दफ्तर दरबारी: किसान पर सख्ती, बाकी सुस्ती, ऐसा क्यों सरकार
MP News: भोपाल सहित एमपी के शहरों में वायु गुणवत्ता का स्तर 300 तक पहुंच गया है जबकि इसे 50 से कम होना चाहिए। सरकार ने बाकी कारकों पर सुस्ती दिखाई है। निशाने पर सिर्फ किसान क्यों हैं?
प्रदूषित हुई प्राण वायु अब दम घोट रही है। दिल्ली के वायु प्रदूषण की खबरें देख-सुन भोपाल की आबोहवा पर फख्र करने के दिन हवा हो गए। अब भोपाल सहित प्रदेश के प्रमुख शहर देश के उन शहरों में शुमार हो गए हैं जहां वायु प्रदूषण के कारण मृत्यु दर में वृद्धि होने लगी है। लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल ने हमें चेताया है कि दिल्ली सहित देश के 10 शहरों में प्रतिवर्ष हवा में पीएम-2.5 के कणों की अधिकता के कारण लगभग 33 हजार लोगों की मौत हो रही है।
मध्य प्रदेश में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए रणनीति बनाई जा रही है। इसीबीच, जबलपुर और भोपाल के कलेक्टर ने पराली जलाने पर सख्ती दिखाते हुए आदेश दिया है कि जो किसान पराली जलाएं उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करें। किसानों को ही टारगेट करते हुए एमपी हाईकोर्ट बार ने अनोखा निर्णय लिया है। बार ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया कि पराली जलाने वाले आरोपी किसानों की हाईकोर्ट का कोई भी वकील पैरवी नहीं करेगा।
कलेक्टर और एमपी हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के फैसले के बाद आरएसएस समर्थित किसान संगठन अखिल भारतीय किसान संघ मैदान में आ गया है। किसार संघ ने कहा कि किसानों के खिलाफ एफआईआर हुई तो किसान पराली लेकर कलेक्टर दफ्तर पहुंचा जाएंगे। बार एसोसिएशन के निर्णय पर कहा कि आतंकवादियों के लिए देर रात कोर्ट के दरवाजे खुल जाते हैं। एडवोकेट मुकदमा भी लड़ते हैं। पराली जलाने को लेकर किसानों का कोई दोष नहीं है। फिर भी किसानों को दोषी ठहराया जाता है। अब न्याय पाने के अधिकार से भी वंचित किया जा रहा है।
पर्यावरण विशेषज्ञों की दृष्टि से भी देखें तो किसानों पर शासन-प्रशासन की सख्ती से हैरत होगी। देश-दुनिया के अनेक अध्ययनों से यह साफ हो गया है कि वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों में औद्योगिक और वाहनों से निकलने वाला धुआं, निर्माण कार्यों से उत्पन्न धूल और मलबा, बिजली के लिए ताप विद्युत पर निर्भरता, खुले में कचरा जलाना तथा खाना पकाने और तापने के लिए लकड़ी और गोबर का उपयोग, जंगल की आग, बदलता मौसम शामिल हैं। कृषि संबंधी गतिविधियों का दोष बहुत बाद में हैं। लेकिन सरकारें उद्योगों व वाहनों से होने वाले प्रदूषण पर मौन रहती है। खुले में कचरा जलाने जैसी आदतों से नगर निगमों के कर्मचारियों ने ही छुटकारा नहीं पाया है। पेंट, क्लीनर, परफ्यूम, डियोड्रेंट जैसे उत्पाद भी हवा की गुणवत्ता को खराब करते हैं लेकिन घरों के बाहर और भीतर विभिन्न प्रकार के वायु प्रदूषण के कारणों पर सरकारों की अजीब चुप्पी है। विकास के नाम पर हो रहे निर्माण और सामंजस्य के बिना पक्के निर्माण में बार-बार की तोड़फोड़ पर कोई लगाम नहीं है।
शहर में बैठे जिम्मेदारों को दूर खेत से उठता धुआं दिखाई देता है लेकिन अपने पास पार्क में जलता कचरा दिखाई नहीं देता है। सड़कों पर जाम और वाहनों की रेलमपेल के कारण गाडि़यों व उनके एसी से उठता प्रदूषण दिखाई नहीं देता है। दिल्ली के उदाहरण से साफ है कि वायु प्रदूषण का सारा दोष किसानों पर मढने से बात नहीं बनेगी। इसके लिए वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार प्राथमिक कारणों पर पहले काम करना होगा। अन्यथा किसानों पर सख्ती करके केवल उन्हें परेशान ही किया जाएगा, प्रदूषण की समस्या से निजात नहीं मिलेगी। इस
हटने के नाम पर डर गए डीएम साहब
