सोयाबीन की सरकारी ख़रीद में हर बोरे पर 400 रुपये की रिश्वत, कमलनाथ ने मोहन सरकार को घेरा
किसान के दर्द को इसी बात से समझा जा सकता है कि, कभी तो उसे सही समय पर खाद नहीं मिलता, उसके बाद नकली बीज उसे परेशान करते हैं और जब फसल बेचने की बारी आती है तो भ्रष्टाचार से उसकी मेहनत की कमाई पर डाका डाला जाता है: कमलनाथ
भोपाल। सोयाबीन बेचने के लिए खरीदी केंद्रों पर पहुंचने वाले किसानों से नाफेड सर्वेयरों द्वारा 400 रुपए की अवैध वसूली की जा रही है। इस संबंध में एक मीडिया रिपोर्ट को साझा करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मोहन यादव सरकार पर निशाना साधा है। कमलनाथ ने दलित, आदिवासी और महिला सुरक्षा के मामलों पर भी राज्य सरकार को निशाने पर लिया है।
कमलनाथ ने ट्वीट किया, 'प्रदेश के सोयाबीन किसान एक बार फिर से भ्रष्टाचार का शिकार बन रहे हैं। सोयाबीन की सरकारी ख़रीद में हर बोरे पर 400 रुपये की रिश्वत लेने के आरोप अत्यंत गंभीर हैं। इसी भ्रष्टाचार का नतीजा है कि प्रदेश में तय सीमा से आधा सोयाबीन ही MSP पर ख़रीदा जा सका है।'
उन्होंने आगे लिखा, 'मध्य प्रदेश के किसान के दर्द को इसी बात से समझा जा सकता है कि कभी तो उसे सही समय पर खाद नहीं मिलता, उसके बाद नक़ली बीज उसे परेशान करते हैं और जब फ़सल बेचने की बारी आती है तो रिश्वतख़ोरी और भ्रष्टाचार से उसकी मेहनत की कमाई पर डाका डाला जाता है।'
पूर्व मुख्यमंत्री ने सीएम मोहन यादव से मांग करते हुए कहा कि पूरे प्रदेश में MSP पर सोयाबीन की ख़रीद व्यवस्था की विस्तृत जाँच कराएं और किसानों का सोयाबीन सही क़ीमत पर बिना भ्रष्टाचार के बेचना सुनिश्चित कराएं।
कमलनाथ ने मोहन सरकार के एक साल के कार्यकाल पर तंज कसते हुए लिखा कि, 'मध्य प्रदेश की डॉ. मोहन यादव सरकार का एक साल का कार्यकाल 13 दिसंबर को पूरा हो गया। अब बीजेपी इस एक साल को स्वर्णिम कार्यकाल बताकर अपनी पीठ थपथपा रही है लेकिन मोहन सरकार ने गरीबों, किसानों, युवाओं, महिलाओं, दलितों और सभी वर्गों के लोगों के लिए क्या किया है, यह विचारणीय है।'
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उन्होंने आगे लिखा, 'महिला सुरक्षा, दलित और आदिवासी सुरक्षा के मामले में मध्यप्रदेश का रिकॉर्ड और भी खराब हो गया है। स्वास्थ्य शिक्षा का हाल यह है कि मध्यप्रदेश की पहचान व्यापमं और नर्सिंग जैसे घोटालों से होने लगी है। समाज की सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था, हर पहलू पर इतनी नाकामी क्यों हासिल हो रही है? इससे बढ़कर चिंता की बात यह है कि मध्य प्रदेश सरकार इन सारे विषयों पर एकदम चुप है।'