जी भाईसाहब जी: गुस्से के पीछे का गणित
MP News: वर्ष 2020 के बाद से ही केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कई रूपों में नजर आ रहे हैं। महाराज की छवि तोड़ने के लिए उन्होंने अपने बर्ताव को भी बदला है। मगर बीते रविवार गुना में उनका ऐसा रूप दिखा जो सुर्खियां बन गया। इस गुस्सैल रूप के पीछे राजनीतिक नफे का गणित है।

कांग्रेस में ‘महाराज’ का संबोधन पाने वाले और ‘श्रीमंत’ की ठसक रखने वाले केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी में जाते ही अपनी इस छवि को तोड़ने के भरसक प्रयास किए। फिर एक दिन अचानक वे भरी सभा में महाराज सा गुस्सा करते और अफसरों को अपमानित करते दिखाई दिए। उनका यह रूप कई लोगों के लिए चौंकाने वाला है। लेकिन यह परिवर्तन यूं ही नहीं हो गया। इसके पीछे भी राजनीतिक नफे-नुकसान का गणित है।
वर्ष 2020 के बाद से ही केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कई रूपों में नजर आ रहे हैं। उन्होंने कोशिश की कि बीजेपी में उन्हें भाईसाहब कहा जाए, कांग्रेस की तरह महाराज नहीं। उन्होंने सौम्य और सहज दिखने के लिए अपने बर्ताव को भी बदला। कभी बीजेपी नेताओं के घर गए तो आम जनता की बीच पहुंच कर दायरे तोड़ने की कोशिश की। विधानसभा चुनाव के दौरान भी वे ऐसे ही रूपों में दिखाई दिए। मगर बीते रविवार गुना में उनका ऐसा रूप दिखा जो सुर्खियां बन गया।
भारत संकल्प यात्रा में शामिल होने के लिए गुना पहुंचे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अचानक गुस्सा दिखा दिया। जब सिंधिया बोलने के लिए पहुंचे तो उन्हें मंच पर एसपी और कलेक्टर दिखाई नहीं दिए। वे इस बात से खफा हो गए। सिंधिया ने अपना भाषण रोका और कलेक्टर-एसपी को कहा मंच पर खड़े रहे दोनों।
सिंधिया का यह रूप देख कर सभी हैरत में हैं। सौम्य छवि गढ़ते-गढ़ते वे उन नेताओं की कतार में जा खड़े हुए जो अफसरों को सार्वजनिक मंच से फटकार रहे हैं। राजनीतिक गलियारे में यह सवाल है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को ऐसा गुस्सा दिखाना क्यों पड़ा जबकि कोई उनकी अवहेलना नहीं कर रहा है? पड़ताल करें तो पाएंगे कि इस गुस्से के पीछे राजनीतिक गणित हैं।
करीब डेढ़ माह की सरकार में सिंधिया खेमा चर्चा में नहीं है। ऐसे में अपना होना बताने के लिए भी सिंधिया ने अफसरों को फटकारने का तरीका चुना। जिससे यह संदेश जाए कि जो सिंधिया की नहीं सुनेगा वह इस तरह व्यवहार झेलेगा। लोकप्रियता का यह सस्ता सा तरीका भी इसलिए संभव है कि सिंधिया के गुना सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने की चर्चा है। अपनी इस परंपरागत सीट से वे 2019 का चुनाव हार चुके हैं। उनका यह रूप इस सीट से लड़ने की तैयारी का हिस्सा माना जा रहा है।
संदेह है तो सवाल उठाओ
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी को भारी बहुमत मिलना कांग्रेस समर्थकों को हजम नहीं हो रहा है। कई बीजेपी नेता भी चर्चाओं में यह स्वीकार करते हैं कि पार्टीक की जीत हो सकती है यह तो सोचा था लेकिन इतनी ज्यादा सीटें मिलना तो ख्याल में भी नहीं था। लाड़ली बहना, मोदी इफेक्ट, अमित शाह की रणनीति, बूथ प्रबंधन जैसे तरीके अपनी जगह लेकिन...। इस लेकिन पर कई लोगों की सुई अटक जाती है।
कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह जैसे नेता भी हैं जो हर मन में उठ रहे संदेह को सवाल बना कर दाग रहे हैं। तकनीक का मामला होने के कारण सबूतों के अभाव में कई नेता खुल कर ईवीएम पर सवाल नहीं उठा पा रहे हैं लेकिन दिग्विजय सिंह अब सबूत लेकर आ गए हैं।
बुधवार को भोपाल में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने ईवीएम के साथ चुनाव आयोग को भी कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी गड़बड़ी हुई है। सॉफ्टवेयर में प्रोग्रामिंग ऐसे की जाती है, जिससे वीवीपैट में भले ही पर्ची कुछ और बताएं, लेकिन कंट्रोल यूनिट में वोट जिसके लिए किया गया है, उसे ही मिलता है और मतों की गणना भी उसके माध्यम से ही होती है। कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने निर्वाचन आयोग से इस मुद्दे पर बात करने के लिए समय मांगा है, लेकिन छह माह से समय नहीं दिया जा रहा है। इससे समझा जा सकता है कि स्थिति क्या है।
