस्टिंग ही तो मजा साबित हो रही है। एसपी पंकज श्रीवास्‍तव से मुख्‍यमंत्री नाराज हुए तो सजा के बतौर शाजापुर से बड़े जिले गुना की कमान मिल गई। यह कैसी सजा है? यह तो उपलब्धि हुई। 

दूसरा सवाल, यह भी उठ रहा है कि तेजतर्रार मंत्री इंदर सिंह परमार ने आखिर एसपी पर ही निशाना क्‍यों साधा? क्‍या मंत्री की नाराजगी के पीछे की वजह एसपी की सख्‍त कार्यप्रणाली है या मंत्री को वांछित कार्यों में पुलिस अधीक्षक का अपेक्षित सहयोग नहीं मिलना है? 

डीजीपी के सितारे में गर्दिश में क्‍यों 

1987 बैच के आईपीएस सुधीर सक्सेना जब से मध्‍य प्रदेश के डीजीपी बने हैं तब से सितारे गर्दिश में ही चल रहे हैं। सीआईएसएफ के महानिदेशक, इंटेलिजेंस चीफ जैसे महत्‍वपूर्ण पद संभाल चुके डीजीपी सक्‍सेना 2012 से 2014 तक सीएम के ओएसडी तथा 1992 से 2000 तक अलग-अलग जिले में एसपी रहे हैं। उनके सभी कार्यकाल उपलब्धियों से भरे हुए हैं। यही कारण है कि जब उन्‍हें डीजीपी के लिए चुना गया तो मान गया था कि मध्‍य प्रदेश पुलिस में कई स्‍तरों पर सुधार होंगे। 

मगर लंबे समय तक प्रदेश के बाहर रहे आईपीएस सुधीर सक्‍सेना के डीजीपी बनने के बाद से ही मध्‍य प्रदेश में माहौल गड़बड़ा गया है। शांति का टापू कहे जाने वाले प्रदेश में दंगों के हालात बने, मॉब लिंचिंग के प्रकरण बन गए, गुना में पहले पुलिसकर्मियों की हत्‍या और फिर आरोपियों के एनकाउंटर पर सवाल उठे हैं। 

स्थितियां सुधरने के बदले बिगड़ती जा रही है। सिर मुंडाते ही ओले गिरने वाली स्थिति तो तब हुई जब सीहोर जिले के श्यामपुर थाने के एसआई अर्जुन जायसवाल और होमगार्ड सैनिक अजय मेवाड़ा को लोकायुक्त पुलिस ने रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार किया। जबकि इसी दिन सुबह डीजीपी सुधीर सक्सेना ने श्यामपुर थाने का निरीक्षण किया था। यहां उन्होंने एसआई जायसवाल के काम की तारीफ की थी। अब रिश्‍वत लेना तो व्‍यक्तिगत दोष है मगर मुखिया के बतौर किरकिरी डीजीपी के खाते में भी गई। 

इसी तरह, मंत्री की शिकायत पर मुख्‍यमंत्री चौहान ने शाजापुर एसपी पंकज श्रीवास्‍तव को ऑन लाइन मीटिंग में फटकारा तो मगर साथ ही साथ डीजीपी को भी तलब कर लिया। मुख्‍यमंत्री ने एसपी की शिकायत मिलते ही डीजीपी को तुरंत बैठक में जुड़ने के लिए कहा और डीजीपी को भी नसीहत दे दी। यानि, अधीनस्‍थों के काम न करने का दोष डीजीपी के खाते में गया और उन्‍हें मुख्‍यमंत्री की नाराजगी झेलनी पड़ी। 

डीजीपी सक्‍सेना ने पुलिस मुख्‍यालय का आंतरिक तंत्र सुधारने की कवायद के बाद जिलों में जा कर थानों का निरीक्षण करने की पहल नई ऊर्जा के साथ शुरू की थी। ऐसे मामलों से अब उस ऊर्जा और उत्‍साह के मंद पड़ने का खतरा है।