दफ्तर दरबारी: एक आईएएस पर ईडी का शिकंजा, भ्रष्‍टाचार वाले दूसरे आईएएस बचेंगे या जाएंगे  

Corruption in MP: कांग्रेस सरकार में मुख्‍य सचिव रहे एम. गोपाल रेड्डी पर कार्रवाई के बाद चर्चा है कि क्‍या ऐसी कार्रवाई उन अधिकारियों पर भी होगी जिन पर भ्रष्‍टाचार के आरोप हैं और जो अभी ‘सरकार’ चला रहे हैं। जानिए एमपी में भ्रष्‍टाचार पर ईमानदार छवि वाले आईपीएस कैलाश मकवाना की राय क्‍या है?

Updated: Feb 26, 2023, 10:15 AM IST

खबर यह है कि कांग्रेस सरकार में मुख्‍य सचिव रहे आईएएस एम. गोपाल रेड्डी की गिरफ्तारी हो सकती है। मनी लॉड्रिंग केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आईएएस एम. गोपाल रेड्डी की अग्रिम जमानत रद्द करने के बाद यह स्थिति बनी है। 

आईएएस एम. गोपाल रेड्डी कांग्रेस सरकार में मुख्‍य सचिव बनाए गए थे। वे तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ के करीबी माने जाते हैं। उनका महत्‍व इसी बात से समझा जा सकता है कि जब मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के व्‍यवहार के कारण कांग्रेस सरकार संकट में थी तब मुख्‍यमंत्री कमलनाथ ने तत्‍कालीन मुख्‍य सचिव एसआर मोहंती को कार्यकाल पूरा होने के पहले ही हटाकर एम. गोपाल रेड्डी को मुख्य सचिव बना दिया था।

हालांकि, 20 मार्च को सरकार गिर गई और  मुख्यमंत्री बनते ही शिवराज सिंह चौहान ने रेड्डी को हटा कर इकबाल सिंह बैंस को मुख्य सचिव बना दिया। इस तरह रेड्डी मात्र 9 दिनों तक की मुख्य सचिव रह पाए थे। सत्ता परिवर्तन और फिर रिटायर्ड होने के बाद भी उनकी मुसीबत कम नहीं हुई। भ्रष्‍टाचार के मामले में ईडी की इंट्री हुई और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी उनके खिलाफ जांच को सही बता दिया है। 

एम. गोपाल रेड्डी पर हो रही इस कार्रवाई के बाद वे सभी आईएएस चर्चा में आ गए हैं जिन पर भ्रष्‍टाचार के मामले हैं। इनमें रेड्डी के पहले मुख्‍यसचिव रहे एसआर मोहंती और पूर्व अतिरिक्‍त मुख्‍य सचिव आरएस जुलानिया प्रमुख है। मोहंती बीजेपी सरकारों में लूप लाइन में रहे लेकिन 2013 में विधानसभा चुनाव के बाद सरकार का विजन डाक्‍यूमेंट बनाने वाले ही वे ही प्रमुख व्‍यक्ति थे, जबकि जुलानिया तो बीजेपी सरकार में सबसे ताकतवर अधिकारी रहे हैं मगर नौकरी के अंतिम माहों में सरकार ने उन्‍हें ऐसा नजरअंदाज किया कि उनका जलवा किस्‍सा बन कर रह गया।  

एक अन्‍य वरिष्‍ठ आईएएस के. सुरेश को भी सेवानिवृत्ति पर कार्रवाई झेलनी पड़ी है। 1982 बैच के आईएएस के.सुरेश को सीबीआई की विशेष अदालत ने दो साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई और दस हजार रुपए का जुर्माना लगाया था। 

प्रशासनिक गलियारों में चर्चा है कि अफसरों के ये दाग नौकरी के अंत समय या रिटायर होने के बाद ही क्‍यों दिखते हैं? कांग्रेस सरकार के करीबी रहे दो पूर्व मुख्‍य सचिवों के कार्यकाल की पड़ताल के अलावा क्‍या ऐसी कार्रवाई उन अधिकारियों पर भी होगी जिन पर भ्रष्‍टाचार के आरोप हैं और जो अभी ‘सरकार’ चला रहे हैं। ऐसे आईएएस, आईपीएस और आईएफएस की संख्‍या 100 के करीब जिन पर आर्थिक अनियमितताओं के आरोप हैं। जानकारी के मुताबिक मुख्यमंत्री सचिवालय में प्रमुख सचिव रहे वरिष्‍ठ आईएएस पर मामले लंबित हैं।

