दफ्तर दरबारी: आवारा से निराश्रित कह दिया मगर गाय सड़क पर ही मर रही 

MP News: गोकशी के शक में लोगों की जान ले लेने वाले समाज में गायों की यह दुर्दशा कैसे सहन हो सकती है? लोगों की भावनाएं आहत होना तथा उनका आक्रोशित होना लाजमी है लेकिन सवाल यह उठता है कि दोष किसका है?

Updated: Sep 14, 2024, 03:13 PM IST

गौ अभ्‍यारण्‍य, गौ कैबिनेट, गाय को आवारा मवेशी नहीं निराश्रित कहा जाएगा, गाय के भरण-पोषण के लिए 20 नहीं 40 रुपए प्रति गाय गोशाला को सरकार अनुदान देगी, गो वन्‍य विहार बनाने की योजना ... ऐसी तमाम घोषणाएं सुन कर लगता है कि गायों को मध्‍य प्रदेश में बेहतर देखभाल मिलने वाली है मगर हकीकत एकदम उलट है। आवारा, सड़क पर भटकती गायों को नुकसानदेह मान कर किसान उन्‍हें नदी में फेंक रहे हैं। सड़कों पर बैठी गायें दुर्घटना का कारण बन रही हैं। इन दुर्घटनाओं में लोग मारे जा रहे हैं तो गायें भी मारी जा रही हैं। 

शनिवार 14 सितंबर को खबर आई कि छतरपुर में ट्रक की चपेट में आने से 20 गायों की मौत हो गई हैं। ऐसे मामले अन्‍य भी हैं। इसके पहले 31 अगस्त 2024 को सतना का वीडियो वायरल हुआ था जहां चार लोग गायों को तेज बहाव वाली नदी में धकेल रहे थे। दावा किया गया नदी में फेंकी गई गायों की संख्या 20 थी और उसमें से लगभग आधा दर्जन गायों की मौत हो गई। कथित रूप से आरोपियों ने कहा कि वे आवारा पशुओं द्वारा फसलों को खराब करने से परेशान थे और इसलिए गायों को नदी में फेंक रहे थे! 

इससे पहले भी रीवा में दर्जनों गायों को पहाड़ी पर ले जाकर उन्हें वहां से नीचे धकेल दिया गया था जिसमें कई गायों के पैर टूट गए थे और कई की मौत हो गई थी। गोकशी के शक में लोगों की जान ले लेने वाले समाज में गायों की यह दुर्दशा कैसे सहन हो सकती है? लोगों की भावनाएं आहत होना तथा उनका आक्रोशित होना लाजमी है लेकिन सवाल यह उठता है कि दोष किसका है, उनका जो सड़क पर बैठी गायों को बचा नहीं पाए या उनका जो अपनी आस्‍था का केंद्र गायों को संरक्षण नहीं कर पा रहे हैं?

आंकड़ों के आइने में देखें तो प्रदेश में 3200 गौशालाओं को संचालन की अनुमति है जिनमें से 1563 गौशालाएं संचालित की जा रही हैं। लेकिन गायें गौशालाओं में नहीं सड़क पर पाई जाती हैं क्‍योंकि उपयोगहीन होने के बाद लोग गायों को बेसहारा छोड़ देते हैं और गौशालाओं में सभी गायों के लिए जगह नहीं है। 

गायों के संरक्षण की राजनीतिक पहल पर गौर करें तो 'गौ कैबिनेट' स्थापित करने वाला मध्य प्रदेश पहला राज्य है। इसकी पहली बैठक 22 नवंबर 2020 को आगर मालवा जिले के एशिया के सबसे बड़े गौ अभ्‍यारण्य में आयोजित की गई थी। कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने गायों के लिए गौशालाओं को दिए जाने वाले अनुदान को 4 रुपए से बढ़ा कर 20 रुपए प्रति गाय कर दिया था। बीजेपी सरकार ने इसे बढ़ा कर 40 रुपए किया लेकिन गौशालाओं को 20 रुपए प्रति गाय अनुदान ही मिल रहा है। अनुदान कम हैं और गायों की संख्‍या ज्‍यादा। इसीलिए गाय गौशालाओं में नहीं सड़क पर हैं। 

