दफ्तर दरबारी: करप्शन से लड़ाई में 14 वर्षों से प्रताड़ित महिला आईएएस की सुन लो सरकार
MP News: मध्य प्रदेश में अफसरों व राजनेताओं के गठजोड़ से हुए भ्रष्टाचार की चर्चा देश भर में हैं। ऐसे में ऐसे अधिकारियों का दर्द भी उभर आया है जो सालों की नौकरी में सिर्फ प्रताड़ना ही झेल रहे हैं। इन अधिकरियों का मानना है कि यह तकलीफ सच बोलने का परिणाम है।
हम तो मानते थे कि आईएएस देश के सबसे शक्तिशाली लोगों में से एक होते हैं लेकिन यदि ऐेसे अफसर यदि सिस्टम से लड़ने की मंशा वाले हों तो आईएएस हो कर भी वे कमजोर आम आदमी से ज्यादा हैसियत नहीं रखते हैं। ऐसी ही पीड़ा मध्य प्रदेश की एक महिला आईएएस ने व्यक्त की है।
2011 बैच की आईएएस अधिकारी नेहा मारव्या की गिनती प्रदेश की तेज तर्रार आईएएस में होती हैं। हो भी क्यों न उन्होंने अपनी 14 साल की सेवा में ऐसा ही कार्य किया है। आईएएस नेहा मारव्या का कहना है कि भ्रष्ट आचरण पर आपत्तियों के कारण वे सीनियर अफसरों की चहेती नहीं बन पाई। जैसे, जब 2017 में वे वपुरी जिला पंचायत की सीईओ थीं तब शिवपुरी कलेक्टर की सफारी गाड़ी का बिल रोक दिया था। आईएएस नेहा मारव्या की आपत्ति थी कि कलेक्टर की किराए की गाड़ी का निर्धारित रेट 18 हजार रुपए है तो 24 हजार रुपए का भुगतान क्यों किया जा रहा हे। चार महीने का भुगतान रूका तो तत्कालीन कलेक्टर ने कहा कि 18,000 रुपए के हिसाब से सरकारी भुगतान हो बाकी की राशि वे अपने व्यक्तिगत खाते से देंगे। शिवपुरी में ही उनके तत्कालीन मंत्री यशोधरा राजे के कार्यक्रम में न जाने पर भी विवाद हुआ था।
शिवपुरी से तबादले के बाद नेहा मारव्या ने तत्कालीन मुख्य सचिव के करीबी के खिलाफ जांच शुरू कर दी एफआईआर दर्ज करने की अनुशंसा कर दी थी। मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा था। तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान के पीएस पर भी नेहा मारव्या ने आरोप लगाते हुए कहा था कि सजा के तौर पर उनसे काम, कमरा और गाड़ी छिन लिए गए हैं।
इन विवादों ने नेहा मारव्या को और तल्ख बना दिया है। बीते सप्ताह जब आईएएस मीट हुई तो नेहा मारव्या ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए अपनी पीड़ा व्यक्त की है। नेहा का कहना है कि उन्हें कभी भी फील्ड पोस्टिंग नहीं सुबह 9 बजे ऑफिस आती हूं और शाम को घर चली जाती हूं। ऐसे में एक अफसर का करियर संतुलित कैसे होगा? प्रदेश में अकूत भ्रष्टाचार के खुलासों के बाद सरकार संदेश दे रही है कि वह ऐसे आचरण के खिलाफ सख्त है लेकिन उस महिला आईएएस की कौन सुने जो भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए सजा भोग रही है। अब यह अधिकारी न्याय की मांग कर रही हैं लेकिन सहायता का हर दरवाजा बंद ही है। नेहा मारव्या की तकलीफ यह भी हो सकती है कि जब अन्य भ्रष्टाचार की फाइलें खुल रही हैं तो उनके द्वारा पकड़े गए भ्रष्टाचार पर खामोशी क्यों है?
