जी भाईसाहब जी: क्या अमित शाह के आने से ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे को मिलेगी राहत
जब बीजेपी ने ग्वालियर के नए अध्यक्ष की घोषणा की तो ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमा मायूस हो गया। अब गृहमंत्री अमित शाह की ग्वालियर यात्रा में नई राजनीतिक संजीवनी तलाशी जा रही है। उधर, उज्जैन में पीएम मोदी की यात्रा व मांंडू शिविर से बीजेपी अपनी चिंता को कम करने का जतन कर रही है।

16 अक्टूबर को गृहमंत्री अमित शाह जय विलास पैलेस में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के अतिथि होंगे। एयर टर्मिनल के विस्तार शिलान्यास कार्यक्रम में आ रहे अमित शाह पहली बार महल में जाएंगे। बीजेपी की राजनीति में अपनी जगह बनाने में जुटे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक गृहमंत्री अमित शाह की ग्वालियर यात्रा को उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं।
जय विलास पैलेस के भोज पर कम और अमित शाह व ज्योतिरादित्य सिंधिया की कैमेस्ट्री पर सबकी निगाहें टिकी हैं। बीजेपी के स्थानीय नेताओं की भी। इस मुलाकात के बाद भविष्य में क्या और कैसे राजनीतिक समीकरण बनेंगे यह ओर बात है मगर फिलहाल तो ‘महाराज’ ज्योतिरादित्य सिंधिया को घर में शिकस्त मिलने की चर्चा है।
हुआ यूं है कि नगरीय निकाय चुनाव में मिली हार के बाद बीजेपी ने ग्वालियर सहित पांच जिलों में अध्यक्ष बदल दिए। यह बदलाव बहुत दिनों से प्रत्याशित था। मगर इस बदलाव से ज्यादा अचजर भरा रहा नए अध्यक्ष की घोषणा का निर्णय। महापौर चुनाव में 57 साल बाद मिली हार के बाद बीजेपी ने अध्यक्ष कमल माखीजानी को हटा कर ग्वालियर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष अभय चौधरी को पार्टी का अध्यक्ष बनाया है। अभय चौधरी चौथी बार महानगर के अध्यक्ष बनाए गए हैं।
अभय चौधरी केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के समर्थक हैं और उनके अध्यक्ष बनने से क्षेत्र की राजनीति में नरेंद्र सिंह तोमर का वर्चस्व बढ़ा है। 2013 में भी तत्कालीन जिलाध्यक्ष वेदप्रकाश शर्मा की जगह ऐसे ही लोकसभा चुनाव के पहले अभय चौधरी को अध्यक्ष बनाया गया। जब यह घोषणा हुई तब अभय चौधरी मांडू जा रहे थे। उनके ग्वालियर आगमन पर स्वागत कार्यक्रम में केवल तोमर के समर्थक ही दिखाई दिए। केंद्रीय मंत्री सिंधिया सहित अन्य नेताओं के समर्थक गायब रहे।
ऐसे समय में जब चर्चा है कि लोकसभा चुनाव के लिए सिंधिया ग्वालियर सीट पर भी विचार कर रहे हैं, ग्वालियर की राजनीति में सिंधिया समर्थक की बदले तोमर समर्थक को अध्यक्ष बनाया जाना बहुत कुछ कहता है। खासकर तब जब बीजेपी के चिंतन शिविर सहित तमाम बैठकों में युवाओं को पद देने की पैरवी की जा रही है, ग्वालियर में किसी युवा नेता की जगह वरिष्ठ नेता को तवज्जो दी गई है। यह निर्णय बताता है कि ग्वालियर की राजनीति में बीजेपी के लिए सुकूनभरी नहीं है। अब सिंधिया खेमा आस लगाए बैठा है कि अमित शाह की यात्रा उन्हें बीजेपी में नई ताकत देगी।
क्या बीजेपी का तनाव कम करेंगे: मालवा, मांडू और मोदी
राजनीतिक दृष्टि से बेहद प्रभावशाली क्षेत्र माना जाने वाला मालवा इनदिनों सुर्खियों में है। यहां एक सप्ताह के दौरान बीजेपी ने दो बड़े आयोजन किए। मांडव में मिशन 2023 की चिंता में चिंतन बैठक और उज्जैन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में महाकाल लोक के लोकार्पण का भव्य आयोजन। चिंतन बैठक से निकला संदेश पार्टी में दूर तक पहुंचा तो महाकाल लोक की चर्चा बीजेपी ने एनआरआई के जरिए दूर देशों तक की। मालवा की राजनीति की दृष्टि से दोनों आयोजन अपना खास महत्व रखते हैं।
