जी भाईसाहब जी: शाह की मात, क्षत्रप बने प्यादे
MP Politics: विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी की कमान अपने हाथ में ले चुके गृहमंत्री अमित शाह ने शह-मात का ऐसा खेल रचा है कि क्षत्रप अब ‘प्यादे’ बन मैदान फतह करने में जुट गए हैं। समीकरण ऐसे गड़बड़ा दिए हैं कि न रोया जा रहा है न हँसा ही जा पा रहा है। दूसरी तरफ, सोमवार को भोपाल आए पीएम मोदी ने बताया दिया कि उनके मन में क्या है?
बीजेपी के चौंकाने वाले निर्णय से केंद्रीय मंत्रियों को जैसे मिल गई है आडवाणी गति
मिशन 2023 अब जितना दिलचस्प हो गया है उतना रोचक पहले ही शायद ही कोई विधानसभा चुनाव हुए होंगे। कुछ सीटों पर दिग्गजों की टक्कर चर्चा में रहती है लेकिन इस बार टिकट वितरण ने समीकरण ऐसे गड़बड़ा दिए हैं कि न रोया जा रहा है न हँसा ही जा पा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की टीम चौंकाने वाले निर्णय लेती है और इसबार मध्य प्रदेश में ऐसा निर्णय लिया गया है जिसने राजनीतिक बाजी बदल कर रख दी है।
विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी की कमान अपने हाथ में ले चुके गृहमंत्री अमित शाह ने शह-मात का ऐसा खेल रचा है कि क्षत्रप अब ‘प्यादे’ बन मैदान फतह करने में जुट गए हैं। केंद्रीय मंत्रियों को जैसे आडवाणी गति मिल गई है। समझ नहीं आ रहा है यह किला भिड़ाने के लिए नेताओं को मैदान में उतारने की रणनीति है या पदावनति है। बेटे और भाई के टिकट काट कर नेताओं की बोलती ही बंद कर दी गई है।
बीजेपी ने जब 39 विधानसभा सीटों के लिए प्रत्याशियों की दूसरी सूची जारी की तो एक तरह से राजनीतिक कोहराम मच गया। इन सीटों पर बीजेपी ने 3 केंद्रीय मंत्रियों समेत 7 सांसदों को टिकट दिया है। 3 केंद्रीय मंत्रियों नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते के अलावा चार सांसद राकेश सिंह, गणेश सिंह, रीति पाठक और उदय प्रताप सिंह विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। चौंकाने वाला नाम राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का है जिन्हें दस साल बाद विधानसभा चुनाव में इंदौर 1 नंबर सीट से मैदान उतारा गया है। बगावत कर चुके मैहर से विधायक नारायण त्रिपाठी का टिकट काटा जा चुका है जबकि आदिवासी पर पेशाब करने के मामले में विवादों से घिरे सीधी क्षेत्र के कद्दावर नेता केदारनाथ शुक्ला का टिकट काट दिया गया है। इस निर्णय से स्पष्ट है कि अब न कैलाश विजयवर्गीय और नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे को टिकट मिलेगा न प्रहलाद पटेल के भाई को।
बीजेपी के इस चौंकाने वाले निर्णय पर दो तरह की प्रतिक्रियाएं प्रमुख रूप से आईं। कांग्रेस ने कहा है कि सत्ता जाने वाली है और बीजेपी में इतनी घबराहट है उसने सत्ता में बने रहने के लिए अपने केंद्रीय मंत्रियों, सांसदों जैसे नेताओं को चुनाव मैदान में उतार दिया है। जबकि बीजेपी का कहना है कि शाह एक चाल ने उन सारे मुद्दों को खत्म कर दिया है जो बीजेपी के लिए सिरदर्द बन रहे थे। जैसे, सत्ता विरोधी लहर, टिकट के लिए मारा मारी, कार्यकर्ताओं की नाराजगी आदि। जो नेता अपने समर्थकों के लिए टिकट मांग रहे थे वे खुद अब मैदान में हैं। ऐसे में समर्थक खुश हैं कि बीजेपी अब ज्यादा ताकत में दिखाई देगी।
जबकि सक्रिय कार्यकर्ता अपने केंद्रीय नेतृत्व के निर्णय से उलझन में तथा जरा मायूस हैं। जीत के लिए बनाई गई शाह की यह रणनीति वास्तव में प्रदेश के क्षत्रपों को मात है। वे सारे नेता जो मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे हैं एक साथ मैदान में हैं। अब सारे सीनियर नेता क्षत्रप नहीं रहे बल्कि प्यादों की तरह जीत के लिए एक ही क्षेत्र में बंधे होंगे। सभी जीत भी गए तो चुनाव के बाद ‘सरदार’ कौन होगा यह अधिकार एमपी संगठन के हाथ में नहीं होगा बल्कि केंद्र ही तय करेगा।
इस चौंकाने वाले निर्णय ने इन कयासों को भी हवा दे दी है कि जब केंद्रीय मंत्री और सांसद विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं तो 2024 के लोकसभा चुनाव के टिकट वितरण भी ऐसे ही चौंकाने वाले होंगे। बीजेपी अब तक दो बार 39-39 सीटों के लिए टिकट की घोषणा कर दी है लेकिन इस घोषणा के बाद अब बची सीटों के दावेदारों के प्राण हलक में अटक गए हैं।
मन से उतर गए शिवराज
पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर 25 सितंबर को बीजेपी ने सबसे बड़ा कार्यकर्ता कुंभ आयोजित किया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि पीएम नरेंद्र मोदी थे। महाकुंभ में प्रधानमंत्री मोदी के प्रवेश करते ही पांडाल में बीजेपी का थीम सांग ‘मोदी के मन में एमपी, एमपी के मन में मोदी’ बजाया गया। कुछ ही देर में तय हो गया कि मोदी के मन में क्या है?
