नईदुनिया को ऊँचाइयों तक पहुँचाने वाले इंदौर की दमदार आवाज रहे अभय छजलानी नहीं रहे

अभय जी के प्रधान संपादक रहते हुए नईदुनिया ने हिन्दी पत्रकारिता में जो ऊंचाई हासिल की थी उसकी मिसाल आज भी दी जाती है। इंदौर को नई पहचान दिलाने वाले, सरल होने के  साथ हमेशा अपने चेहरे पर मुस्कान रखने वाले किंगमेकर कलमकार अभय जी को नम आंखों से श्रद्धांजलि

Updated: Mar 23, 2023, 05:55 PM IST

इंदौर। हिंदी पत्रकारिता के जनसुलभ अध्याय, मध्य भारत में चौथे स्तंभ के रूप में नए आयाम स्थापित करने वाले, हिंदी पत्रकारिता की नर्सरी माने जाने वाले अखबार नईदुनिया को वटवृक्ष बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले योद्धा पद्मश्री अभय छजलानी जी आज हमारे बीच नहीं रहे। नईदुनिया से जुडऩे और नईदुनिया को जीने के साथ ही अभय जी इंदौर शहर के विकास और प्रगति के लिए हमेशा प्रयास करते रहे। आज शहर में उद्योगों की स्थापना और नर्मदा का जल इंदौर में लाने में भी अभय जी की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

नईदुनिया के सफर का आगाज अभय जी के बाबूजी श्री लाभचंद छजलानी जी ने साइकिल पर अखबार बांटकर किया था। बाबूजी से प्रेरित होकर अभय जी ने नईदुनिया को एक परिवार के रूप में स्थापित किया। अभय जी का जन्म 4 अगस्त 1934 को इंदौर में हुआ था। वह इस शहर की दमदार आवाज थे। उस समय नईदुनिया का ऐसा रुतबा था, जहां न सिर्फ महापौर, विधायक, सांसद के टिकट और मंत्रिमंडल के चेहरे तय होते थे, बल्कि जीत-हार की रणनीति भी यहीं बैठकर बनती थी। अभय जी से मिलने के  लिए बड़े-बड़े अफसर घंटों इंतजार करते थे। इसे अभय जी का वैभव कहें या नईदुनिया की दमदारी कि अखबार के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री से लेकर कई शीर्ष हस्तियां शामिल होती थी। सालों तक यह देखा गया कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री इंदौर आने के बाद सबसे पहले नईदुनिया पहुंचते थे और अभय जी से मिलने के बाद ही उनके इंदौर में कार्यक्रमों का सिलसिला शुरू होता था।

शहर से जुड़े मुद्दों को लेकर वे हमेशा मुखर रहते थे और ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं, जब नईदुनिया की पहल के चलते ही सरकार को अपने निर्णय को बदलना पड़ा। इंदौर के हित में काम करने वाली संस्थाओं की अभय जी खुलकर मदद करते थे। अभ्यास मंडल इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। उनके पास अलग-अलग विषयों से जुड़े विशेषज्ञों की टीम थी। इस टीम की मदद से वे अखबार को कन्टेंट के मामले में सालों तक दूसरे अखबारों से आगे रखने में कामयाब रहे। उनकी ब्रांड वैल्यू कितनी ज्यादा थी, इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज से 20 साल पहले जब किसी कार्यक्रम की सूचना शहर में किसी तक पहुंचती थी, तो उसका एक प्रश्न यह भी रहता था कि अभय जी आ रहे हैं। मतलब किसी कार्यक्रम में अभय जी का पहुंचना कितना मायने रखता था। 

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 विश्वसनीयता के मामले में नईदुनिया की एक अलग पहचान थी। चूंकि नईदुनिया सालों तक हिन्दी का नंबर एक अखबार रहा, इसलिए उसमें छपी खबरों के बारे में यह माना जाता था कि जो यहां लिखा गया है, वह 100 प्रतिशत सत्य है। इन सालों में यदाकदा ही ऐसे मौके आए होंगे, जब नईदुनिया में छपी किसी खबर पर प्रतिवाद छापा गया हो। आज खबरें सूत्रों के भरोसे चला दी जाती हैं, लेकिन अभय जी इस पर भरोसा नहीं करते थे। वे पत्रकारों से खबर की 100 प्रतिशत पुष्टि का आग्रह करते थे। खबरों के सभी तथ्य, आंकड़े, नाम की बार-बार पुष्टि करने के बाद ही उसे आगे बढ़ाते थे। बिना पुख्ता प्रमाण के आने वाली खबरों को वह बिना किसी डर के रोक दिया करते थे, फिर वह खबर चाहे किसी हस्ती की ही क्यों न हो। यही खासियत नईदुनिया की भी रही और इसी कारण अखबार की देशभर में ख्याति भी रही।

नईदुनिया में नौकरी तब स्टेटस सिम्बल मानी जाती थी और यहां नौकरी किसी सिफारिश पर नहीं, बल्कि योग्यता के आधार पर ही मिलती थी। नईदुनिया की पाठशाला से निकले अनेक पत्रकार आज भी देश में नईदुनिया का परचम लहरा रहे हैं। अभय जी के प्रधान संपादक रहते हुए नईदुनिया ने हिन्दी पत्रकारिता में जो ऊंचाई हासिल की थी उसकी मिसाल आज भी दी जाती है। इंदौर को नई पहचान दिलाने वाले, सरल होने के  साथ हमेशा अपने चेहरे पर मुस्कान रखने वाले किंगमेकर कलमकार अभय जी को नम आंखों से श्रद्धांजलि।