गायों के संरक्षण का प्रशासनिक पहलू यह है कि सीएम और सरकार ने गायों के संरक्षण की घोषणाएं तो की लेकिन धरातल में क्रियान्‍वयन के मामले में प्रशासनिक मशीनरी शून्‍य साबित हुई है। अगस्‍त 2024 में मुख्‍य सचिव के आदेश पर एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया था। तय किया गया था कि 15 दिन का एक विशेष अभियान चला कर आवारा पशुओं की समस्या से निपटा जाएगा। सड़कों पर बैठी गायों को आवारा कहना सरकार को अच्‍छा नहीं लगा और उन्‍होंने आदेश दिया कि ऐसे मवेशियों को आवारा पशु नहीं निराश्रित मवेशी कहा जाएगा। मध्य प्रदेश गौ-पालन एवं पशुधन संर्वधन बोर्ड के अनुसार एक अध्‍ययन बताता है कि मध्य प्रदेश में कम से कम दस लाख गायें सड़कों पर हैं और दुर्घटनाओं में इंसान व मवेशी दोनों मारे जा रहे हैं। 

सरकार की चिताओं और क्रियान्‍वयन में इस अंतर को देख कर व्‍यंग्‍यकार हरिशंकर परसाई का निबंध ‘एक गो भक्‍त से भेंट’ आता है। इसमें वे लिखते हैं कि इस समय जो हजारों गोभक्त आंदोलन कर रहे हैं, उनमें शायद ही कोई गौ पालता हो पर आंदोलन कर रहे हैं। यह भावना की बात है।  

गुजरात कनेक्‍शन समझ नहीं पाए आईएएस, इसलिए हो गई विदाई

बीते दिनों मध्‍य प्रदेश सरकार ने एक फैसला किया। यह फैसला दुग्‍ध सहकारी संस्‍था सांची के विस्‍तार को लेकर था। तय किया गया कि एमपी के दुग्‍ध ब्रांड सांची का संचालन और प्रबंधन राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड करेगा। इस तरह एक व्‍यवस्‍था प्रदेश के हाथ से निकल कर केंद्र के हाथों में चली गई है। इस फैसले के बाद अब गुजरात का अमूल ब्रांड सांची को अधिग्रहित कर देगा। अब तक सांची के कारण ही अमूल मध्‍य प्रदेश में पैर नहीं जमा पाया था। अब सांची का संचालन डेयरी बोर्ड के हाथ में आने के बाद अमूल को सांची के प्लांट में अपना ब्रांड तैयार करने का अवसर मिल गया है। इस फैसले के महत्‍व को इस बात से समझा जा सकता है कि निर्णय करते ही मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने दिल्ली जा कर केंद्रीय सहकारी मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर उन्‍हें इस फैसले की जानकारी दी। सूत्र बताते हैं कि यह फैसला जनवरी 2024 में गुजरात वाइब्रेंट समिट के दौरान ही हो गया था। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव इस समिट में शामिल हुए थे। 

दुग्ध संघों का प्रबंधन एवं संचालन नेशनल डेयरी बोर्ड को सौंपने के लिए मध्यप्रदेश के सहकारिता कानून में बदलाव करने की भी तैयारी है। बल्कि एक प्रमुख सचिव स्‍तर के सीनियर आईएएस को तल्‍खी के साथ विभाग से विदा भी कर दिया गया। असल में, पशुपालन एवं डेयरी विभाग के प्रमुख सचिव गुलशन बामरा इस फैसले का गुजरात कनेक्‍शन समझ नहीं पाए। वे सांची ब्रांड को बचाने का प्रयत्‍न करे रहे और इस अडंगे को दूर करने के लिए इस निर्णय को लेने के ठीक पहले प्रमुख सचिव गुलशन बामरा को हटा कर आईएएस ई.रमेश कुमार को प्रमुख सचिव बना दिया। 

इतिहास गवाह है कि जहां-जहां अमूल गया है उसने स्‍थानीय ब्रांड को खत्‍म किया है। मध्‍य प्रदेश में सांची पर संकट के बादल गहरा गया है। अमूल जैसे ड्रेकुला से सांची को बचाने के जतन कर रहे आईएएस गुलशन बामरा की विदाई के कई राजनीतिक और प्रशासनिक संकेत हैं। एक तो यह कि जो बाधा बनेंगे वे हटा दिए जाएंगे। 

राजनीति का शिकार हो गए रतलाम एसपी राहुल लोढ़ा 

भोपाल में जहां प्रमुख सचिव गुलशन बामरा की विभाग से विदाई एक नाराजगी का परिणाम थी तो रतलाम के एसपी राहुल लोढ़ा की आधी रात विदाई की स्क्रिप्‍ट भी राजनीतिक ही है। जनता के आक्रोश, पार्टी की नाराजगी या सरकार की मंशा पूरी नहीं करने के कारण कई अफसरों को हटाया जाता है। लेकिन रतलाम के एसपी राहुल लोढ़ा के साथ कुछ अलग ही हुआ। 

