दफ्तर दरबारी: अफसर बदलने से चेहरा चमकता है सिस्टम नहीं

MP News: हादसों के बाद दोषियों पर कार्रवाई इस उद्देश्‍य से की जाती है कि पूरा सिस्‍टम उससे सबक ले और कमियों को सुधार दिया जाए। गुना बस हादसे के बाद सीएम मोहन यादव ने पूरे घर के बदल डालूंगा की तर्ज पर अफसरों को बदल दिया था। इस सख्‍ती के बाद भी सिस्‍टम वैसा ही है, लापरवाह और बिगडैल।  

Updated: Mar 06, 2024, 01:43 PM IST

गुना बस हादसे में 13 लोगों की मौत के बाद नए मुख्यमंत्री मोहन यादव ने परिवहन विभाग के शीर्ष से लेकर मैदानी अफसरों को बदल दिया था। इस कार्रवाई के दो माह में ही लापरवाही के चलते डिंडोरी में वेन हादसे में 14 लोगों की मौत हो गई। सीएम ने दुख जताते हुए मुआवजा दिया लेकिन किसी अफसर को नहीं बदला। इस पर भी तंज हुए मगर यह बात साफ हो गई कि गुना हादसे के बाद अफसरों को बदल देने से असल में सीएम मोहन यादव की सख्‍त छवि तो बनी लेकिन सिस्‍टम तो वैसा ही काम कर रहा है। चंद तबादलों से लापरवाहियां नहीं बदलतीं। 

आदिवासी जिले डिंडोरी में गुरुवार को हुए हादसा में 14 लोगों की मौत हो गई। एक तरह से यह दो माह के अंदर ही लापरवाही का दूसरा हादसा था। यहां भी आरंभिक जांच में पता चला कि जिस पिकअप वाहन के पलटने से 14 लोगों ने जीवन खो दिया उस वाहन का भी न फिटनेस थी और न ही बीमा था। 

यह एक मामला नहीं है। स्‍थानीय लोग बताते हैं कि डिंडोरी से आसपास के जिलों में पिकअप वाहनों में भरकर सवारियों को ले जाया जाता है। एक वाहन में क्षमता से दो गुना तक यात्री बैठाए जाते हैं। अधिकतर वाहनों का न बीमा होता है और न बीमा। वाहन चालकों के पास लाइसेंस हो इसकी भी गारंटी नहीं है। 

और पढ़े: जी भाईसाहब जी: सीएम के पुरुषार्थ की बदौलत, धर्म से अर्थ की ओर उज्जैन

गुना में 27 दिसंबर 2023 में हुए हादसे के बाद पूरे प्रदेश में अभियान चला कर परिवहन विभाग ने ऐसी लापरवाहियां पकड़ी थीं। बताया गया था कि विभाग ने 6 हजार बसों की जांच कर 2 हजार से ज्यादा चालान काटे थे। परिवहन विभाग के आयुक्‍त सहित आधा दर्जन अधिकारी बदलने के साथ सभी जिलों के कलेक्‍टर-एसपी और परिवहन अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि बगैर परमिट चलने वाले वाहनों की जांच करें। लापरवाही पर दोषी अधिकारी पर कार्रवाई करें। 

इन निर्देशों के बाद भी डिंडोरी में हादसा हो गया। यहां भी परिवहन विभाग की लापरवाही सामने आई। सभी इंतजार करते रहे कि गुना हादसे के बाद कार्रवाई कर सख्‍त छवि बना चुके मुख्‍यमंत्री मोहन यादव फिर कोई एक्‍शन लेंगे। लेकिन मोहन यादव सरकार ने किसी अफसर को नहीं बदला। बदल कर भी क्‍या होगा, क्‍योंकि सिस्‍टम तो हर बार वैसा ही रहता है, लापरवाह और भ्रष्‍ट।   

कौन मार रहा है अफसरों को लंगड़ी 

फाजिल अंसारी का एक शेर है, ‘ये कैसा दौर है या इलाही के दोस्‍त दुश्‍मन से कम नहीं है।’ मगर मध्‍य प्रदेश के आईएएस अफसरों के लिए भी दोस्‍तों और दुश्‍मनों में अंतर करना मुश्किल है क्‍योंकि जब भी किसी अफसर को कोई लाभ देने की बारी आती है, कोई लंगड़ी मार देता है। लंगड़ी भी ऐसी कि अफसर तिलमिला कर रह जाते हैं और उन्‍हें लाभ देने वाले हाथ ठहर जाते हैं। 

ताजा मामला प्रदेश की मुख्‍यसचिव वीरा राणा को एक्‍सटेंशन देने तथा रिटायर्ड आईएएस अजातशत्रु श्रीवास्‍तव को मुख्‍यमंत्री मोहन यादव का ओएसडी नियुक्‍त करने का है। जैसे ही यह खबर बाहर आई कि सरकार सीएस वीरा राणा को छह माह का एक्सटेंशन देने का प्रस्‍ताव भेजने का मन बना चुकी है उनके खिलाफ लोकायुक्त में शिकायत का मामला गरमा गया। क्‍या दोस्‍त और क्‍या दुश्‍मन हर कोई उनकी राह में कांटे बिछाने में जुट गया। इन कोशिशों में मुख्‍य सचिव पद के दावेदार आईएएस अफसरों व उनके समर्थकों का हाथ माना गया। लोकसभा चुनाव की आचार संहित लगने वाली है और अब तक सीएस को एक्‍सटेंशन देने पर फैसला नहीं हुआ है। 