कर्मचारी की अनुसनी, दो आईएएस के खिलाफ वारंट
प्रशासनिक स्तर की यह सबसे बड़ी विडंबनाओं में से एक है कि एक कर्मचारी की समस्या को लेकर पूरा विभाग लापरवाह बना रहता है। अंतत: उसके हित के लिए मानवाधिकार आयोग को वारंट जारी करने की सख्ती दिखानी पड़ी।
मामला कुछ यूं है कि भोपाल के मोतीलाल विज्ञान महाविद्यालय के प्रोफेसर कैलाश त्यागी ने अपनी अर्जित अवकाश (एलटीसी) राशि रोके जाने पर मानवाधिकार आयोग में शिकायत की थी। आयोग ने इस पर गंभीरता से संज्ञान लिया और उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी। लेकिन बार-बार रिमाइंडर भेजने के बाद भी आयोग को कोई उत्तर प्राप्त नहीं हुआ।
आयोग ने सख्ती दिखाते हुए अपर मुख्य सचिव (एसीएस) अनुपम राजन और कमिश्नर निशांत वरवड़े के खिलाफ 5-5 हजार रुपए के जमानती वारंट जारी कर दिए। एक अन्य मामले में महिला खेल अधिकारी ने जातिसूचक टिप्पणी का आरोप लगाते हुए मानवाधिकार आयोग से सहायता मांगी थी। इस पर भी कमिश्नर निशांत वरवड़े ने जांच रिपोर्ट नहीं सौंपी।
बावड़िया कलां ओवरब्रिज की खराब सड़क के मामले में पीडब्ल्यूडी के मुख्य इंजीनियर संजय मस्के ने भी अपना उत्तर नहीं दिया इस कारण भी उनके खिलाफ वारंट जारी किया गया। मुद्दा यह है कि अपने मामलों और शिकायतों को सुलझाने के लिए कर्मचारियों को वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ अदालत और आयोग तक जाना पड़ रहा है। जिम्मेदार अधिकारी एक तरफ तो उनकी बात नहीं सुन रहे हैं और जब मामला अदालत या आयोग में पहुंच जाता है तो वहां जवाब न दे कर मामले को लंबित रखते हैं। यह हालात बताते हैं कि अफसर किसी की भी सुन नहीं रहे हैं।
भ्रष्टाचार पर अंकुश की मौसमी पहल
बरसात में उग आए खरपतवार को साफ करने के लिए मौसमी पहल की जाती है। मध्य प्रदेश में जड़ें जमा चुके भ्रष्टाचार के इलाज के लिए भी कुछ ऐसे ही उपाय किए जा रहे हैं। हर बार जब कोई कांड हो जाता है तो अफसरों को पुराने नियम कायदे याद आते हैं और वे नए आदेश निकाल कर पुराने नियमों को लागू करने को कह देते हैं।
परिवहन घोटाले के बाद अब प्रदेश में शिकायत पेटी लगाने, कर्मचारियों को अपनी संपत्ति की घोषणा करने जैसे नियमों को लागू करने के आदेश जारी हो रहे हैं। जबलपुर नगर निगम ने फाइलों में दफ्न राज्य सरकार के पुराने आदेश को झाड़ पौंछ कर निकाला और सभी कर्मचारियों को अपनी संपत्ति की जानकारी देने को कहा गया है। छिंदवाड़ा में भी सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों के भ्रष्ट आचरण पर अंकुश के लिए शिकायत व्यवस्था को चाक-चौंबद करने की कवायद हुई है। छिंदवाड़ा कलेक्टर कार्यालय से आदेश जारी कर सभी सरकारी कार्यालयों में शिकायत पेटी लगाना अनिवार्य कर दिया है। यह व्यवस्था इस उद्देश्य से लागू की गई है कि शिकायत करना आसान होगा तो भ्रष्टाचार रोकना भी संभव हो पाएगा। आदेश में कहा गया है कि शिकायत पेटी ऐसे स्थान पर लगाई जाएं जो सुरक्षित हो और जहां आमजन आसानी से पहुंच सकें। शिकायत पेटी को रोज खोलने के भी निर्देश हैं।
भ्रष्टाचार रोकने के लिए सख्त नियम और कायदे पहले से ही लागू है लेकिन उनका पालन नहीं होता। ये सारी कवायद पुराने आदेशों केा अमलीजामा पहनाने के लिए है। बस इतना हो कि यह मौसमी कवायद बन कर न रह जाए।
आखिर मंत्री को कहना पड़ा, अपना तबादला करवा लो साहब
प्रदेश में ब्यूरोक्रेसी की मनमानी का हाल यह भी है अफसर न जनता की सुन रहे हैं और न जन प्रतिनिधियों की। क्या कांग्रेस और क्या बीजेपी विधायकों की यह शिकायत आम है कि अफसर विधायकों की बातों पर ध्यान नहीं देते हैं। उनकी अनुशंसाओं मान रहे हैं और न उनकी बताई समस्याओं का निराकरण कर रहे हैं। बार-बार के आदेश के बाद भी अफसर विधायकों के फोन तक नहीं उठाते। यह एक जनप्रतिनिधि के लिए अपमानजनक स्थिति है।
इसी स्थिति से परेशान हो कर बालाघाट की कांग्रेस विधायक अनुभा मुंजारे ने पंचायत मंत्री प्रह्लाद पटेल को ही अपना दु:ख कह सुनाया। विधायक अनुभा मुंजारे ने मंत्री प्रह्लाद पटेल को बताया कि जिला पंचायत सीईओ सहित अन्य अधिकारी उनके फोन नहीं उठाते हैं। इस बात पर मंत्री पटेल ने कलेक्टर मृणाल मीना को फोन लगा कर कहा कि जो अधिकारी जन प्रतिनिधियों का कॉल रिसीव नहीं कर सकते हैं वे अपना तबादला कहीं ओर करवा लें।
कटंगी से बीजेपी विधायक गौरव पारधी और वारासिवनी से कांग्रेस विधायक विक्की पटेल की भी ऐसी ही शिकायतें हैं। इन विधायकों की तकलीफ यह है कि जब कलेक्टर या जिला पंचायत सीईओ जैसे बड़े अफसर का व्यवहार देख कर ही अधीनस्थ अधिकारी भी जन प्रतिनिधियों के साथ बुरा व्यवहार करते हैं। पंचायत मंत्री प्रह्लाद पटेल ने एक जिले में कलेक्टर को निर्देश दिए हैं लेकिन किसी अधिकारी का अपना तबादला करवा लेना ही तो समस्या का हल नहीं है। मुद्दा तो यह है कि ऐसे अधिकारी जब तक अपना अंदाज नहीं बदलेंगे तब तक जहां जाएंगे वहां ऐसा ही व्यवहार करेंगे।