इन दोनों आयोजन की गंभीरता को समझने के लिए मध्य प्रदेश की राजनीति में मालवा के महत्व को जानना बेहद आवश्यक है। पिछले 2 विधानसभा चुनाव के परिणामों पर गौर करें तो स्थिति बहुत कुछ समझ आ जाती है। 2013 के विधानसभा चुनाव में मालवा-निमाड़ की 67 में से 57 सीटें भाजपा के खाते में गई थी और 10 सीटें कांग्रेस को मिली थी। वहीं 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 67 सीटों में से 35 सीटें जीती थीं जबकि बीजेपी केवल 28 सीट जीत पाई थी। यह उलटफेर कांग्रेस के सत्ता में लौटने का कारण बना था।
आदिवासी जिलों वाले मालवा क्षेत्र पर बीजेपी ने धीरे-धीरे पकड़ मजबूत की है। 2002 में झाबुआ में हुआ आरएसएस का हिंदू संगम आदिवासी क्षेत्र की राजनीति का टर्निंग पाइंट माना जाता है। उसके बाद बीजेपी ने मालवा में अपनी पैठ गहरी कर ली थी लेकिन जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (जयस) के उभरने के बाद आदिवासी क्षेत्रों में बीजेपी को चुनौती मिली है। निकाय और पंचायत चुनाव के साथ ही कुछ आंतरिक सर्वे ने बीजेपी की चिंता बढ़ा दी है। जनाधार खिसकने की आशंका को देखते हुए केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश में अपना हस्तक्षेप बढ़ा दिया है।
लगातार बैठकें और फिर चिंतन शिविर पार्टी की चिंता का प्रतीक है। बीजेपी ने विभिन्न क्षेत्रीय समीकरणों के साथ ही आदिवासी सीटों पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया है। प्रदेश की 47 विधानसभा सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं, जिनमें सबसे ज्यादा मालवा-निमाड़ में आती हैं। मालवा-निमाड़ की आदिवासी सीटों को साधने की चिंता मांडू में हुई चिंतन बैठक के एजेंडे का प्रमुख बिंदु थी। बैठक के बाहर जो भी खबरें आईं हों, उनसे इतर बैठक का ‘अंडर करंट’ मालवा में पैठ बढ़ाने की फिक्र ही था।
दूसरी तरफ, उज्जैन में महाकाल लोक के लोकार्पण और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा को इतना बड़ा इवेंट बनाया गया जिसकी चमक आगामी कई दिनों तक बनाए रखने के जतन होंगे ताकि उस चमक से पार्टी की जीत दमक उठे। इसके लिए महाकाल लोक लोकार्पण कार्यक्रम कर गांव-गांव लाइव प्रसारण करवाया गया। गांवों व शहरी वार्डों के प्रमुख मंदिरों में भी धार्मिक-आयोजन हुए। लोकार्पण कार्यक्रम से 50 देशों के एनआरआई भी जुड़ें साथ ही प्रदेश के 1070 मंडलों में कार्यक्रम का लाइव प्रसारण किया गया। यह पार्टी से कनेक्ट बढ़ाने की ही कोशिश है। पिछले कुछ चुनावों के दौरान विदेशों में बसे भारतीयों ने मध्य प्रदेश में आ कर चुनाव प्रसार किया था। अगले चुनाव में भी बीजेपी उन्हें ऐसी भूमिका में देखती है।
कुल मिला कर उज्जैन में हुआ पीएम मोदी का दौरा सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से जितना अहम था, इस यात्रा का राजनीतिक महत्व कहीं ज्यादा है। देखना होगा कि बैठक की धमक और मोदी की यात्रा की चमक से बीजेपी की चिंताएं कितनी मिटती हैं।
उज्जैन, इंदौर, सतना के कांग्रेस विधायकों के टिकट पर खतरा!
नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस ने महापौर पद के लिए अपने तीन विधायकों को चुनाव मैदान में उतारा था लेकिन जनता ने विधायकों को नकार दिया। इंदौर नगर निगम में कांग्रेस उम्मीदवार संजय शुक्ला बीजेपी उम्मीदवार पुष्यमित्र भार्गव से बड़े अंतर से हार गए. सतना में कांग्रेस उम्मीदवार सिद्धार्थ कुशवाहा 24 हजार 400 वोट से हार गए. उज्जैन में जरूर कांटे का मुकाबला रहा लेकिन वहां भी कांग्रेस विधायक महेश परमार को बीजेपी के मुकेश टटवाल ने 923 वोटों से हरा दिया था। अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या इन तीनों विधायकों के विधानसभा चुनाव 2023 के टिकट पर खतरा है?