इन तथा अन्‍य ताकतवर अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति सरकार को देनी है। क्‍या आरोपों से घिरे अधिकारी अपने रिटायर होने तक सुरक्षित रहेंगे क्‍योंकि आईएएस, आईपीएस व प्रथम श्रेणी के अन्‍य अधिकारियों पर कार्रवाई से पहले मुख्‍यमंत्री ने अनुमति लेने का नियम बना लिया गया है। पिछले कुछ माह में लोकायुक्‍त ने आधा दर्जन रसूखदार अफसरों के खिलाफ जांच शुरू की जरूर लेकिन सरकार ने अब तक अनुमति नहीं दी है और जांच अटकी हुई है। इन में सबसे ताजा मामला उज्‍जैन के महाकाल लोक में भ्रष्‍टाचार की शिकायत के बाद तीन आईएएस के खिलाफ जांच का है। इनमें उज्जैन के तत्‍कालीन कलेक्टर और स्मार्ट सिटी अध्यक्ष आशीष सिंह, उज्जैन स्मार्ट सिटी के तत्कालीन सीईओ क्षितिज सिंह और तत्कालीन निगम आयुक्त अंशुल गुप्ता शामिल हैं। 

अब तो ईडी का दफ्तर भी भोपाल में खुल चुका है। जिज्ञासा है कि अब चुनाव के ठीक पहले ईडी का अगला निशाना कौन होगा। यानी आरोपी अफसर तब तक सुरक्षित रहेंगे जबतक वे सरकार के हितैषी बने रहेंगे और जब सरकार के काम के नहीं होंगे तब पुराने मामले खोद दिए जाएंगे। 

भ्रष्‍ट अफसरों को ‘पकड़ा’ तो चली गई आईपीएस की कुर्सी

एक तरफ जहां आईएएस पर कार्रवाई की तैयारी है वहीं खबरों में वह आईपीएस भी है जिसे भ्रष्‍टाचार पर कार्रवाई के कारण पद गंवाना पड़ा है। हम बात कर रहे हैं आईपीएस कैलाश मकवाना की। लोकायुक्त में रहते हुए वह भ्रष्टाचार के विरुद्ध बड़े अधिकारियों की शिकायत पर तेजी से कार्रवाई कर रहे थे। उन्‍होंने आईएएस अफसरों पर शिकंजा कसना शुरू किया तो लोकायुक्त के साथ तालमेल न बैठने की खबरें आईं और कुछ ही समय में डीजी के पद से हटा दिए गए। लोकायुक्‍त संगठन से हटा कर उन्‍हें पुलिस हाउसिंग कॉरपोरेशन में चेयरमैन बनाया गया था। 

हटाने के बाद से अब तक अकसर आईपीएस कैलाश मकवाना का दर्द उभर कर आ जाता है। लोकायुक्‍त पद से हटाने पर उनकी बेटी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्‍ट कर सार्वजनिक रूप से अपने पिता की ईमानदारी की प्रशंसा की थी। ट्वीटर पर सक्रिय कैलाश मकवाना की पीड़ा उनके ट्वीट से बयान हुई। उन्‍होंने अपने मन का दर्द उजागर करते हुए लिखा था कि मेरे लहजे में जी हुजूर न था, इसके सिवा कोई कसूर न था। यानी ‘यस मैन’ नहीं होने के कारण उन्‍हें अच्‍छा काम करने के बाद भी पर से हटा दिया गया था।

दोषी अफसरों पर कब और कितनी कार्रवाई होगी यह एक सवाल है तो यह भी एक प्रश्‍न है कि ईमानदारी से अपना काम कर रहे आईपीएस कैलाश मकवाना जैसे अफसरों को ‘सजा’ क्‍यों? 

