जी भाईसाहब जी: पुतलों को कब तक जलाते रहेंगे सरकार, ड्रग्स का रावण दहन कब
प्रदेश में नवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा है। दशहरे पर रावण का दहन होगा। मुख्यमंत्री और मंत्री शस्त्र पूजा करेंगे। लेकिन सवाल तो यह है कि कब तक पुतले जलाए जाते रहेंगे? नशे के रावण का दहन कब होगा, कब कब उसके सारे पॉलिटिकल कनेक्शन की लंका जलाई जाएगी?
देश का ह्रदय प्रदेश मध्य प्रदेश शांति का टापू है। यहां अपराधों पर नियंत्रण है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हों या वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, बीजेपी सरकार ने निवेश आमंत्रित करते हुए यह संदेश बार-बार दिया है। मगर सरकार यह भूल गए कि उनकी सत्ता, उनकी पुलिस, उनकी इंटेलीजेंस, उनके श्रम विभाग, उनके श्रम और उद्योग विभाग, उनके जीएसटी विभाग की नाक के नीचे नशे का कारोबार चल रहा था। इतना खुलेआम कि उसकी खबर गुजरात और केंद्र की एनसीबी तक पहुंच गई लेकिन यहां भनक तक नहीं लगी।
जब गुजरात पुलिस और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) की टीम ने भोपाल पहुंच कर बंगरसिया स्थित एक फैक्ट्री में छापा मारा और 1800 करोड़ रुपए कीमत की ड्रग्स बरामद की तब एमपी पुलिस को पता चला। फिर शुरू हुई पुलिस को बचाने की कवायद। असल में हेलेमेट चेकिंग जैसे कामों में जुटी रहने वाली पुलिस गाफिल रही और भोपाल से नशे का कारोबार चलता रहा। यह तो गुजरात में एक आरोपी पकड़ा गया तब राज खुला, अन्यथा नशे का कारोबार भोपाल से बेधड़क चलता रहता और पुलिस को पता नहीं चलता।
पुलिस की इस लापरवाही ने पूरे प्रदेश और बीजेपी सरकार की भद पिटवा दी। पुलिस की साख बचाने के बहाने अपनी लाज बचाने के लिए बीजेपी सरकार ने पूरी कार्रवाई को संयुक्त कार्रवाई बताने की कोशिश की। अपने उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा के साथ आरोपी के फोटो सार्वजनिक होने के बाद बीजेपी संगठन विपक्ष कांग्रेस पर प्रत्यारोप लगाते हुए आक्रामक हुआ लेकिन इस राजनीतिक बाजीगरी को सभी जानते हैं।
मुख्य मुद्दा तो कुछ अन्य सवाल है। सवाल यह है कि भोपाल में यह कारोबर चल कैसे रहा था? छोटी-छोटी दुकानों, हाथठेला, फुटकर व्यापारियों पर कार्रवााई करने के लिए आमाद रहने वाले उद्येाग, खाद्य विभाग, श्रम विभाग, स्थानीय निकाय और पुलिस विभाग के मैदानी अफसर क्या इस पूरे मामले को जान नहीं पाए या जानते हुए भी आंखें मूंदे रहे? यदि वे आंखें मुंदे रहे तो क्यों, किसके दबाव में? सत्ता में बैठे वे कौन लोग हैं जो युवाओं की मौत का सामान तैयार करने वाली फैक्ट्री के संरक्षक बने रहे?
मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा 24 अगस्त 2024 को रायपुर में कही गई बात भूल गई है। शाह ने कहा था , "यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाते हुए देश को मादक पदार्थ मुक्त बनाएं और प्रधानमंत्री के संकल्प को पूरा करें।" गुजरात पुलिस की इस कार्रवाई ने बता दिया है कि एमडी ड्रग्स को केवल मध्य प्रदेश ही नहीं गुजरात सहित देश के अन्य हिस्सों में पहुंचाया जा रहा था तो पुलिस को देखना चाहिए कि यह चेन कहां तक पहुंचती है?
बात-बात पर आरोपियों के घर तोड़ देने वाली सरकार को नशे के कारोबार और इसके माफिया पर बुलडोजर चलाने की नहीं सूझी। सत्ता के करीब रह कर माफिया नशे का कारोबार चलाते रहे तो वह कौन संरक्षक हैं जिनके परोक्ष और अपरोक्ष रूप से इन सरगनाओं के साथ संपर्क रहे। पुलिस भले ही इस कारखाने को लेकर अनजान नहीं रही लेकिन अब तो वह पता लगा ही सकती है कि भोपाल से एमडी ड्रग कहां-कहां भेजा रहा है? इस ड्रग के खरीदार कौन-कौन हैं, इनमें आपसी लेन-देन कैसे होता है?
