जी भाईसाहब जी: सीएम के पुरुषार्थ की बदौलत, धर्म से अर्थ की ओर उज्जैन
MP Politics: यूं तो बारह वर्षों में होने वाले सिंहस्थ के आयोजन के लिए उज्जैन का चेहरा हर बार बदल जाया करता है लेकिन इसबार जब उज्जैन से मुख्यमंत्री बने मोहन यादव ने इतिहास बदलना शुरू कर दिया है। धार्मिक नगरी के वैभव के पुरातन पहलू को पुनर्जीवित करने के प्रयत्नों के कारण यह नगरी धर्म के साथ अर्थ के सोपान तक पहुंच रही है।
गीता में चार पुरुषार्थ बताए गए हैं, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। चारों पुरुषार्थ एक दूसरे को जोड़ने वाली कडि़यां हैं। मुख्यमंत्री मोहन यादव के पुरुषार्थ से अब धर्म नगरी उज्जैन ‘अर्थ नगरी’ बनने की ओर अग्रसर है। मोहन यादव उज्जैन में विकास का नया अध्याय लिख रहे हैं। महाकाल की नगरी में पहली बार ऐसा होने जा रहा है जो प्रदेश में पहले कभी नहीं हुआ।
यूं तो बारह वर्षों में होने वाले सिंहस्थ के आयोजन के लिए उज्जैन का चेहरा हर बार बदल जाया करता है लेकिन इसबार जब उज्जैन से मुख्यमंत्री बने मोहन यादव ने इतिहास बदलना शुरू कर दिया है। अब तक वाहनों पर टैक्स छूट के कारण ग्वालियर मेला ही प्रसिद्ध हुआ करता था। प्रदेश के अन्य शहरों में भी ग्वालियर मेले की तर्ज पर वाहनों की खरीद में छूट देने के प्रयास हुए लेकिन ग्वालियर मेले का एकाधिकार ही रहा। अब पहली बार यह काम उज्जैन में होने जा रहा है।
कैबिनेट ने तय किया है कि मार्च से आयोजित होने वाले विक्रमोत्सव व्यापार मेला 2024 में गैर-परिवहन और हल्के परिवहन वाहनों के विक्रय पर जीवनकाल मोटरयान कर की दर में 50 प्रतिशत की छूट दी जाएगी। अब तक इसी छूट के कारण ग्वालियर मेले की पहचान बनी है। अब उज्जैन भी यह व्यावसायिक पहचान पा सकेगा।
अर्थ अर्जन के लिए औद्योगिक विकास आवश्यक है। इस सूत्र को समझते हुए विक्रमोत्सव के आरंभ में उज्जैन में 1 और 2 मार्च को क्षेत्रीय उद्योग सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है। क्षेत्रीय उद्योग सम्मेलन का उद्देश्य मौजूदा निवेशकों को आकर्षित करना ही नहीं बल्कि गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के प्रतिभागियों को भी आकर्षित करेगा। आयोजन के दस दिन पहले तक लगभग 2 हजार निवेशकों ने पंजीयन करवाया है। तैयारी है कि निवेशकों से मुख्यमंत्री मोहन यादव व्यक्तिगत मुलाकात करेंगे और प्रस्तावों पर चर्चा कर अंतिम रूप देंगे।
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने फाइलों में बंद अपने ही एक प्रस्ताव को भी हरी झंडी दे दी है। उन्होंने प्रस्ताव दिया था कि धार्मिक न्यास और धर्मस्व विभाग संचालनालय को भोपाल से उज्जैन ले जाया जाना चाहिए। लेकिन अफसरों की गिनाई दिक्कतों के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रस्ताव को टाल दिया था। अब मोहन यादव स्वयं मुख्यमंत्री हैं तो उनके प्रस्ताव की फाइल तैयार है और जल्द कैबिनेट में रखा जाएगा। प्रस्ताव पारित होते ही धर्म स्थलों के रखरखाव का काम देखने वाला संचालनालय उज्जैन से काम करने लगेगा।
उज्जैन का इतिहास अतीत की अवंतिका नगरी की आर्थिक समृद्धि को भी बताता है। यह समृद्धि स्थानीय स्थापत्य और ऐतिहासिक संदर्भों में दिखाई देती है। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने धार्मिक नगरी के इस पुरातन पहलू को पुनर्जीवित करने के प्रयत्न शुरू कर दिए है। अर्थात् यह नगरी धर्म के साथ अर्थ के सोपान तक पहुंच रही है।
जमीन तलाश रहे शिवराज सिंह चौहान को सिर्फ आश्वासन!