कलेक्‍टर के ‘फेशियल’ की चिंता में दुबले हो रहे अफसर 

बीते सप्‍ताह मंदसौर के कलेक्‍टर गौतम सिंह को हटाया गया तो आकलन किया गया कि विकास यात्रा में बीजेपी नेताओं की मनचाही भीड़ नहीं जुट पाने के कारण कलेक्‍टर को हटाया गया है। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कलेक्‍टरों से कहा था कि वे क्षेत्र के मंत्रियों, विधायकों से समवन्‍य कर विकास यात्रा को सफल बनाएं। मंदसौर कलेक्‍टर रहे गौतम सिंह ने विधायक से तो समन्‍वय किया लेकिन दो मंत्रियों को साधने में चूक गए। नतीजा सामने हैं। 

इससे पहले कमिश्‍नर-कलेक्‍टर कांफ्रेंस व आईएएस मीट में सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कुछ आईएएस अ‍फसरों के नाम लेकर उनके काम की प्रशंसा की थी। यह तारीफ और मंदसौर कलेक्‍टर के तबादले ने मैदान में पदस्‍थ अफसरों पर दबाव समूह का कार्य किया है। मुख्‍यमंत्री चौहान अफसरों को पहले ही योजनाओं की ब्रांडिंग का टारगेट दे चुके हैं। 

ऐसे में अब मैदानी अफसरों खासकर कलेक्‍टर को अपना चेहरा चमकाने की फिक्र है। इस कवायद में वे नवाचारों की तलाश में जुटे हैं। कुछ अफसर अपने जिलों में बेहद अच्‍छा काम कर रहे हैं मगर उनकी ब्रांडिंग नहीं हो पा रही है जबकि कुछ केवल ब्रांडिंग के दम पर सुरमा बने हुए हैं। अब काम करने के बाद भी ब्रांडिंग में पिछड़े अफसरों ने अपनी पीआर सुधार कर चेहरा चमकाने की जुगत की है। कक्षा में पढ़ाने, औचक दौरा, संवेदना दिखलाती पहल, किसी जरूरतमंद की मदद जैसे कार्य प्राथमि‍कता में है। जनसंपर्क अधिकारियों को अधिक सक्रिय करने के अलावा मीडिया में संपर्कों को टटोला जा रहा है ताकि किसी तरह ‘चमक’ भोपाल तक पहुंचे। 
 
जब ‘पुर्जा’ अड़ गया तो ‘बॉस’ को साफ करने पड़े दीपक

छोटे पदों पर कार्यरत कर्मचारी, संविदा कर्मचारी, आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ता, होमगार्ड ऐसा अमला है जिसे अफसर जब चाहें जैसा चाहें वैसा काम थमा देता है। वे दफ्तर में अर्दली हो जाते हैं, घरों के काम करते हैं। सर्वे हो या योजना का प्रसार इन कर्मचारियों को किसी भी काम पर ‘लगा’ दिया जाता है। मगर उज्‍जैन में कुछ ऐसा हुआ कि ‘पुर्जा’ समझे जाने वाली आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के आगे आईएएस और नेता झुकने को मजबूर हुए। 

महाशिवरात्रि पर उज्जैन में 21 लाख दीपक लगाने का लक्ष्य रखा गया था। यह सरकार की नाम का सवाल था। दीपकों को सजाने और जलाने की जिम्मेदारी विभिन्‍न संगठनों के साथ मैदानी अमले को दी गई। मगर जब इवेंट के पहले 21 लाख दीयों को साफ पानी से धोने की बात आई तो यह कार्य आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को दिया गया। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने इस आदेश का विरोध कर दिया। उन्‍होंने कह दिया कि रोशनी कोई और करे और दीपक वे धोएं ऐसा नहीं चलेगा।

मामला बिगड़ता देख नगर निगम आयुक्त आईएएस रोशन सिंह आगे आए। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को मनाने के लिए उन्‍होंने खुद दीये धोना शुरू किया। उनके साथ महापौर मुकेश टटवाल और दूसरे जनप्रतिनिधि व अफसर भी दीपक धोने के काम में जुट गए। इस तरह रिकार्ड बनने की राह आसान होने के साथ भेदभाव के खिलाफ लड़ रही आंगनवाड़ी कार्यकर्ता भी संतुष्ट हुईं।