यहां यह बताना भी जरूरी है कि देश की 10 फीसदी से अधिक आबादी अवसाद, न्यूरोसिस और मनोविकृति सहित मानसिक विकारों से पीड़ित है। इसके साथ ही प्रत्येक 1000 में से 15 व्यक्ति नशीली दवाओं का सेवन करते हैं और प्रत्येक 1000 में से 25 लोग क्रोनिक अर्थात स्थायी शराब सेवन के शिकार हैं। नशे के कारण होने वाली मौतों की गंभीरता को समझते हुए केंद्र सरकार ने 1995 में ऐसी मौतों के आंकड़े को अलग करना शुरू किया था, जब नशे के कारण 745 आत्महत्याएं हुई थी। 2016 के बाद से नशे से प्रेरित आत्महत्याओं में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। प्रत्येक वर्ष इस अंक में 1,000 से अधिक मामले जुड़ते जा रहे हैं।
युवाओं दिमाग को सुन्न कर उन्हें मौत के मुंह में धकेलने का काम बेखौफ चलता रहा यह पुलिस और सरकार की नाकामी है। इसलिए कार्रवाई में सहभागी होने पर एमपी पुलिस को शाबाशी देने से काम नहीं चलेगा। राजनीतिक प्रपंच से अलग सरकार को उन राजनीतिक और आर्थिक शक्तियों का खुलासा करना चाहिए जिनके संरक्षण में युवाओं को बर्बाद करने की साजिश चल रही है। यह हो पाया तो ही रावण दहन और दशहरे पर शस्त्र पूजन का महत्व है अन्यथा तो पुतले तो बरसों से जलाए जा रहे हैं।
इधर, भी गौर करिए कैलाश जी
बीजेपी सरकार में कैलाश विजयवर्गीय भले ही नंबर दो हो या सत्ता से बाहर रहे हों लेकिन संगठन के मामले में वे हमेशा अव्वल रहे। यही कारण है कि पिछले दिनों सदस्यता अभियान चला तो कैलाश जी के अव्वल ही रहे। इनदिनों वे बेबाकी से सरकार के कामकाज पर भी टिप्पणी कर रहे हैं। बीते दिनों इंदौर में अपनी ही सरकार में खोली गई शराब की दुकानों को लेकर नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने नाराजगी दिखाई। अपने विधानसभा क्षेत्र इंदौर-एक में विकास कार्यों का भूमिपूजन करने पहुंचे कैलाश् विजयवर्गीय ने महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने हिदायत दी कि अगली बार शराब के ठेके हों तो यह ध्यान रखें कि गणपति से पितृपर्वत तक शराब की दुकानें न हो। मंत्री ने यह भी निर्देश दिए कि धार्मिक स्थलों के रास्ते से मांस-मछली की दुकानें भी हटाई जाए।
कैलाश विजयवर्गीय ने सरकार के ही उस निर्णय को लागू करने के लिए सख्ती दिखाई है कि धार्मिक स्थलों के पास शराब दुकान नहीं होगी। लेकिन केवल एक सड़क ही क्यों? इंदौर तथा इंदौर के बाहर, प्रदेश के ऐसी हजारों जगह हैं जहां कि शराब दुकानों से रहवासी परेशान हैं। ये शराब दुकान स्कूल, अस्पताल, धार्मिक स्थलों के पास है। इन दुकानों के पास से बच्चों, महिलाओं, राहगीरों का निकलना मुहाल है। नियम के अनुसार रहवासियों के लिख कर देने पर शराब दुकान हट जानी चाहिए लेकिन दुकान अगले ठेके में और सज कर खुल जाती है।
कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेता ऐसे मामलों और एमडी ड्रग्स के पीछे के माफिया को लेकर भी मोर्चा खोलेंगे तो बड़े वर्ग को राहत मिलेगी।
सवाल तो गोपाल भार्गव ने भी सही ही पूछा है
मध्य प्रदेश में बीजेपी के सबसे सीनियर विधायक गोपाल भार्गव ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट की है। मध्य प्रदेश में अपराधों की स्थिति को देखते हुए की गई इस पोस्ट से राजनीतिक उबाल जरूर आया लेकिन पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव ने बात तो सही कही है।
गोपाल भार्गव ने फेसबुक पर लिखा कि नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा है, गांव से लेकर शहर तक जगह जगह देवी जी सहित कन्याओं का पूजन हो रहा है। दशहरे पर गांव से लेकर शहरों तक लोग रावण का पुतला दहन करेंगे। आजकल जहाँ अखबारों में एक तरफ दुर्गा पूजन और कन्या पूजन की खबरे छपती हैं उसी पेज के दूसरी तरफ 3 वर्ष और 5 वर्ष की अबोध बालिकाओं के साथ दुष्कृत्य तथा उनकी हत्या करने की खबरें भी निरंतर पढ़ने और देखने मे आती हैं। मैंने यह भी गौर किया है कि दुनिया के किसी भी देश में मुझे ऐसे समाचार पढ़ने या देखने नहीं मिले। नवरात्रि के महापर्व में हमे अब यह विचार करना होगा कि क्या हम लंकाधिपति रावण का पुतला जलाने की पात्रता रखते हैं? और क्या हम इसके अधिकारी हैं ?