एसपी राहुल लोढ़ा ने गणेश चतुर्थी पर गणेश प्रतिमा को ले जाने के दौरान हुए पथराव के हिंदुवादी संगठनों के आरोपों को जांच में गलत पाया था। यहां कि इस जांच के बाद एक बीजेपी नेता सहित अन्‍य पर माहौल बिगाड़ने का आरोप लगा और एफआईआर हुई। 

इस कदम से संगठन भड़क गए और वे सड़क पर उतर आए। संगठनों के दबाव में एसपी को आधी रात में बदला गया। शायद यह भी पहली बार हुआ कि राजनीतिक दबाव में हटाए गए अधिकारी को नई पदस्‍थापना पर चार्ज लेते समय भी विरोध का सामना करना पड़ा हो। भोपाल में पद ग्रहण करने गए तो हिंदुवादी संगठनों ने आईपीएस राहुल लोढ़ा का विरोध किया।

राजनीतिक समीकरणों के शिकार आईपीएस राहुल लोढ़ा को हटाए जाने का राजनीतिक संगठनों ने तो विरोध किया लेकिन उनकी ही बिरादरी से प्रत्‍यक्ष सहयोग नहीं मिला। हालांकि, कहा गया कि वे सही थे इसलिए अप्रत्‍यक्ष रूप से सहयोग मिला है। उन्‍हें इतना सहयोग मिला कि लूप लाइन में भेजने की जगह भोपाल रेल एसपी बनाते हुए मैदानी पोस्टिंग बरकरार रखी गई।

आईपीएस विजय यादव कितना ताकतवर बना पाएंगे सूचना आयोग? 

मध्‍य प्रदेश में डकैत समस्‍या निराकरण में कार्य के कारण तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की प्रशंसा पाने वाले आईपीएस विजय यादव के हाथ में सूचना आयोग की कमान दे दी गई है। यूं तो शिवराज सिंह चौहान सरकार में माना गया कि आईपीएस विजय यादव को उनकी योग्‍यता के अनुसार जिम्‍मेदारी नहीं दी गई लेकिन विजय यादव के योगदान को सदैव सम्‍मान दिया गया। 

2023 में हुई मध्य प्रदेश आईपीएस मीट में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दो आईपीएस अधिकारी सरबजीत सिंह और विजय यादव की सेवाओं को याद करते हुए कहा था कि पहले कार्यकाल में डकैत समस्या को समाप्त करने में दोनों का बड़ा सहयोग रहा। दोनों को डकैत प्रभावित जोन में भेजा गया था और सालभर में बड़े डकैत गैंग समाप्त हो गए थे।

आईपीएस विजय यादव को राज्‍य सूचना आयोग का मुखिया बनाया गया है। मुख्‍य सूचना आयुक्‍त विजय यादव के अलावा तीन सूचना आयुक्‍तों की नियुक्ति हुई है। मुख्‍य सूचना आयुक्‍त विजय यादव प्रशासनिक सेवा से हैं तो शेष तीन सूचना आयुक्‍त संघ पृष्‍ठभूमि से हैं। 

इन नियुक्तियों के बाद अब भी दस में से अभी सात सूचना आयुक्‍त के पद और खाली हैं। पिछले छह माह से सूचना आयोग का काम अटका हुआ है और 15 हजार से अधिक शिकायतें निर्णय का इंतजार कर रही हैं। इसलिए बतौर मुखिया विजय यादव पर निर्भर रहेगा कि वे सूचना आयोग को कितना मजबूत बना कर रखते हैं। यह चिंता निवृत्‍तमान सूचना आयुक्‍त राहुल सिंह की भी है। उन्‍होंने सोशल मीडिया साइट पर लिखा है, हाईकोर्ट के नोटिस के बाद आखिरकार सरकार हरकत में आई और पिछले 5 महीनों से ठप्प पड़े सूचना आयोग में नियुक्तियां कर दीं। सरकार ने सूचना आयुक्त के सात पद खाली छोड दिए ये चिंताजनक है। 

लंबित अपील प्रकरणों के अंबार को देखते हुए आवश्‍यक था कि सभी दस के दस सूचना आयुक्त नियुक्त किए जाते। यूपी में 10 के 10 सूचना आयुक्त बनाए गए जब यूपी में ऐसा हो सकता है तो मध्य प्रदेश में ऐसा क्यों नहीं?  अनुभव बताता है कि सरकारी कार्यालय में दस्तावेज़ों की पारदर्शिता को लेकर सोशल सेक्टर और पत्रकारिता के क्षेत्र से आए हुए सूचना आयुक्त का प्रदर्शन बेहतर होता है। मध्य प्रदेश में इस बार एक भी पत्रकार का सूचना आयुक्त नहीं बनाया जाना चिंताजनक है।