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने शुक्रवार की रात सभी कलेक्टर और कमिश्नर के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बैठक की। इस बैठक में साफ किया कि चाहे विकास का प्रश्न हो या शासन की प्राथमिकताओं के क्रियान्वयन का मामला हो या कानून-व्यवस्था की बात हो सभी जिलों में आदर्श स्थिति बनाए रखने का जिम्मा कलेक्टर-एसपी का है। जिन जिलों में गड़बड़ी होगी वहां के अधिकारियों को बख्शा नहीं जाएगा। सीएम डॉ. मोहन यादव ने एक माह में मैदानी अफसरों के कामकाज की समीक्षा के निर्देश दिए है।
इस बैठक में संकेत दे दिए गए हैं कि दिसंबर का महीना परीक्षा का है और 5 जनवरी के बाद जैसा परिणाम होगा वैसी पोस्टिंग। असल में, प्रदेश में 5 जनवरी तक निर्वाचक नामावली सुधार का काम चल रहा है। तब तक कलेक्टरों के तबादले नहीं हो सकते हैं। इसबीच, मुख्य सचिव कलेक्टरों के काम की समीक्षा कर लेंगे। इस समीक्षा और प्रदर्शन के आधार पर कलेक्टर बदल दिए जाएंगे। यही कारण है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के साथ हुई ऑनलाइन मीटिंग के बाद मैदानी अफसरों में एकबार फिर तबादले का खौफ घर कर गया है।
सामंजस्य बैठने में संविधान कैसे करें नजरअंदाज
मऊगंज एक बार फिर चर्चा में हैं। विंध्य की जातीय राजनीति के इतिहास में यह नया चेप्टर है जब खुल कर हिंदु-मुस्लिम की राजनीति की जा रही है। ताजा मामला मऊंगज का है। यहां मंदिर की बाउंड्री वॉल के पास कथित अतिक्रमण को लेकर हिंदु संगठनों के बाद बीजेपी विधायक प्रदीप पटेल आक्रामक हो गए। वे खुद बुल्डोजर लेकर अतिक्रमण हटाने पहुंच गए जबकि जिन्हें अतिक्रमणकर्ता बताया जा रहा है उनका कहना है कि उन्हें सरकार ने पट्टे दिए हैं। उनके पास हाईकोर्ट का स्टे ऑर्डर भी है लेकिन राजनीति यह सब कहां देखती है? विधायक पटेल को पुलिस ने चार दिनों तक ‘नजरबंद’ भी रखा लेकिन उनके तेवर कम नहीं हुए। उन्होंने अपनी मांग को पूरा करवाने के लिए अनशन भी किया।
दबाव की राजनीति के आगे पस्त प्रशासन इसी उलझन में रहा है कि यदि वह विधायक की मांग पूरी करने के लिए सामंजस्य बैठाता है तो संवैधानिक प्रावधान आड़े आ जाते हैं। आखिर वह जनप्रतिनिधि की मांग से सामंजस्य बैठाने के लिए संविधान को नजरअंदाज कैसे करें? अंतत: प्रशासन को विधायक की मांग के आगे झुकना पड़ा। दबाव की यह राजनीति विंध्य का नया ट्रेंड बन सकता है। गौरतलब है कि कुछ दिन पहले यही विधायक प्रदीप पटले पुलिस अफसर के सामने दंडवत हो गए था। तब उनका आरोप था कि पुलिस नशे के कारोबार पर सख्त नहीं है और माफिया पर कार्रवाई नहीं कर रही है। तब भी बवाल मचा था तो बात बीजेपी संगठन तक पहुंची थी। हिंदुत्व के मुद्दे पर विधायक प्रदीप पटेल फिर आक्रामक हुए। राजनीति में उनके नंबर बढ़ सकते हैं लेकिन प्रशासन का धर्मसंकट तो यही रहा कि वह नेताजी के साथ सामंजस्य बैठाए या संविधान का पालन करे।
इंदौर के मसले पर भोपाल लोकायुक्त का एक्शन
कुछ दिन शांत रहने के बाद लोकायुक्त फिर सक्रिय हो गया है। उसके निशाने पर फिर आईएएस हैं। लेकिन इंदौर के मामले पर भोपाल में एक्शन की गति चर्चा में है। हुआ यूं कि 3 अक्टूबर को कांग्रेस नेता और पूर्व पार्षद दिलीप कौशल ने तीन शिकायतें इंदौर और भोपाल लोकायुक्त में की थी। इन शिकायतों पर अपर आयुक्त रहे आईएएस सिद्धार्थ जैन के साथ ही अपर कलेक्टर संदीप सोनी और बीस से अधिक अधिकारियों-कर्मचारियों पर अवैध निर्माण को लेकर कार्रवाई नहीं करने के आरोप लगाए गए थे।
शिकायतों पर इंदौर लोकायुक्त जांच शुरू करते हुए जवाब तलब किए। लोकायुक्त इंदौर में इस मामले की जांच करर ही रहा है कि भोपाल लोकायुक्त ने मामले दर्ज कर जांच शुरू कर दी। खबर है कि भोपाल लोकायुक्त ने इंदौर के पूर्व पार्षद दिलीप कौशल की तीनों शिकायतों पर जांच के लिए मामले पंजीबद्ध किए हैं।
इंदौर और भोपाल दोनों जगह लोकायुक्त द्वारा एक साथ जांच शुरू कर देना चर्चा में आ गए। अधिकारी सकते में हैं। वे इस तर्क के साथ स्वयं को निर्दोष बता रहे हैं कि अवैध निर्माण के समय उनका कार्यकाल नहीं था। आरोप कितने सही हैं यह तो जांच के बाद पता चलेगा लेकिन इंदौर के मसले पर भोपाल लोकायुक्त की सक्रियता के मायने खोजे जा रहे हैं। सवाल यह भी है कि क्या यह सक्रियता इसलिए हैं क्योंकि शिकायत एक आईएएस के खिलाफ है?