बीजेपी में बहुत पहले ही यह तय किया जा चुका है कि मिशन 2023 के जीत के लिए चेहरा तो पीएम मोदी ही होंगे। उनके बार-बार मध्य प्रदेश आगमन ने यह बात सिद्ध भी की है। कार्यकर्ता महाकुंभ में पीएम मोदी के भाषण ने ऐसा पहली बार हुआ होगा कि मुख्य अतिथि ने राज्य के मुख्यमंत्री को ही भूला दिया। शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में सबसे ज्यादा समय तक सत्ता में बने रहने वाले मुख्यमंत्री हैं। उनकी ही योजना लाड़ली बहना के सहारे बीजेपी एंटीइंकम्बेंसी से निपटने का दम भर रही है लेकिन पीएम मोदी ने बता दिया है कि उनके मन में क्या है।
पीएम मोदी ने कुशाभाऊ ठाकरे, सुंदरलाल पटवा जैसे बीजेपी के आधार नेताओं को तो याद किया लेकिन वर्तमान के एक भी नेता का नाम नहीं लिया। इससे कांग्रेस को कहने का मौका मिल गया कि पीएम ने सीएम शिवराज सिंह और उनके शासन को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया क्योंकि राज्य में बीजेपी सरकार से तीखी नाराजगी है। अब बीजेपी में नेताओं के समर्थक खुद कानाफूसी कर रहे हैं कि जीत का श्रेय तो प्रधानमंत्री मोदी को मिलेगा लेकिन जो 2018 की तरह 2023 में भी हार गए तो इसका जिम्मा किसके सिर होगा, स्वाभाविक है, हार का दोषी सीएम और उनके काम को ही ठहराया जाएगा।
ग्वालियर के बाहर कितनी कायम रहेगी सिंधिया की पूछपरख
बीजेपी के चौंकाने वाले निर्णयों के आधार पर पार्टी में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की हैसियत का आकलन किया जा रहा है। पार्टी ने सिंधिया समर्थक रणवीर जाटव, गिर्राज दंडोतिया, जसवंत जाटव के टिकट काट दिए हैं। जबकि इमरती देवी को टिकट देने के साथ ही दूसरी सूची में सिंधिया समर्थक मुरैना से रघुराज कंसाना को भी टिकट दिया गया है। सबसे चौंकाने वाला निर्णय भितरवार से सिंधिया के समर्थक मोहन सिंह राठौर को टिकट देने का है।
ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में महाराज यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया के हैसियत को बार-बार चुनौती मिल रही है। ऐसे में 2018 में भितरवार से चुनाव लड़ने वाले अनूप मिश्रा की जगह मोहन सिंह राठौर को टिकट दिया है। क्षेत्रीय समीकरणों में जब बीजेपी के सारे बड़े नेता सिंधिया से नाराज थे तब मुख्यमंत्री शिवराज उनके साथ रह कर अपनी ताकत बढ़ा रहे थे। इस दौरान लगभग माना जा रहा था कि भितरवार से शिवराज सिंह चौहान के पसंदीदा नेता लोकेंद्र पाराशर को टिकट मिलेगा। लोकेंद्र पाराशर इस उम्मीद के सहारे मीडिया प्रभारी के पद से हटने के बाद क्षेत्र में पकड़ बनाने में जुटे हुए थे। भिरतवार सीट पर टीम शाह ने न शिवराज की रखी न अटल जी के भतीजे अनूप मिश्रा की।
इस तरह ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में सिंधिया समर्थकों को टिकट मिले हैं लेकिन यह पूछपरख ग्वालियर-चंबल के बाहर कितनी बरकरार रह पाएगी? यह सवाल वर्तमान मंत्रियों सहित सिंधिया समर्थकों को बेचैन किए हुए है।
सेवादल की क्रांति टिकट में होगी कामयाब?
सेवादल कांग्रेस में कैडर वाला संगठन है जो आमतौर पर पर्दे के पीछे काम करता है। अब सेवादल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालजी देसाई ने इंदौर में कहा है कि सेवादल अब सीधी लड़ाई लड़ेगा। देश में सब अच्छा चल रहा था इसलिए सेवादल शांत था अब क्रांति का समय आ गया है। देश में क्रांति की बात करने वाले सेवादल ने टिकट पर भी मौन तोड़ा है। सेवादल ने अपने समर्थकों के लिए टिकट का दावा ठोका है।
सेवादल कार्यकर्ताओं ने विधानसभा चुनाव के लिए 12 सीट से टिकट मांगे हैं। अब संगठन कह रहा है कि वह इन 12 में से 5 सीटों पर अपने कार्यकर्ताओं को टिकट देने की पैरवी करेगा। इसके लिए कांग्रेस संगठन पर दबाव बनाया जाएगा।
सेवादल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालजी देसाई का यह कहना राजनीतिक संकेत है कि हमने पिछले कुछ महीनों में लाखों सेवादल कार्य़कर्ता बनाए हैं। उनके कहने का अर्थ है कि अब हम सीधे चुनाव में उतरेंगे यानी कार्यकर्ता बनाए हैं तो हमें अपना हक चाहिए। टिकट के लिए दबाव की राजनीति का सेवादल का यह नया पैंतरा कांग्रेस संगठन के लिए सिरदर्द बन सकता है।