इंदौर में संजय शुक्ला ने पूरी ताकत लगा दी थी। उन्हें पूरा भरोसा था कि बीजेपी के राजनीतिक साधनों का इस्तेमाल कर वे बीजेपी को मात दे पाएंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं। यह उनके लिए ही नहीं पार्टी के लिए भी झटका है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ अभी से ही मैदानी सर्वे करवा कर वर्तमान विधायकों की मैदानी स्थिति पर नजर रखे हुए हैं। जनाधार खो रहे नेताओं को संकेत दिए गए हैं कि वे अपनी गतिविधियां बढ़ाएं अन्यथा टिकट कटना तय है।
हारे हुए नेताओं का टिकट मुश्किल होगा तो जीते हुए पार्षद और महापौर विधायक का टिकट पाने की रेस में आ गए हैं। यह बात कांग्रेस के प्रभारी महामंत्री जेपी अग्रवाल ने सार्वजनिक मंच से कही है। मध्यप्रदेश कांग्रेस के नगरीय निकाय सम्मेलन में जेपी अग्रवाल ने कहा कि सिर्फ कहने से नहीं होगा कि हम ज़िंदा है। हमें बीजेपी का भी सफाया करना पड़ेगा। हम सभी का काम बारीकी से देखेंगे। जो पार्षद, महापौर अच्छा काम करेगा, उसे विधानसभा के लिए टिकट देंगे। विधानसभा चुनाव के लिए काम करने वाले हर एक आदमी का रिकॉर्ड बनाया जाएगा। सभी की रिकॉर्ड तैयार करने के निर्देश मैंने दे दिए हैं। टिकट बांटने के वक़्त हम इस रिकॉर्ड को ध्यान में रखेंगे।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने भी कहा कि अगर आराम करना चाहते हैं तो बता दीजिए। मैं भी आराम कर लूंगा। ये निष्ठा की अग्निपरीक्षा है। खुले मंच से कही गई ये बातें पार्टी की अगले निर्णयों के संकेत हैं। पिछला चुनाव जीत जाना अगली बार टिकट पाने की गारंटी नहीं होगी।
टीआई तो बहाना है, मंत्री पर है निशाना
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में कानून-व्यवस्था की समीक्षा के दौरान इंदौर पुलिस के एक टीआई के खिलाफ लोगों को डरा-धमकाकर वसूली करने की शिकायतों पर नाराजगी जताते हुए तत्काल कार्रवाई करने के निर्देश दिए। उन्होंने मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस और डीजीपी सुधीर सक्सेना सहित अफसरों से कहा था कि हम यहां इसलिए नहीं बैठे हैं कि कोई टीआई लोगों को डरा-धमकाकर खुद गैरकानूनी काम करे। मंच में चुटकियों में अफसरों को हटाने का फैसला करने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इतनी सख्त टिप्पणी के बाद भी इंदौर के टीआई को हटाने में 24 घंटे का वक्त लग गया।
सीएम की सख्ती के बाद भी निर्णय में हुई देरी से समझा जा सकता है कि टीआई का राजनीतिक रसूख कितना है। राजनीतिक व प्रशासनिक हलकों में चर्चा है कि इंदौर क्राइम ब्रांच के टीआई हैं धनेंद्र सिंह भदौरिया स्वयं को गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा का खास बताता है। ग्वालियर-चंबल रेंज में भ्रष्टाचार और कदाचरण की शिकायतों के कारण हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने टीआई को जेल भी भेजा है। टीआई के रसूख के आगे आईपीएस तो ठीक बीजेपी नेता भी स्वयं को असहाय महसूस कर रहे थे। इंदौर सांसद भी टीआई की शिकायत सरकार से कर चुके थे। मगर हर बार थोड़ी सी सजा के बाद टीआई लौट आता था।
अब जब मुख्यमंत्री ने बैठक में टिप्पणी कर हटवाया है तो देखना होगा कि टीआई की सजा कितने दिन कायम रह पाती है। वैसे भी माना जा रहा है कि टीआई पर कार्रवाई को बहाना है, वास्तव में यह निशाने पर वे मंत्री थे जिनका खास होने का दम ये टीआई भरा करता है।