दिग्विजय सिंह ने कहा कि ईवीएम में हैकिंग नहीं हो सकती, लेकिन प्रोग्रामिंग के माध्यम से इसमें पहले से निर्धारित किया जा सकता है कि वोट किसे जाएगा। गुजरात से आए अतुल पटेल ने प्रेजेंटेशन के माध्यम से बताया कि साफ्टवेयर के माध्यम से हेराफेरी की जा सकती है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी दिग्विजय सिंह के सवालों का समर्थन किया है। दिग्विजय सिंह ने कई लोगों के संदेह को जुबान दे दी है। और आवाजें उठेंगी तो संदेह का समाधान की राह भी खुलेगी।
नेपथ्य में रह गए शिवराज, सुर्खियां ले गए मोहन यादव
22 जनवरी को जब मीडिया में राम प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठा की खबरें छाई हुई थी और हर तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिक्र तथा मध्यप्रदेश में एक नया ‘राजनीति कांड’ हुआ। अवसर के महत्व और अपने अस्तित्व के सवाल को देखते हुए पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 22 जनवरी को ओरछा में रहने की घोषणा कर राजनीतिक बिसात पर एक दांव चला था। राजनीतिक दांव इसलिए कि अयोध्या के बाद ओरछा का भी उतना ही महत्व है। मध्यप्रदेश में ओरछा में शिवराज का होना बड़ी खबर बनना तय था। यानी अयोध्या में मोदी और ओरछा में शिवराज।
जब शिवराज सिंह चौहान ने ओरछा जाने की घोषणा की और चित्रकूट में मोहन यादव कैबिनेट की बैठक हुई तो माना जा रहा था कि मुख्यमंत्री मोहन यादव चित्रकूट में रह सकते हैं। लेकिन संगठन के मन में तो कुछ ओर ही था। राम मंदिर उद्घाटन के अवसर मोहन यादव को भी ओरछा भेजा गया।
मुख्यमंत्री मोहन यादव के रहते पूर्व मुख्यमंत्री की चमक फीकी पड़ना तय थी और हुआ भी यही।
एक दिन पहले शताब्दी एक्सप्रेस से रामधुन गा कर जाने वाले शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री मोहन यादव के साथ बैठ कर पूजा की। खबरों में भी दोनों की जुगलबंदी की चर्चा हुई लेकिन साफ दिखाई दिया कि मोहन यादव की उपस्थिति पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की राजनीतिक बिसात में नहले पर दहले की तरह था। मोहन यादव फ्रंट पर आ गए और शिवराज सिंह चौहान नैपथ्य में चले गए। खबरों में प्रमुखता से जगह घेरने का टीम शिवराज के प्लान पर पानी फिर चुका था। चर्चित बने रहने के इस खेल में शह और मात का क्रम अभी जारी रहेगा।
हार के बाद भी नहीं डूबे सितारे, नई सीट तलाशते नरोत्तम मिश्रा
मध्यप्रदेश की राजनीति में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के बीच एक अजीब संयोग घट रहा है। शिवराज सिंह चौहान चुनाव जीत गए लेकिन पद खो बैठे हैं जबकि नरोत्तम मिश्रा तो चुनाव ही हार गए हैं। दोनों के हाथ खाली हैं और दोनों बेहद सक्रिय हैं। यह सक्रियता खुद के बने रहने की गवाही की तरह है।
22 जनवरी को जब शिवराज सिंह चौहान ओरछा में थे तो पूर्व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने भोपाल मजमा जमाया। उन्होंने अपने निवास के कुछ दूर चार इमली स्थिति मंदिर में सुंदरकांड पाठ और भंडारे का आयोजन किया। कार्यक्रम में मीडिया को आमंत्रित किया गया था। इस दौरान नरोत्तम मिश्रा राम दरबार की झांकी के साथ बैठे थे। उन्होंने मीडियाकर्मियों से खुल कर बात की।
लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी द्वारा तय क्लस्टर व्यवस्था में नरोत्तम मिश्रा ग्वालियर क्षेत्र के प्रभारी बनाए गए हैं। यह उनके कौशल का सम्मान है लेकिन बात केवल उतनी ही नहीं है। नरोत्तम मिश्रा की इस सक्रियता के पीछे कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्हें जल्द ही कुछ बड़ा मिलने वाला है। यह बड़ा लोकसभा चुनाव के लिए बनी क्लस्टर प्रभारी की जिम्मेदारी नहीं बल्कि लोकसभा में जाने का टिकट है। समर्थक बता रहे हैं कि भाई साहब का टिकट तय है। बस यह तय होना शेष है कि वे मुरैना से लड़ेंगे या पार्टी उन्हें भोपाल का टिकट देगी। यानी सूरज का आना तय है, माहौल बनाए रखिए।