सभी प्रकार की रामायणों में उल्लेख है कि रावण से बड़ा महाज्ञानी, महा तपस्वी, महान साधक और शिवभक्त भू लोक में नहीं हुआ ऐसे में आजकल ऐसे लोगों के द्वारा जिन्हें न किसी विद्या का ज्ञान है, एक श्लोक तक नहीं आता, जिनका चरित्र उनका मोहल्ला ही नहीं बल्कि पूरा गांव जानता है, उनके रावण दहन करने का क्या औचित्य है? यह तो सिर्फ बच्चों के मनोरंजन के लिए आतिशबाजी दिखाने का मनोरंजन बनकर रह गया है।
बीजेपी ने अपने सबसे वरिष्ठ विधायक की बात पर भले ही कोई टिप्पणी नहीं की है लेकिन गोपाल भार्गव ने मुद्दा तो सही उठाया है। प्रदेश में बच्चियां घर, स्कूल में सुरक्षित नहीं है तो फिर नवरात्रि में चुनर यात्रा का औचित्य क्या? जिनका चरित्र नहीं, जिनके संरक्षण में अपराध बढ़ रहे हों, ऐसे ही लोग रावण दहन करें तो यह सिर्फ आतिशबाजी के इवेंट के अलावा कुछ नहीं है। अपने ही नेता के उठाए सवाल पर बीजेपी गौर करेगी को जनता को अपराधों से मुक्ति मिल पाएगी।
पूंछ बचाने के लिए हाथी की सवारी
प्रदेश और बीजेपी की राजनीति में हाशिए पर चल रहे मध्य प्रदेश के पूर्व गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा की हाथी की सवारी की एक तस्वीर मीडिया में वायरल हो रही है। वे दतिया के ग्राम जिंगना में एक कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे थे और इस दौरान शाही सवारी के रूप में हाथी पर सवार होकर गांव का भ्रमण करने पहुंचे। इस तस्वीर के अपने राजनीतिक अर्थ है। इसे उस प्रयत्न के रूप में देखा गया जिसके तहत राजनेता चर्चा में बने रहते हैं।
नरोत्तम मिश्रा एक समय के सीएम नंबर दो का रूतबा रखते थे। लेकिन राजनीति में कब छांह अचानक तेज धूप में तब्दील हो जाए कहा नहीं जा सकता है। एक समय वे सरकार के डेमेज कंट्रोलर थे और अब अज्ञात हैं। विधानसभा चुनाव में हार के बाद कुर्सी तो गई ही संगठन में भी किनारे पर ही हैं। अब चर्चा है कि उनके धुर विरोधी कांग्रेस विधायक राजेंद्र भारती की बीजेपी में आमद हो सकती है। इस संबंध में बीजेपी के ही नेता राजेंद्र भारती से संपर्क में है।
अभी तो चर्चाएं ही हैं लेकिन ऐसा हुआ तो यह न्यू जाइनिंग टोली के प्रमुख नरोत्तम मिश्रा के लिए बड़ा झटका होगा। तब तो नरोत्तम मिश्रा की राजनीति का अंत ही समझो। ऐसे विकट समय में एक खबर ने उनके समर्थकों को राहत दी है। मिश्रा को महाराष्ट्र चुनाव की दो सीटों भंडारा और गोंदिया का प्रभारी बनाया गया। यह डूबते को तिनके का सहारा कर तरह भी माना जा रहा है। हालांकि, समर्थक मान रहे हैं कि उनके कौशल से पार्टी अवगत है। जल्द ही वे प्रदेश में भी फिर सक्रिय दिखाई देंगे।
बहरहाल, नजरअंदाज कर दिए जाने और महाराष्ट्र में नया काम मिलने के बीच हाथी की सवारी भी एक खास तरह का संकेत है, जिसमें अपनी पूछपरख बचाने का राजनीतिक मंतव्य शामिल है।