प्रदेश में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में नए सिरे से अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं। पार्टी ने उन्हें प्रदेश के बाहर का काम सौंपा है लेकिन उनका मन तो मध्य प्रदेश में रमा है। यही कारण है कि वे मौका मिलते ही मध्य प्रदेश में अपनी सक्रियता दिखा देते हैं। ऐसा ही मौका मंगलवार को आया जब प्रतिदिन पौधारोपण करने के शिवराज के संकल्प को 3 साल पूरे हुए। शिवराज सिंह चौहान ने तीन साल पहले 19 फरवरी 2021 को नर्मदा जयंती के दिन पौधारोपण का संकल्प लिया था।
मौका और दस्तूर देखते हुए उन्होंने भोपाल में एक कार्यक्रम आयोजित कर लिया। इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव व बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा के साथ पर्यावरणविद, समर्थक शामिल हुए। रवींद्र भवन में आयोजित सम्मलेन में शिवराज सिंह चौहान ने कहा मुख्यमंत्री मोहन यादव से मुखातिब होते हुए कहा कि मैं मुख्यमंत्री से आवेदन करता हूं कि वे पौधे लगाने के लिए जमीन उपलब्ध कराएं। प्रत्युत्तर में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने पौधा लगाने के लिए जमीन उपलब्ध करवाने का आश्वासन दिया।
यह दूसरा मौका था जब शिवराज सिंह चौहान ने पौधा लगाने के लिए जमीन मांगी है। इससे पहले भी पद से हटने के तुरंत बाद शिवराज सिंह चौहान ने सार्वजनिक रूप से नए मुख्यमंत्री मोहन यादव से आग्रह किया था कि उन्होंने रोज एक पौधा लगाने का संकल्प लिया है। इस संकल्प को पूरा करने की व्यवस्था कायम रखी जाए लेकिन मुख्यमंत्री और पार्टी ने उनके इस आग्रह को अनसुना कर दिया था। इस सम्मेलन में भी मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया है। शिवराज को कब जमीन मिलती है इसपर सभी की निगाहें हैं। और पौधरोपण की इस जमीन के सहारे शिवराज कितनी राजनीतिक जमीन घेरते हैं यह देखना भी कम दिलचस्प नहीं होगा।
असमंजस छंटा या नहीं, कांग्रेस ही बताएगी
20 मार्च 2020 के चार साल बाद 20 फरवरी 2024 के आसपास मध्य प्रदेश में एक और सियासी तूफान के आसार दिखाई दिए। मार्च 2020 की तरह फरवरी 2024 के तीसरे हफ्ते में उलटफेर के कयास लगाए गए और तेजी से ‘अफवाह’ उड़ी कि कमलनाथ अपने दल-बल के साथ बीजेपी में जा सकते हैं। परिस्थितियां कुछ ऐसी ही बनी कि इन अटकलों पर यकीन किया जाने लगा।
कमलनाथ के यात्रा कार्यक्रम में अचानक बदलाव कर दिल्ली जाने, उनके सांसद बेटे नकुलनाथ का अपने तीनों सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक, इंस्टाग्राम और एक्स पर अपने बायो से कांग्रेस नाम हटाने, कमलनाथ के खास समर्थक पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा का भी अपने बायो बदल कर कांग्रेस की जगह जन गण मन लिख कर तिरंगा लगा लेने से इन अटकलों को बल मिला। कमलनाथ अपने बेटे नकुलनाथ के साथ बीजेपी में जा रहे हैं, यह खबर मिलते ही उनके समर्थक नेताओं ने बैठक करना शुरू कर दी। सभी ने संकेत दिए कि वे कमलनाथ के साथ हैं और वे भी कमलनाथ के साथ ही पार्टी छोड़े देंगे। बाद में सज्जन सिंह वर्मा ने मीडिया से चर्चा में कमलनाथ के बीजेपी में जाने की सारी खबरों को खारिज कर दिया। इसतरह दो दिन चले इस
राजनीतिक नाटक का फिलहाल समापन हो गया है लेकिन तरह-तरह के आकलन और कयास जारी हैं। अपनी-अपनी तरह के बयान जा रहे हैं। हालांकि, कमलनाथ ने प्रभारी महासचिव जितेंद्र सिंह की बैठक में वचुर्अल रूप से उपस्थित हो कर सारी अटकलों को खत्म कर दिया मगर पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं में कोहरा है। अटकलों के धुएं से उपजे असमंजस के कोहरे को छांटने का काम तो पार्टी को ही करना होगा।
सतपुड़ा भवन की राख में फिर से आग
अरेरा हिल्स स्थित संचालनालयों की बिल्डिंग सतपुड़ा भवन में आग लगने की खबर आते ही लोगों की पहली प्रतिक्रिया थी, वहां क्या बच गया था जो दोबारा आग लग गई। यानी आग लगानी पड़ी। यह कटाक्ष वास्तव में उस विचार से जुड़ा है जो यह मानता है कि सरकारी दफ्तरों में आग महत्वपूर्ण दस्तावेजों को खत्म करने का काम करती है। ऐसी आग लगती नहीं लगाई जाती है।
सतपुड़ा भवन की चौथी मंजिल पर मंगलवार शाम धुआं निकलता देख सनसनी फैल गई। फायर ब्रिगेड की गाडि़यों ने आग तो बुझा दी लेकिन आग लगने के कारणों पर तमाम चर्चाएं चल पड़ी। बताया गया कि दोबारा उसी जगह आग लगी थी जहां 12 जून 2023 में भी आग लगी थी। उस समय पर चिकित्सा शिक्षा, आदिवासी विभाग जैसे महत्वपूर्ण विभागों के दस्तावेज राख हो गए थे। अब बताया गया कि भी उस समय जो दस्तावेज आधे-अधूरे जले थे। उन्हीं में फिर से आग लग गई। मतलब आधे जले कागज आदि नौ माह बाद भी पड़े थे और उन्हीं में आग लगी।
यह बात समझ से परे है कि नौ माह बाद भी बिल्डिंग की सफाई नहीं हुई और आधा जला सामान वहीं पड़ा हुआ है। दोबारा आग ने सिस्टम को चेताया है। फायर ऑडिट जैसे जरूरी कदम सतपुड़ा में ही संभव हुआ भी है या नहीं? अन्यथा तो सरकारी दफ्तरों में आग लगती रहेगी और शक का धुंआ उठता रहेगा।