दूसरा मामला रिटायर्ड आईएएस अजातशत्रु श्रीवास्तव को सीएम का विशेष कर्तव्‍यस्‍थ अधिकारी बनाने का है। जैसे ही उन्‍हें ओएसडी बनाने की नोटशीट चली कि भ्रष्‍टाचार का मामला गरमा गया। लोकायुक्त ने उज्‍जैन में कलेक्‍टर रहे अजातशत्रु श्रीवास्‍तव सहित पांच आईएएस के खिलाफ अभियोजन चलाने की अनुमति मांग ली। अभी जांच की स्‍वीकृति भी लंबित है और ओएसडी बनाने का आदेश भी। साफ है कि नियुक्ति के ऐन पहले लोकायुक्‍त का अभियोजन की अनुमति मांगना केवल संयोग नहीं है। कोई तो है जो इन अफसरों का भला नहीं देख पा रहा है। 

अफसर हैं कि सुनते नहीं 

मध्‍य प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने और मुख्‍यमंत्री बदलने के बाद भी बीजेपी के विधायकों का एक ऐसा दु:ख है जो कम नहीं हो रहा है। वे हर बार उम्‍मीद करते हैं कि अबकि बार दिन बदलेंगे और अफसर उनकी सुनने को मजबूर होंगे लेकिन अफसर तो तब भी बेलगाम थे और अब भी हैं। बीजेपी विधायक असहाय और निरूपाय बने हुए हैं।  

विधायकों की इस मजबूरी को सतना के बीजेपी विधायक के खत से समझा जा सकता है। अपने क्षेत्र का जल संकट विधायक की परेशानी बढ़ा रहा है। वे बार-बार निर्देश दे रहे हैं लेकिन कलेक्टर हर बार अनसुना कर रहे हैं। जनता का दबाव बढ़ा तो थक हार कर बीजेपी एमएलए श्रीकांत चतुर्वेदी ने कलेक्टर को पत्र लिखा और से सार्वजनिक करवा दिया। कम से कम जनता को पता तो चलेगा कि विधायक जी उनकी चिंता कर रहे हैं।

दूसरे बीजेपी विधायक नरसिंहगढ़ के मोहन शर्मा हैं जो अपनी ही सरकार के सिस्टम से इतना नाराज हो गए कि सार्वजनकि कार्यक्रम में बढ़े हुए बिजली बिलों के विरोध में पांच मार्च से धरने पर बैठने की घोषणा कर दी। उन्‍होंने यह भी कहा कि मुझे मौत स्वीकार है पर जनता के ऊपर विद्युत मंडल का अत्याचार स्वीकार नहीं है। 

बीजेपी विधायकों के अपनी ही सरकार में परेशान होने के ऐसे उदाहरण अनेक हैं। उनकी पीड़ा यह है कि सरकार तो उनकी है लेकिन सुनता कोई नहीं है।  

आईएएस अवार्ड के लिए कुर्सी दौड़

मध्‍यप्रदेश सरकार ने गैर आईएएस संवर्ग को पदोन्‍नत कर आईएएस अवार्ड करने की प्रक्रिया आरंभ कर दी है लेकिन इस प्रक्रिया ने राज्‍य प्रशासनिक सेवा (एसएएस) के अफसरों की नींद उड़ा दी है। इस कैडर के अफसरों की चिंता गैर एसएएस के अफसरों को भी आईएएस अवार्ड करने की मंशा है। 

मध्‍य प्रदेश में कुल स्‍वीकृत आईएएस के पदों में राज्य प्रशासनिक अफसर 33.3 प्रतिशत तथा गैर राज्य प्रशासनिक अफसरों के आईएएस होने की संख्‍या एसएएस की स्वीकृत संख्या का 15 प्रतिशत है। गैर राज्‍य प्रशासनिक अफसरों को आईएएस अवार्ड करने में हमेशा ही विवाद रहा है। इस बार भी आईएएस अवार्ड करने की प्रक्रिया आरंभ हुई तो सरकार ने गैर राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों को भी आईएएस बनाने की मंशा जताई। इससे राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों में चिंता बढ़ गई हैं।

गैर राज्य सेवा के अफसरों को भी आईएएस अवार्ड किया गया तो राज्य सेवा के कम अधिकारी आईएएस बन पाएंगे। राज्य प्रशासनिक सेवा संघ के प्रतिनिधि मंडल ने सीएम मोहन यादव से मुलाकात कर ज्ञापन देकर इस चिंता को जाहिर किया था। उनका कहना है कि अपात्रता के बाद गैर राप्रसे अफसरों को मौका दिए जाने से राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों का हक मारा जाता है।